'कुल्हिया में हाथी'... एक विचार-जरा सोचिये, सृष्टि संवत --1972949125, कलियुगाब्द---5125, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा- विक्रमी संवत-2081
श्रृंगारों की तीज
श्रृंगारों की तीज
हमारे जीवन में त्यौहारों का विशेष महत्व है। इन त्यौहारों को यादगार बनाने के लिए महिलाएं काफी संजीदा होती है। महिलाएं अपने जीवन में त्यौहारों की भांति ही श्रृंगारों का रंग भरने की कोशिश करती है। महिलाएं स्वयं को खूबसूरत दिखाने के लिए खूब श्रृंगार करती हैं परन्तु अनेक महिलाओं को पूरे श्रृंगारों की जानकारी तक भी नही होती, जिसके कारण वे स्वयं को दूसरों से पीछे महसूस करने लगती है।
भारतीय समाज में 16 श्रृंगारों का विशेष स्थान है। विवाह शादियों या तीज त्यौहारों पर महिलाए इन श्रृंगारों से सज कर स्वयं को दूसरों से अलग दिखना चाहती है। ये श्रृंगार होते कौन से है, आओ इसका पता लगाए।
शरीर को कांतिमय बनाने के लिए उबटन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे त्वचा और चेहरा दमक उठता है। शरीर में सफूर्ति और तेज का संचार होता है तथा चेहरे पर लगातार लगाने और रगड़कर हटाने से चेहरे की झुरियां व दाग धब्बे समाप्त हो जाती है। उबटन का निर्माण हल्दी, बेसन, कमल के फूल, हरसिंगार के पुष्प को गाय के शुद्ध दूध में मिलाकर बनाया जा सकता है।
बिन्दी-
विवाहित महिलाएं अपने माथे पर बिन्दी लगाती हैं, यह महिलाओं की सुन्दरता को बढाने का कार्य करती है। इसमें रोली, सिंदूर और स्टिकर बिन्दी भी लगाई जाती है।
सिंदूर-
यह लाल रंग का पाऊडर होता है, जिसको महिलाएं अपनी मांग में भरती है। यह सुहाग का प्रतिक माना जाता है।
मांग टीका-
सुहागिनें अपनी मांग को पूर्ण करने के लिए बालों से जोड़कर मांग टीका लगाती है। यह सोने का बना होता है। सोना माथे पर होने के कारण इससे मस्तिक शांत रहता है।
काजल-
नेत्रों को सुन्दर और आकर्षक बनाने के लिए काजल का प्रयोग किया जाता है। अच्छे काजल से न केवल सुन्दरता में निखार आता है बल्कि आंखों के रोगों को दूर करने में सहायता मिलती है। यह आंखों की बरौनियों तथा पलकों पर लगाया जाता है।
नथ-
दुलहन को परम्परागत सौंदर्य प्रदान करने में नथ का विशेष महत्व है। यह बांये नथ में पहनी जाती है तथा सोनी की बनी होती है।
हार-
हार या मंगल सूत्र को शुभ का प्रतिक माना जाता है। इसे गले में धारण किया जाता है तथा सोना का बना होता है। आजकल हार में रत्नों को जड़ा जाता है।
कर्ण पुष्प-
कर्णपुष्प कानों में डाले जाने वाले सोने के रिंग होते हैं। इससे कानों की सुन्दरता बढती है। इसके अतिरिक्त शरीर को फूलों से सजाया जाता है। गले में फूलों की हार, कलाईयों पर फूलों या सोने के कंगन तथा बालों में फूलों के गजरे लगाये जाते हैं।
मेहंदी-
