मैं कवि हूं?

मैं कवि हूं?

इसने बोला, उसने बोला,
सबने बोला, मैं कवि हूं।
इधर-उधर मैं देखता जाऊ,
शब्द मिले तो लिखता जाऊ।
नकल करूं तो थप्पड़ खाऊ,
फिर भी मैं कवि कहलाऊं॥
जन्म पर मैं शौक सुनाऊं,
मौत पर जब मंगल गाऊं।
चढ़े घोड़ी नगाड़ा बजाऊं,
जाने फिर मैं कवि कहलाऊं॥ 
          जब खाने में बदबू बताऊ,
          और पाखाने में महक सुनाऊं ।
          नहाने पर मैं शोर मचाऊं,
          फिर भी मैं कवि कहलाऊं॥
काम समय मैं गीत सुनाऊं,
बस सेल्टर पर भंगड़ा पाऊ।
कुछ भी करूं तो देखत जाऊं,
ताकि मैं फिर कवि कहलाऊं॥
          कहत कृष्ण, वह कहता हैं,
          सब कहते हैं कि मैं कवि हूं।


                                                          कृष्ण कुमार ‘आर्य’

मै अकेला हूं !


          मै अकेला हूं !
          पर ये कैसे समझू,
          कि मै अकेला हूं !
माता की गर्भारी में,
पिता की समझदारी में,
और दादा की दुलारी में,
मैं अकेला हूं।
शहर की बाजारी में,
फूलों की बगियारी में,
और बीवी की बुखारी में,
मैं अकेला हूं।
शियारों की यारी में,
औरतों की पंचायरी में,
और सड़क पर सवारी में,
मैं अकेला हूं।
खटिया पर बीमारी में,
परेशानी व लाचारी में,
और शमसान की अगियारी में,
मैं अकेला हूं॥ 



                                                                                      कृष्ण कुमार ‘आर्य’

Krishana: मै अकेला हूं !

Krishana: मै अकेला हूं !
मोदी का जवाब-
       सफर में धूप तो होगी,
        तुम चल सको तो चलो।
राह में भीड़ तो बहुत होगी,
भीड़ से निकल सको तो चलो।।
        किसी के वास्ते राहें कहां बदलती हैं,
        तुम अपने आपको बदल सको तो चलो।
यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता,
मुझे गिराकर तुम संभल सको तो चलो।।
        यही है जिंदगी कुछ ख्वाब, चंद उम्मीदों की,
        इन्हीं ख्यालों में बयार ला सको तो तुम चलो।।     


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा 9 मार्च 2016 को राज्यसभा में दिये गये जवाब के दौरान प्रस्तुत कविता।


संकलनकर्ता-   कृष्ण कुमार ‘आर्य’

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