गुरुवार, 12 जुलाई 2012

एक अभिशाप


कन्या भ्रूण हत्या--- एक अभिशाप


         समय-समय की बात है कि किसी क्षण कोई वस्तु अच्छी लगती है तो दूसरे ही क्षण वही वस्तु बुरी लगने लगती है। व्यक्ति जिस ठण्डी हवा के लिए गर्मियों में तरस जाते हैं, उसे वही ठण्डी हवा सर्दियों में अच्छी नही लगती। भूखे व्यक्ति के लिए जो खाना अमृतमय होता है, कभी-कभी वही खाना पैसे वालों के लिए जहर का कार्य भी करता है अर्थात जब किसी वस्तु की अधिकता होती है तो उसकी कीमत में कमी आने लगती है परन्तु यहां एक ऐसा विरोद्घाभास है, जिसकी संख्या में न्यूनता होने पर भी वह अपने वजूद को बचाने मे सक्षम नही है। उसे भी भाग्यहीन लोग अपनी राक्षसी वृति के कारण जड़ से मिटाने पर तुले रहते हैं।
        आज के इस पाषाण पूजित युग में लोग मंदिरों में देवी माताओं की पूजा-अर्चना करने जाते है और फूल बतासों से देवी को प्रसन्न करने में कोई कमी नही छोडते, परन्तु जब वही देवी मां उनके घर के दरवाजे पर देवी (लडकी) का रूप धारण कर कदम रखती है तो अमानवीय प्रवृति के लोग उसके फूल जैसे कोमल शरीर को मंदिर में चढ़ाए जाने वाले फूलों की तरह शमशान की भेंट चढा देते हैं। ऐसे निर्दयी लोग उस नन्हीं सी जान को धरती माता की मिट्टी को छूने भी नही देते, जिस धरती माता ने उसके पूरे परिवार को सहारा दिया हुआ है। घरों में लडकी के पैदा होने पर जितना कोहराम मचाया जाता है, उतना रूद्घन तो लडकी के किसी जवान संबन्धी की मौत पर भी नही किया जाता होगा।
         यह शर्मनाक कहानी किसी ओर की नही बल्कि उस नन्ही सी जान की है, जो स्वयं अपनी रक्षा करने में पूरी तरह असमर्थ है परन्तु जिसकी रक्षा का भार उसके उन माता पिताओं पर है, जो रक्षक होते हुए भी भक्षक बनकर उसे निगल जाते हैं। ऐसे लोगों द्वारा माता के सुरक्षा कवच गर्भ में 9 महीने बिताने वाली उस कन्या को 9 मिनट भी धरती पर रहने नही दिया जाता। पहले गांवों में पैदा होने वाले लडकी के परिवार के तथाकथित शुभचिंतक बुढि़या ताई और दादी उस नन्हें फूल की हत्यारिन बन जाती और नवजात लडकी को उसी चारपाई के पांवे के नीचे दबा देती थी, जिस चारपाई पर उसने जन्म लिया होता है। इतना ही नही उस समय दिल ओर कांप उठता था, जब वे उस नन्ही सी जान को मिट्टी की हांडी में डाल और उसके हाथ में रूई देकर यह कहते हुए कन्या को जिंदा दफना दिया करते थे कि ‘बेटी सूत कातती ओई जाईए, ओर अपणे भाई न भेज दिए’। भाई का तो पता नही आता था या नही परन्तु यह कहते हुए शर्म अवश्य आ रही है कि हमेशा से ‘नारी, स्वयं नारी की दुश्मन रही है’।
        अब ये बातें भी बीते दिनों की हो गई है, क्योंकि अब विज्ञान का युग है और विज्ञान के अनेक तरीकों की सहायता से आज के तथाकथित माता पिता अपनी ही फूल सी बिटिया को पैदा होने से पहले ही मौत के घाट उतार देते हैं। विज्ञान की इन्हीं तकनीकों द्वारा की जा रही कन्या-भ्रूण हत्या की कहानी लिखने में बिल्कुल संकोच नही होता, जिसमें वह नन्हीं सी जान अपनी ममतामयी मां को पुकार-पुकार कर कह रही है कि मां, मुझे मत मारो! मत मारो! मेरी प्यारी मां, मुझे मत मारो....और इस तरह से बिलखती हुई वह असहाय कन्या-भ्रूण अपने आप को उन निर्दयी माता-पिता और लोभी डाक्टर के हाथों में सौंप देता है और अनेक लोभ लालचों से ग्रसित ये लोग उस कन्या-भ्रूण के रूद्घन को भी अनसूना कर देते है।