मेहंदी एक ऐसा श्रृंगार है जो न केवल सुन्दर लगता है बल्कि शरीर के लिए लाभदायक भी होता है। इसे अमुमन हाथों, अंगुलियों तथा हथेली पर लगाया जाता है। महावर भी एक प्रकार की मेहंदी ही होती है। इसको पांवों में लगाया जाता है। तीज पर महिलाएं विशेष तौर पर इसका प्रयोग करती है। इससे पांव सुन्दर दिखते हैं।
चूड़ियां-
चूड़ियों को हाथों का गहना माना जाता है। यह सुन्दरता में बढौतरी करता है तथा इनके धारण करने से महिला या दुलहन नई नवेली दिखाई देती है। चूड़ियां प्रायः सोने, धातु या कांच की पहनी जाती हैं।
बाजूबंध-
बाजूबंध बाजू के ऊपरी हिस्सों में धारण किए जाते हैं। इन्हें आर्मलैट भी कहा जाता है। इनका आकार चूड़ियों जैसा तथा थोडा भिन्न दिखाई देता है। आमतौर मुगल काल, जयपुरी या राजस्थानी बाजूबंध काफी प्रचलित हैं।
आरसी-
आरसी भी अंगुठी ही होती है परन्तु इसे पांव के अंगूठे में धारण किया जाता है। इस पर आमतौर शीशा जड़ा होता है। इससे महिला या दुलहन स्वयं तथा अपने जीवन साथी की झलक देख सकती है।
केश सज्जा-
महिलाओं में केश सज्जा एक विशेष श्रृंगार है। इससे महिलाएं सुन्दर व मनमोहक दिखाई देती है। बालों में सुगंधित व पौष्टिक तेल का प्रयोग करने से बालों की चमक बनी रहे। बालों का अच्छी तरह से बांधने से दुलहन और शोभामान हो जाती है।
कमरबंध-
कमरबंध दुलहन की कमर पर बांधा जाता है, जिसको बैलेट भी कहा जाता है। यह रत्नों से जड़ित सोने या चांदी से बना होता है। इसको दुलहन के लिबास को कसने के लिए बांधा जाता है तथा यह दुलहन की सुन्दरता को भी बढाता है।
पायल-बिछवे-
ये चांदी के बने होते हैं। पायल पांव के टकने पर डाली जाती है, जोकि एक चेन के साथ जुड़े कुछ घूंघरूओं से बनी होती है। बिछवे भी चांदी से बने होते है और हाथों की अंगुठियों की भांति इन्हें पांव की अंगुठियां माना जाता है।
इत्र-
आजकल अनेक प्रकार के सुगंधित इत्र चले हुए है परन्तु पहले महिलाएं केसर जैसे सुगंधित पदार्थों की लकीरे माथे पर लगाती थी, जोकि सुन्दरता व सुगंध को बढाती है।
स्नान का विशेष महत्व है, इसके करने से शरीर में ताजगी आती है। मौसम के अनुसार ठंडे या गुनगुने पानी से स्नान करना लाभदायक तथा शरीर को सुन्दरता प्रदान करने वाला होता है। पानी में गुलाब, केवड़ा या नींबू का रस मिलाने से शरीर की सुन्दरता में निखार आता है। मौसम, शरीर की प्रकृति और शारीरिक बनावट के अनुसार वस्त्रों का चयन करना एक महत्वपूण कलां है। सुन्दर व रेशमी वस्त्र महिलाओं या पुरूषों दोनों के सौंदर्य में चार चांद लगा देते है।
