कोहरा

                                  कोहरा
      
         एक दिन जब कोहरे ने,
         जब अपनी चुनरी फैलाई।
         निकल कर देखा बाहर तो,
         कुछ ना दिया दिखाई।।
        जब सीढियों से मैं आया नीचे,
        तो एक तंग गलि सामने पाई,
        जान समझ कर रास्ता,
        उधर चल पड़ा मैं भाई॥
         दूर जग रहे दीपक ने,
         मार्ग मुझे दिखाया,
         बढ़कर देखा आगे तो,
         एक बुजुर्ग खड़ा पाया॥
        बुजुर्ग ने जब देखा मुझे,
        थोड़ा हंसा, थोड़ा मुस्कराया,
        बीच सड़क पर उसने मुझे,
        हाथ पकडकर बैठाया।।
         उसने चुपके से फिर यूं,
         मेरे कान में ये बोला।
         कोहरे से मुक्ति पाने को,
         ले आओ किसी नेता का झोला।।
        सोच समझकर फिर बोला वो,
        वैसे कोहरे का नही होता ताला,
        पर नेता जी ले जा सकते इसको,
        कोई करके बड़ा घोटाला।।
                        


                कृष्ण  कुमार ‘आर्य

                                            


Happy NEW Year

   Happy NEW Year










O my dear,
Forget your fear,
Be dreams your clear,
What…? My deer is very dear.

O my dear,
You let me hear,
Never belive on enemy swear,
What…?  When you are up in gear.

O my dear,
A red under wear,
I send you with pleasure,
What…? Motion can’t flow your tear.

O my dear,
Please me hear,
You stop your cheer,
What…? A black coat you wear.

O my dear,
I say in your ear,
Jump when you hear,
What…? HAPPY NEW YEAR.




               By:   Krishan K. Arya







इन्सान हूँ ?


इन्सान हूँ !
इन्सान बनना चाहता हूँ ?
लाखों की भीड़ में इंसानियत को तलाश रहा हूँ

पर कोई हैजो डरा हुआ है, सहमा हुआ है
और अपने वजूद को बचाने के लिए दर-दर भटक रहा है

आखिर मिल गया वो,
पर निराश है, नाराज है, दुःखी है,
आसमान कि ओर निहार रहा है
परन्तु आसमान से किसी बदलाव की उम्मीद ने आँखें मैली कर दी है
सच्चाई के थपेड़ों ने चेहरे की लालिमा हर दी है।

अब तो वह दुःखी है, सच बोल कर,
तंग आ चुका है, झूठ को नकार कर,
लाचार है, बेबस है, किसे सुनाए सच

रहा नही कोई सच सुनने वाला,
सब बिकाऊ है, न कोई टिकाऊ है,
इंसान और उसका ईमान बिक रहा है,
फिर भी इसी उम्मीद के सहारे चला जा रहा हूँ,
चला जा रहा हूँ, चला जा रहा हूँ।

कि शायद इस भीड़ में कोई मिल जाए,
जो हो इंसान, जानता हो वो उस इंसान को,
जो ये कह दे कि
मैं इन्सान हूँ !
                        

                             कृष्ण आर्य

प्याज की सरकार

      क्या प्याज में है पवार या पवार का है प्याज।
    आओ इसका पता लगाए, क्यूं मंहगा हुआ प्याज॥
                                                                   
            -प्याज की सरकार-                           

एक दिन गरीब की झोंपडी में,

        प्याज ने लगाया ठुमका।
थाली से उठकर वह,
        जा कोने में दुबका॥
अगले दिन साहुकार जी वहां,
        आ करके यूं बोला।
चलो तुम साथ मेरे,
        मैं लाया हूं झोला॥
झोले में आकर प्याज को,
        हुई खुशी बहुत सारी।
आज नही तो कल,
        मेरे लिए होगी मारा-मारी॥
एक दिन झोले पर,
        नजर पड़ी बड़ी भारी।
झांक कर देखा प्याज ने तो,
        सामने थे कालाबाजारी॥
कालाबाजारियों के झोले में गिरकर,
        प्याज ने आंसू बहाए।
बोला, नही सहन होता अब मुझसे,
        मै दूंगा सबको रूलाए॥
रोता हुआ बोला प्याज,
        क्या तुम्हे समझ न आए पवार।
क्यूं भूल गए हो तुम कि,
        मैंने पहले भी गिराई थी सरकार॥

हिन्दी दिवस