       महाभारत में अभिमन्यू के गर्भ में शिक्षित होने का उदाहरण आपने सूना होगा और डॉक्टर भी इस बात को मानते है कि गर्भ में पल रहा भ्रूण माता-पिता के हर क्रिया कलाप को बड़ी गहराई से अनुभव करता है। इसी प्रकार एक भ्रूण के अनुभव करने की क्षमता को जब एक अमेरिकी डाक्टर ने अपने कम्प्यूटर की सहायता से देखना चाहा तो वह अपने आंसुओं को रोक नही सका। उसी डाक्टर ने बाद लिखा कि ‘जब उसने गर्भवति स्त्री को ऑपरेशन बैंच पर लेटाया तो गर्भ के अन्दर का भ्रूण छटपटाने लगा और गर्भ में सुरक्षित स्थान तलाशने के लिए इधर-उधर भागने लगा और छटपटाता हुआ वह भ्रूण अपनी मां से प्रार्थना करता हुआ कहता है, हे माते! मेरी रक्षा करो! हाथ जोडता है और मिन्नते करता हुआ गर्भ गृह में स्वयं को सुरक्षित बचाने का प्रयास करता है। 
        इसके बाद भी जब निर्दयी डाक्टर उसे मारने के लिए चाकू उठाता है तो कन्या भ्रूण चिल्लाता है, रोता है और माता को ऐसा न करने के लिए प्रार्थना करता है। इसके उपरान्त भी जब डाक्टर और माता की क्रूरता समाप्त नही होती तो वह कन्या भ्रूण उनके आगे नतमस्तक हो जाता है और माता के गर्भ की बलिवेदी पर अपना बलिदान देता है। इस प्रकार उस कन्या भ्रूण के एक-एक अंग को कैंची और चाकू से काटकर अगल-अलग गिरा दिया जाता है और उस कन्या भ्रूण का दुखदः अन्त हो जाता है। वह कटता और चिल्लाता हुआ भ्रूण भगवान से यह प्रार्थना तो अवश्य करता होगा कि हे भगवन! ऐसी कठोर और निर्दयी स्त्री को पुनः कभी माता बनने का सौभाग्य प्रदान मत करना।
       पेट में पल रहे भ्रूण को कन्या भ्रूण जानकर गर्भपात करवाना अब लोगों के लिए आम बात हो गईर् है। डॉक्टर भी एमटीपी एक्ट का दुरूपयोग करते हुए परिवार नियोजन, गर्भ में बच्चे का अस्वस्थ होना या जन्म समय माता को मृत्यू से बचाने के बहाने भ्रूण हत्या कर मोटी रकम डकार लेते है। दिनों दिन बढ रही इस मानसिक ता के कारण आज हरियाणा में स्थिती चिंताजनक होती जा रही है।
        जनता द्वारा भविष्य में कन्या-भ्रूण हत्या पर रोक लगाने पर पहल करनी चाहिए, जिससे स्थिती को ओर अधिक भयावह होने से बचाया जा सके। गांवों की अपेक्षा शहरों में स्त्री, पुरूष का अन्तर अधिक पाया जाता है और शहरी लोग इस अभिशाप से करीब 5 से 10 फीसदी अधिक शामिल पाये जाते हैं अर्थात यह अपराध शहरी पढा लिखा वर्ग, गांवों के लोगों से अधिक करता है। ग्रामीणों के साथ-साथ शहरी लोगों को भी कन्या भ्रूण हत्या से होने वाले  दुष्परिणामों के बारे में सरकारी व गैर सरकारी संगठनों द्वारा जागरूक किया जा रहा हैं। पुत्र प्राप्ती की इस अन्धी दौड़ ने आज हरियाणावासियों को पुत्र-पैदा करने वाली दुल्हनों के लिए तरसा दिया है।
        हमारे महापुरूषों ने नारी जाति का हमेशा सम्मान किया है और महर्षि दयानन्द ने तो स्त्री जाती के सम्मान में यहां तक कह दिया कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहीं देवता निवास करते हैं। गुरू गोबिन्द सिंह जी ने भी नारी सम्मान को बचाने के लिए कहा था कि ‘कुडी मार ते नडी मार, रिश्ता नइ करणा’ अर्थात लडकी हत्यारों और नशेडियों के घर कभी शादी नही करनी चाहिए। स्त्री जाति के सम्मान के लिए हरियाणा सरकार ने भी अनेक प्रभावी योजनाएं शुरू की है, जिनका लाभ उठाने के लिए लोगों आगे आना चाहिए और कन्याओं को उनका अधिकार प्रदान करते हुए कन्या भ्रूण हत्या पर पूर्ण रोक लगानी चाहिए।
