'कुल्हिया में हाथी'... एक विचार-जरा सोचिये, सृष्टि संवत --1972949125, कलियुगाब्द---5125, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा- विक्रमी संवत-2081
कर्मयोगी कृष्ण
‘श्याम आएंगे’
मेरी खोपड़ी के द्वार आज खुल जाएंगे,
श्याम आएंगे,
श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे।
मेरी खोपड़ी के द्वार आज खुल जाएंगे,
श्याम आएंगे।
श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे।
श्याम आएंगे तो सुबह उठ जाऊंगी,
तारों की छावों में घूम आऊंगी,
फिर मैं करूं योगाञ्जयास,
लेकर सबको मैं साथ,
श्याम आएंगे।
श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे।
श्याम आएंगे तो हवन रचाऊंगी,
खाने को हलवा बनाऊंगी,
उनसे लेकर आर्शीवाद,
फिर बांटू मैं प्रसाद,
श्याम आएंगे।
श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे।
श्याम आएंगे तो छत पर जाऊंगी,
सूरज को नमन कर आऊंगी,
करके धारण मैं प्रकाश,
होने स्वस्थ की ले आस,
श्याम आएंगे।
श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे।
श्याम आएंगे तो समझ मैं पाऊंगी,
कैसे जीवन की धार बनाऊंगी,
उनका कैसा था सदाचार,
पाएं हम भी कर सुधार,
श्याम आएंगे,
श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे।
श्याम आएंगे तो मुरली सुनाएंगे,
ऋचाओं का गायन कराएंगे,
उससे मिट जाए भ्रमजाल,
कृष्ण हो जाए निहाल,
श्याम आएंगे।
श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे।
कृष्ण कुमार ‘आर्य’
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