विवाह के समय दुलहन के मुहं से दुर्गंध न आए इसके लिए इलायची, लौंग या केसरयुक्त पान का सेवन किया जाता है। लाल होंठों का कौन कायल नही होता है। पहले महिलाएं इसके लिए दंद्रासा लगाती थी, जोकि मुख को स्वस्थ व होंठों को लाल रखता है। आजकल अनेक प्रकार की लिपस्टिक बाजार में है। महिलाएं दांतों को सुन्दर बनाने और मसूडों को मजबूत बनाने के लिए मंजन लगाती थी तथा दांतों के बीच की लकीरों को काला करती थी। चेहरे की सुन्दरता बनाने के लिए महिलाएं अपने चेहरे पर कोई कृत्रिम तिल भी बनवा लेती है। यह तिल एक काली बिन्दी या मशीन से उकेरा जाता है। जीवन में आभूषणों का भी विशेष महत्व है। आमतौर पर सोना, चांदी, प्लेटिनम जैसी धातुओं के आभूषण धारण किए जाते है। सोना पहनने से न केवल सुन्दरता बढती है बल्कि शारीरिक तौर पर लाभ होता है।
योगा ऑफ डोगा
एक दिन हमने देखा, डोगा को करते योगा,
पर हर दिन सबने देखा, मानव को करते भोगा।
हमने था एक जगह पढ़ा, भोगा है एक रोगा,
भोगो की ओर भागे जोग, भोग नही जाए भोगा,
भोग रहेगा वही पर, मानव हो जाए डोगा,
तभी तो यह कहा है—‘भोगो न भोक्ता, व्यमेव भुक्ता’।
दोपहरी में क्या देखा तुमने, साधु को करते तपता,
तपने से भी नही तपा वो, पर हो गया सुखा पत्ता।
आत्मा के दोषों से मानव, नही कभी वह ऐसे छुटता,
तभी कहा शास्त्रों ने—‘तपो न तप्ता, व्यमेव तप्ता’।
पढा यही था हमने भी, होती बलवति तृष्णा,
तृष्णा है बड़ी बावरी, मन छलनी कर दे कृष्णा।
कभी न पूरी होत यह, करवाती है बड़ी घीर्णा,
यही कहा विद्वानों ने—‘तृष्णा न जीर्णा, व्यमेव जीर्णा’।
बीत रहा पल-पल मानव, काल नही बित पाता,
सुबह उठे जब शाम को आये, घर वहीं है पाता।
30 से बढ़कर 50 के हुए, हर साल है बढता जाता,
तभी तो कहा है मानुषों ने—‘कालो न याता, व्यमेव याता’।
सुख चैन सब कुछ छीना, हमें क्या करना होगा,
तो आइये सब मिलकर करें—‘योगा लाइक डोगा’।
कृष्ण के आर्य
--- क्या आप भी कर सकते हो इतना सुन्दर योगा---
दोहे
दोहे
कृष्णा तेरी झोपड़ी, गहन समुद्र पार।
जाएगा सो पाएगा, मोती धो दो-चार।।
चलती धरती देखकर, कृष्णा यूं पछताए।
रात भर सोते रहे, सुबह वहीं मिल जाए।।
आज करे सो कल कर, कल करे सो परसो।
परसो भी हम क्यू करें, जब आयेगा दिन तरसो।।
जल्दी-जल्दी रे मित्रा, जल्दी कुछ ना होये।
जो तुम जल्दी करें, तो पास रहे ना कोये।।
प्रभू वो सब दीजिए, जिसमें जगत समाये।
पडोसी पे कुछ हो यदि, वो मेरे पास आ जाये।।
कृष्णा खडा दिवार पर, ना करे किसी से बैर।
पर है सभी से दोस्ती, ना मनाऊ किसी की खैर।।
पतरे पढ-पढ़ जग में, पंड़ित सब जन होये।
मैं क्यू पंड़ित तब बनू, जेब काटे हर कोये।।
ईंट पत्थर जोड़ कर, घर लिया हमने बनाये।
वृद्ध हुए मां-बाप तो, उनको दिया भगाये।।
बात करो जो साधु की, उसके पिता ना कोये।
ऊपर उठे जब साधु यदि, तो पिता सामने होये।।
पानी में बर्फ रहती, तारों में करंट बहता।
ऐसे ही तू समझ ले, अन्दर तेरे ही प्रभू रहता।।
अच्छा ढूढंन मैं चला, अच्छा मिला ना कोये।
जो मैंने खोजा स्वयं को, तो मुझसे अच्छा ना कोये।।
कृष्ण आर्य
आज की परिस्थितियों के आधार पर ये दोहे कबीर जयंती के अवसर पर लिखे गए है।
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