हरियाणा सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं-
1.      हरियाणा सरकार ने उन महिलाओंको जिनके नाम पर सम्पत्ती तथा घरेलू बिजली कनैक्शन भी है उनके बिजली बिलों में 10 पैसे प्रति यूनिट छूट देने का निर्णय लिया है।
2.      हरियाणा सरकार ने किसी भी महिला द्वारा अचल सम्पति खरीदने पर उन्हें सैटम्प शुल्क में 2 फीसदी छूट देने का निर्णय लिया है।
3.      हरियाणा सरकार ने महिलाओं को शिक्षक की सीधी भर्ती में 33 फीसदी आरक्षण देने का निर्णय लिया है।
4.      हरियाणा सरकार ने महिलाओं के सुरक्षित प्रसव के लिए साफ सुथरा वातावरण प्रदान करने हेतु प्रदेश में 510 डिलिवरी हट्स का निर्माण करवाया है, जहां जन्म प्रमाण पत्र भी दिया जाता है और इससे पुरूष स्त्री अनुपात की बेहतर मॉनिटरिंग में भी सहायता मिलेगी।
5.      भारत सरकार ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए जननी सुरक्षा योजना के तहत ग्रामीण महिलाओं को घरों में करवाए गए प्रसव के लिए 500 रुपये तथा संस्थानों में करवाए गए प्रसव के लिए 700 रुपये की आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया है, जबकि शहरी महिलाओं को 600 रुपये उपलब्ध करवाए जाते हैं।
6.      जननी सुरक्षा योजना के तहत राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को प्रत्येक प्रसव के दौरान 1500 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान करने की शुरूआत की है, यह सहायता ऐसी सभी महिलाओं को दी जाती है जिन्होंने सरकारी या निजि क्षेत्र के किसी भी स्वास्थ्य संस्थान में प्रसव करवाया हो।
7.      राज्य के महिला और बाल विकास विभाग द्वारा ‘लाडली योजना’ लागू की गई है, जिसके तहत सरकार द्वारा दूसरी बेटी के जन्म पर 2500 रुपये प्रति लड़की के हिसाब से प्रतिवर्ष 5000 रुपये की आर्थिक सहायता 5 वर्ष तक दी जाती है।
सजा का प्रावधान-
        कन्या-भ्रूण हत्या करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाती है और इसके लिए सजा का भी प्रावधान है। हरियाणा में 1996 में लागू हुए पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट को सख्ती से लागू करवाने के लिए अनेक पहल की है। इनमें राज्य स्तर पर उपयुक्त प्राधिकारी, सुपरवाइजरी बोर्ड, सलाहकार समिति तथा टास्क फोर्स का गठन किया गया है। इसी प्रकार जिला स्तर पर भी जिला उपयुक्त प्राधिकारी, जिला निरीक्षण समिति तथा निरीक्षण टीमों का गठन किया गया है।
        ये समितियां सरकारी व गैर सरकारी संगठनों की सहायता से लोगों को कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में जागरूक करने, सख्ती से नियम लागू करवाने, अल्ट्रासांऊड मशीनों का निरीक्षण, कारण बताओं नोटिस जारी करने, छापामारी करना तथा आरोपियों के खिलाफ कोर्ट पैरवी करने का कार्य करती हैं।
           कृष्ण कुमार आर्य

