मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

मै कौन हूं?



मैं कौन हूं !

आया हूं कहा से मै,
जाना कहा है मुझे,
पर ये बताये कौन कि, ‌
मै कौन हूं ?

मै कौन हूं !
घर से मै आता हूं,
आफिस नही जाता हूं,
पर कमा कर मै लाता हूं,
फिर भी यह कहता हूं कि,
मै कौन हूं?

मै कौन हूं !
पत्नी मुझे पति कहती,
पुत्र पिता बोलता,
माता-पिता पुत्र कहते,
दोस्त कृष्ण पुकारते,
फिर भी मै ये समझ न पाया कि,
मै कौन हूं?

मैं कौन हूं !
नदियों में जैसे पानी बहता,
फूलों में हो गंध जैसे,
कलियां महके खुशबू से,
चन्द्रमा की शीतलता से
तन मन जब खिल जाता,
फिर भी मै ये समझ ना पाया कि,
मैं कौन हूं?

मै कौन हूं !
दूध में जैसे मक्खन होता,
पानी में बर्फ रहती,
तार में करंट बहता,
वैसे ही मैं तेरे अन्दर रहता,
फिर क्यूं ना तू ये जान है पाता कि,
मैं कौन हूं?

मै कौन हूं !
तुझ से पहले तेरा प्रारब्ध आता,
क्रियमाण कर संचित बनाता,
जहां से आया तू वहीं पर जाता,
फिर भी क्यूं यह कहता जाता कि,
मै कौन हूं?

मै कौन हू !
तेरे तन में ही मैं रहता,
जिसको तू आत्मा कहता,
फिर भी क्यूं ना तू समझा भ्राता कि,
मैं कौन हूं?

मै कौन हू !
हिरण में जैसे इत्र रहता,
ऐसा सब कुछ जान मै ये कहता कि,
मै मौन हूं ? 


बुधवार, 5 जनवरी 2011

कोहरा

                                  कोहरा
      
         एक दिन जब कोहरे ने,
         जब अपनी चुनरी फैलाई।
         निकल कर देखा बाहर तो,
         कुछ ना दिया दिखाई।।
        जब सीढियों से मैं आया नीचे,
        तो एक तंग गलि सामने पाई,
        जान समझ कर रास्ता,
        उधर चल पड़ा मैं भाई॥
         दूर जग रहे दीपक ने,
         मार्ग मुझे दिखाया,
         बढ़कर देखा आगे तो,
         एक बुजुर्ग खड़ा पाया॥
        बुजुर्ग ने जब देखा मुझे,
        थोड़ा हंसा, थोड़ा मुस्कराया,
        बीच सड़क पर उसने मुझे,
        हाथ पकडकर बैठाया।।
         उसने चुपके से फिर यूं,
         मेरे कान में ये बोला।
         कोहरे से मुक्ति पाने को,
         ले आओ किसी नेता का झोला।।
        सोच समझकर फिर बोला वो,
        वैसे कोहरे का नही होता ताला,
        पर नेता जी ले जा सकते इसको,
        कोई करके बड़ा घोटाला।।
                        


                कृष्ण  कुमार ‘आर्य

                                            


शनिवार, 1 जनवरी 2011

Happy NEW Year

   Happy NEW Year










O my dear,
Forget your fear,
Be dreams your clear,
What…? My deer is very dear.

O my dear,
You let me hear,
Never belive on enemy swear,
What…?  When you are up in gear.

O my dear,
A red under wear,
I send you with pleasure,
What…? Motion can’t flow your tear.

O my dear,
Please me hear,
You stop your cheer,
What…? A black coat you wear.

O my dear,
I say in your ear,
Jump when you hear,
What…? HAPPY NEW YEAR.




               By:   Krishan K. Arya







मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

इन्सान हूँ ?


इन्सान हूँ !
इन्सान बनना चाहता हूँ ?
लाखों की भीड़ में इंसानियत को तलाश रहा हूँ

पर कोई हैजो डरा हुआ है, सहमा हुआ है
और अपने वजूद को बचाने के लिए दर-दर भटक रहा है

आखिर मिल गया वो,
पर निराश है, नाराज है, दुःखी है,
आसमान कि ओर निहार रहा है
परन्तु आसमान से किसी बदलाव की उम्मीद ने आँखें मैली कर दी है
सच्चाई के थपेड़ों ने चेहरे की लालिमा हर दी है।

अब तो वह दुःखी है, सच बोल कर,
तंग आ चुका है, झूठ को नकार कर,
लाचार है, बेबस है, किसे सुनाए सच

रहा नही कोई सच सुनने वाला,
सब बिकाऊ है, न कोई टिकाऊ है,
इंसान और उसका ईमान बिक रहा है,
फिर भी इसी उम्मीद के सहारे चला जा रहा हूँ,
चला जा रहा हूँ, चला जा रहा हूँ।

कि शायद इस भीड़ में कोई मिल जाए,
जो हो इंसान, जानता हो वो उस इंसान को,
जो ये कह दे कि
मैं इन्सान हूँ !
                        

