मैं कवि हूं?
इसने बोला, उसने बोला,
सबने बोला, मैं कवि हूं।
इधर-उधर मैं देखता
जाऊ,
शब्द मिले तो लिखता
जाऊ।
नकल करूं तो थप्पड़
खाऊ,
फिर भी मैं कवि
कहलाऊं॥
जन्म पर मैं शौक सुनाऊं,
मौत पर जब मंगल गाऊं।
चढ़े घोड़ी नगाड़ा बजाऊं,
जाने फिर मैं कवि कहलाऊं॥
जब खाने
में बदबू बताऊ,
और पाखाने
में महक सुनाऊं ।
नहाने पर
मैं शोर मचाऊं,
फिर भी मैं
कवि कहलाऊं॥
काम समय मैं गीत सुनाऊं,
बस सेल्टर पर भंगड़ा पाऊ।
कुछ भी करूं तो देखत जाऊं,
ताकि मैं फिर कवि कहलाऊं॥
कहत कृष्ण,
वह कहता हैं,
सब कहते
हैं कि मैं कवि हूं।
कृष्ण
कुमार ‘आर्य’