शुक्रवार, 29 जून 2012

कथनी-करनी


                              कथनी-करनी


कथनी करनी दोऊ बहना,
दोनों का बड़ा नाम,
कथनी तो कहती रहे,
पर करनी करती काम।
          कथनी बड़ी, कहती रही,
          करना होगा काम,
          नही हो हम सब,
          जाएंगे हो बदनाम।
कथनी कहे, मैं कर दूंगी,
ऐसे अनोखे काम,
देखेगी दुनियां, ना समझ पाये,
ये कैसे हुए धनवान।
          कथनी कहे, मैं आऊंगी,
          लेकर प्रभू का नाम,
          सांय होते-होते सब,
          पा लू बड़े ई-नाम।
करनी यू करती चले,
न थके ना परेशान,
सुबह उठे तो शाम ढले,
बस करना उसका काम।
          करनी ऐसे कर रही,
          बिन जाग, बिन सोये,
          धन-धान्य, वैभव सारे,
          सब पास उसके होये।   
करनी को कृष्ण कहे,
है यह सुख मूल।
कथनी देखत जात है,
ना करनी करती भूल॥
करनी एक कारण है,
पर कथनी है निर्मूल।
करनी है फल दायनी,
          पर कथनी जीवन शूल॥
सौ ग्राम की जीभ ये,
ढोये सौ किलो का भार।
जीभ तो कह कर छुप गई,
पर शरीर होये परेशान॥
कथनी मूल जुबान की,
करनी शरीर से होये।
जुबान तो फड़फडाने की,
पर शरीर जाए लड़खडाये॥
‘कृष्ण कबीरा यू कहें-
कथनी मीठी खांड सी,
करनी विष की लोए।
कथनी छोड़ करनी करे तो,
विष भी अमृत होए॥

कृष्ण कुमार ‘आर्य
            

शुक्रवार, 18 मई 2012

कसौटी--

                 जिन्दगी की  

 

भारत देश अनेक महापुरूषों की जन्म स्थली रहा है। समय-समय पर यहां दिव्य आत्माओं ने जन्म लेकर देश व काल के अनुसार देशहित में उत्तम कोटी के कार्य किये थे। चाणक्य भी इसी प्रकार की एक महान विभूति थे, जिन्होंने अभाव और विषमताओं में रहते हुए न केवल विखंडित भारतवर्ष को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया बल्कि मौर्य वंश के साम्राज्य को स्थापित कर देश को नई दिशा प्रदान की। आचार्य चाणक्य की नीति जहां आज भी उतनी ही प्रासंगिक है वहीं उनके व्यकितगत गुण आम आदमी का सही मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं। उन्हीं में से उनका एक गुण यह भी था कि वे सहज ही अपने व पराये की पहचान कर लेते थे और उसी के अनुसार कार्य करते थे। आचार्य चाणक्य के जीवन की अनेक शिक्षाप्रद घटनाओं में से एक घटना लिखने का मन हुआ है।
आचार्य चाणक्य अपनी तार्किक बुद्घि, तर्क-शक्ति, ज्ञान और व्यवहार-कुशलता के लिए विख्यात थे। एक दिन आचार्य चाणक्य को उनका एक परिचित मिलने आया और उत्साह से कहने लगा, आचार्य ‘क्या आप जानते हैं कि मैंने आपके मित्र के बारे में क्या सुना?’  उन्होंने परिचित से कहा कि आपकी बात सुनने से पहले मैं चाहूंगा कि आप एक त्रिगुण परीक्षण से गुजरें अर्थात अपनी बात को तीन कसौटियों पर कस कर देख लें।
परिचित ने पूछा, यह त्रिगुण परीक्षण क्या होता है आचार्य। चाणक्य ने कहा कि आप मुझे मेरे मित्र के बारे में कुछ बताएं, इससे पहले अच्छा यह होगा कि जो आप कहने जा रहे हैं उसे तीन स्तरों पर परख लें। इसीलिए मैं इस प्रक्रिया को त्रिगुण परीक्षण कहता हूं।
परिचित ने पूछा इसकी क्या आवश्यकता है, मैं जो कहूंगा सत्य ही होगा। आचार्य ने कहा फिर भी सत्य का परिक्षण तो आवश्यक होता है। इससे आपको भी सत्य व असत्य का आभास आसानी से हो जाएगा, फिर आपको इससे कोई परहेज नही होना चाहिए। परिचित ने कहा कि ठीक है, आप बताईये मुझे क्या करना होगा। आचार्य ने कहा आपको कुछ नही करना, आप तो केवल बताते जाएं।
आचार्य ने कहा इसके लिए पहली कसौटी है-सत्य। इस कसौटी के आधार पर मेरे लिए यह जानना जरूरी है कि जो आप कहने वाले हैं, क्या वह सत्य है और आप स्वयं उसके बारे में अच्छी तरह जानते हैं?' परिचित ने कहा ‘नही! ऐसा तो नहीं, 'वास्तव में मैंने इसे कहीं सुना था। खुद देखा या अनुभव नहीं किया था। आचार्य ने कहा ठीक है 'आपको पता नहीं है कि यह बात सत्य है या असत्य।
चाणक्य ने कहा दूसरी कसौटी है--अच्छाई। क्या आप मुझे मेरे मित्र की कोई अच्छाई बताने वाले हैं?' उस व्यक्ति ने कहा नहीं, ऐसा भी नही है। इस पर चाणक्य बोले,' जो आप कहने वाले हैं, वह न तो सत्य है, न ही मित्र की अच्छाई है। तो ठीक है चलिए, तीसरा परीक्षण भी कर लेते हैं।' 
आचार्य ने कहा कि तीसरी कसौटी है---उपयोगिता। आचार्य ने परिचित से पूछा कि जो बात आप मुझे बताने वाले हैं, वह क्या मेरे लिए उपयोगी है?' परिचित ने कहा नहीं, ऐसा तो नहीं है।' यह सुनकर चाणक्य ने कहा कि आप मुझे जो बताने वाले हैं, वह न सत्य है, उसमें न कोई मेरे मित्र की अच्छाई है और न ही वह बात मेरे लिए उपयोगी है तो फिर आप मुझे वह बात बताना क्यों चाहते हैं?'
चाणक्य ने कहा कि लगता है कि तुम मेरे मित्र के विषय में मुझे भडकाना चाहते हो परन्तु ऐसा तुम किसके और क्यू कहने पर कर रहे हो यह जानना मेरे लिए आवश्यक है।