                             कृष्ण आर्य

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

प्याज की सरकार

      क्या प्याज में है पवार या पवार का है प्याज।
    आओ इसका पता लगाए, क्यूं मंहगा हुआ प्याज॥
                                                                   
            -प्याज की सरकार-                           

एक दिन गरीब की झोंपडी में,

        प्याज ने लगाया ठुमका।
थाली से उठकर वह,
        जा कोने में दुबका॥
अगले दिन साहुकार जी वहां,
        आ करके यूं बोला।
चलो तुम साथ मेरे,
        मैं लाया हूं झोला॥
झोले में आकर प्याज को,
        हुई खुशी बहुत सारी।
आज नही तो कल,
        मेरे लिए होगी मारा-मारी॥
एक दिन झोले पर,
        नजर पड़ी बड़ी भारी।
झांक कर देखा प्याज ने तो,
        सामने थे कालाबाजारी॥
कालाबाजारियों के झोले में गिरकर,
        प्याज ने आंसू बहाए।
बोला, नही सहन होता अब मुझसे,
        मै दूंगा सबको रूलाए॥
रोता हुआ बोला प्याज,
        क्या तुम्हे समझ न आए पवार।
क्यूं भूल गए हो तुम कि,
        मैंने पहले भी गिराई थी सरकार॥

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

एक कप चाय

             
                           चख कर देखो
कई बार छोटी सी घटना या कहानी भी जीवन का सार बता जाती है। व्यक्ति उससे शिक्षा ग्रहण कर एक बार तो वो सब कुछ छोडने का मन बना लेता है, जिन कार्यों के कारण वह स्वयं दुःखी होता है और दूसरों को दुःखी करता है। इसी बात को जहन में बिठाकर एक दार्शनिक ने अपने शिष्यों को समझाना चाहा।
एक दिन दार्शनिक एक कांच का जार लेकर कक्षा में आया और उसे अपनी सीट पर रख दिया। दा‌र्शनिक ने अपने शिष्यों से कहा कि वे आज उन्हें जीवन से जुड़ा एक पाठ पढाएंगे। यह कहते हुए दार्शनिक ने रबड़ की छोटी गेदों से जार को भर दिया और शिष्यों से पूछा कि क्या यह जार भर गया। शिष्यों ने जवाब दिया, हां गुरू जी ! जार तो भर गया। इसके बाद गुरूजी ने कुछ छोटे कंकड, पत्थर के टुकड़े जार में डाले और जार को हिला कर भरते हुए फिर शिष्यों से पूछा कि क्या अब जार भर गया। शिष्यों ने गर्दन हिलाते हुए फिर कहा कि जार अब तो भर गया, गुरूजी।
        इस पर गुरूजी ने रेत की पोटली खोली और इसे जार में रहे शेष छिद्रों में हिलाकर भरते हुए फिर पूछा कि अब जार पूरी तरह भर गया। शिष्यों ने इस बार तो पूरे विश्वास के साथ कहा कि गुरूजी अब तो जार पूरी तरह से भर गया। इस पर गुरू जी ने चाय के एक कप लिया और उसमें उडेल दिया। चाय को भी रेत के कणों ने पूरी तरह सोख लिया। इस पर शिष्य निरोत्तर हो गए और गुरूजी की तरफ निहारने लगे।
शिष्यों की लालसा को ‌देखते हुए गुरूजी ने गंभीर स्वर में कहा, देखों बालकों आप अपने जीवन को इस कांच के जार तरह समझों तथा रबड़ की गेंदें आपके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाग है इनसे आप जितनी समझदारी से खेलोंगे, जीवन गेंदों की तरह उतना ही ऊपर उठेगा। रबड की ये गेंदें हैं---आपके भाई, बन्धु, सखा, मित्र, परिवार है, जिनकी मदद से आप जीवन के सभी सुखों के साथ-साथ भगवान तक को प्राप्त कर सकते हो।
        गुरूजी ने कहा कि छोटे कंकडों को आप---अपने शौक, कोठी, कार, बंगला, धन दौलत जानो, जिनकी सहायता से आप सुखी जीवन जी सकते हो। इसी प्रकार रेत के कणों को आप छोटे-छोटे विवाद, मनमुटाव और झगडों को समझों। यदि आप इस कांच के बर्तन में सबसे पहले रेत भर देते तो उसमें न ही कंकडों को भरा जा सकता था और नही रबड़ की गेंदे ही उसमें आ पाती और जार को यदि पहले कंकडों से भर दिया जाता तो उसमें रेत यानि मनमुटाव, झगड़े आदि तो आ जाते परन्तु रबड की गेंदें फिर भी नही आती। अर्थात हम अपने सभी निकट के भाई, बन्धु, सखा, मित्र, परिवार वालों को खो देते।
        गुरूजी ने कहा कि ठीक उसी प्रकार यदि आप रेत की भांति अपने जीवन को पहले झगड़े, मनमुटाव व आपसी विवादों से भर लोंगे तो आपके पास दूसरी बातों के लिए समय ही नही बचेगा और आप उन सभी सुखों से दूर हो जाओगे, जिनको एक आम व्यक्ति पाने की इच्छा रखता है। मन की शांति के लिए भी आपको क्या चाहिए, यह भी आपको ही तय करना है। क्या आप अच्छा खाना-पीना, सैर करना, अपनी आत्मा की उन्नति के कार्य करना या क्या आप अपने बच्चों, पति, पत्नि के साथ घूमना-फिरना, माता पिता व मित्रों के साथ रहना चाहते हो, यही आवश्यक गेदें है बाकी सब तो रेत है।
        इसी बीच ध्यान से सुन रहे शिष्यों में से एक ने पूछा कि भगवन चाय के एक कप को मिलने का क्या अर्थ हुआ। इस पर गुरूजी ने कहा कि मैं सोच ही रहा था कि आपमें से किसी चाय बारे में क्यों नही पूछा। इसका उत्तर यह है कि जीवन कितना ही परिपूर्ण व सुख साधनों से सम्पन्न क्यों न हो जाए परन्तु अपने भाई, बन्धु, सखा, मित्र व परिवार वालों के साथ एक कप चाय पीने का स्थान व समय अवश्य बचा कर रखना चाहिए।                                                                     

शिक्षा- ज्ञान और सुख अमूल्य व सुक्ष्म है, इसे प्राप्त करने के लिए विवादों से दूर रहना सीखो।          




मैं आदमी हूँ!