     
संपादनकर्ता - कृष्ण कुमार ‘आर्य’
साभार- चाणक्य जीवनी   



मंगलवार, 1 मई 2012

सोच

                                सोच
     
सोच है!
पर ना मैं सोच करना चाहता हूं,
सोच पर मैं यह सोचता ही रहता हूं,
जान नही पाया हूं,
किन मजबूरियों को सोच कहता हूं,
फिर भी सोचता ही रहता हूं।
क्या है सोच,
किसने बनाया इसको,
क्यू बनाया, यह पता नही चल पाया,
पर आत्मा के घर को खोखला करती है,
मन के भावों में अभाव भरते है,
फिर भी हम सोच करते है।
क्यू है सोच,
चिंता का दूसरा नाम है सोच,
विचारों की ना लेन-देन है सोच,
नकारात्मकता का परिणाम है सोच,
और करती बर्बादी का काम है सोच,
फिर भी हम करते हैं सोच।
कैसी है सोच,
चिता पर ले जाया करती है,
पर ना किसी से डरती है,
दुविधा में मन भरती है,
करने वालों के संग मरती है,
पर रंगहीन जीवन करती है।
होती है सोच,
बचाव के असफल प्रयास हो जब,
भूख मिटाने की छटपटाहट हो तब,
लक्ष्य प्राप्ति की हड़बड़ाहट हो जब,
अवसाद का कारण है यह सब,
ऐसे तब तक होती है सोच।
मिटती है सोच,
विचारों के आदान-प्रदान से,
सकारात्मकता की शान से,
अपने व दुश्मनों की पहचान से,
बुद्घिमान और वृद्धों की आन से,
कृष्ण मिटती है सोच ऐसा करन से।
                             
                       कृष्ण कुमार ‘आर्य



शुक्रवार, 23 मार्च 2012

नव सम्वत

                              नव सम्वत


आज सृष्टि का जन्म दिन है,
आज ब्रह्मा ने संसार रचा था,
ऋतुओं का निर्माण किया था,
पहली बार चमका था सूरज,
आज ही है सृष्टि का जन्म दिन।
        पहले दिन की थी जो रचना,
        जीव, प्रकृति का पुरा सपना,
        पक्षी चहके और आत्मा महके,
        हर तरफ फैला मधुर उपदेश,
        सृष्टि का वह पहला दिन था।
राम प्रभु ने इस दिन का,
किया था बडा सदुपयोग,
लंका जीती अयोध्या आये,
और राजतिलक लिया करवाये,
तब भी सृष्टि का था जन्म दिन।
सम्वत का नाम,
उस राजा के नाम पर होता,
जिसके राज में न कोई चोर,
अपराधी, न भूखा था सोता,
सम्वत फिर ऐसे महान पर होता।
बंसत ऋतु का आगमन होता,
बहे उमंग और खुशी का श्रोता,
हर तरफ पुष्पों की खुशबू,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा दिन वो होता,
सृष्टि का ये भी जन्म दिन होता।
फसल पकने का यह दिन,     
किसान की मेहनत का दिन,
शुभ नक्षत्रों का यह दिन,
नेक कार्यों का शुभ है यह दिन,
सृष्टि का है यह जन्म दिन।
गुरू अंगददेव का है जन्म दिन,
नवरात्र का हुआ शुभारम्भ,
आर्य समाज की हुई स्थापना,
रामजन्म से नौ दिन पहले का दिन,
यही था सृष्टि का वह सृजन दिन।
        युधिष्ठिर का अभिषेक हुआ,
        हेडगेवार ने जन्म लिया,
        विक्रमादित्य का राज स्थापित,
जिससे हुआ शुरू विक्रमी संवत,
वह भी था सृष्टि का जन्म दिन।


(सृष्टि सम्वत, एक अरब 97 करोड़, 29 लाख 49 हजार 113 वर्ष) 





                         कृष्ण कुमार ‘आर्य’


मंगलवार, 20 मार्च 2012

भाग मत


                भाग मत

मुसकिलों से हो घिरे, असफलताओं में हो पड़े,
मार्ग हो अवरूध चाहे, ना काम हो आसान,
दुविधा में हो मन यदि, परेशानियां हो हर वक्त,
भाग मत! भाग मत कर प्रयास, कर प्रयास भाग मत।
मंजिल यदि दूर हो, शरीर चकनाचूर हो,
राह में हो रूकावटें, पग-पग संकट भरे,
ना अडचनों से रूको तुम, अडचनें तू दूर कर,
भाग मत! भाग मत कर प्रयास, कर प्रयास भाग मत।
जीत में हार है, हार ही तो जीत है,
विचार में धार हो, धार ही तो विचार है,
आशा में निराशा है, निराशा को तू दूर कर,
भाग मत! भाग मत कर प्रयास, कर प्रयास भाग मत।
        संकल्प में विकल्प हो, विकल्प में हो संकल्प,
        गमन में जो नमन हो, नमन को तू कर गमन,
        संदेश यदि आदेश हो, आदेश में तू संदेश कर,
भाग मत! भाग मत कर प्रयास, कर प्रयास भाग मत।
सत्य में भगवान है, भगवान ही तो सत्य है,
संसार में संस्कार है, संस्कारों से ही संसार है,
सुख में ही पीड़ा है, पीड़ा को तू सुख कर,
भाग मत! भाग मत कर प्रयास, कर प्रयास भाग मत।
        धर्म में यदि अधर्म हो, अधर्म को कर धर्म,
        अर्थ का अनर्थ हो, अनर्थ को कर अर्थ,
        काम की हो कामना, कामना तू मोक्ष कर,
        भाग मत! भाग मत कर प्रयास, कर प्रयास भाग मत।
आयु यदि अचीर हो, अचीरता को चीर कर,
यश यदि अपयश हो, अपयश को तू दूर कर,
कर्म यदि निष्फल होकृष्ण कर्म तू ‌नित कर,
भाग मत! भाग मत कर प्रयास, कर प्रयास भाग मत।


                               कृष्ण कुमार ‘आर्य’



मैं आदमी हूँ!