'कुल्हिया में हाथी'... एक विचार-जरा सोचिये, सृष्टि संवत --1972949125, कलियुगाब्द---5125, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा- विक्रमी संवत-2081
बुधवार, 10 सितंबर 2025
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बुधवार, 20 अगस्त 2025
वेद की ऋचाएं ही थी गोपियां ?
भगवान श्रीकृष्ण की महानता का बखान करना सहज नहीं है। उनके जीवन में गोपियांे का महत्ता प्रकाश रहा है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण सदैव गोपियों में रमण करते थे तथा नित्य उन्हीं के चिंतन में लगे रहते थे। इतना ही नही, वह गोपियों के वस्त्र चुराने, रासलीला करने तथा अपना अधिकतर समय उन्हीं के साथ व्यतीत करते रहते थे। परन्तु श्रीकृष्ण का जीवन इतना उत्कृष्ट था कि आमजन द्वारा उन्हें समझना तो दूर, पढ़ना भी आसान नहीं है।
श्रीकृष्ण जन्मजन्मातरों के ऋषि रहे। सत्य सनातन वैदिक साहित्य में उनके विषय में बड़ा गहरा चिंतन दिया है। यहां गोपियों का सूक्ष्म अर्थ बड़ा गहन और स्मरणीय दिया है। गो का अर्थ गाय तथा हमारी इन्द्रियां दोनों होता है। अपनी इंद्रियों के स्वभाव को समझने, परखने और यथानुकूल सात्विक आचरण करने वाले स्त्री-पुरुष को गोपी या गोप कहा गया है। श्रीकृष्ण भी ऐसे ही एक गोप थे, जो अपनी इंद्रियों को वासना रहित बनाने में लीन रहते थे। अतः इंद्रियों के आचरण को शुद्ध करने में प्रयासरत रहने के कारण ही उन्हें गोपिका रमण भी कहा गया, इसे ऐसे ही समझना चाहिए।
सोलह हजार गोपियों का सत्य-
पुराणों में श्रीकृष्ण की सोलह हजार गोपियां बताई गई है और वह सदैव उन्हीं में रमण करते रहते थे। इस संबंध में गर्ग मुनि महाराज ने सुन्दर व्याख्या करते हुए गर्ग संहिता में वेद की ऋचाओं को भी गोपियां कहा हैं। वेद के मंत्रों को ऋचाएं कहते हैं। ब्रह्मचारी कृष्णदत्त की पुस्तकों में भी ऐसा ही स्वीकार किया है। अतः वेद की ऋचाओं अर्थात् वेद के गोपनीय मंत्र ही गोपियां है।
महर्षि ब्रह्मा से लेकर जैमिनी और ऋषि दयानन्द पर्यन्त सभी ने चार वेद स्वीकार किए हैं। इनमें सृष्टि का सम्पूर्ण ज्ञान समाहित है। इन चार वेदों में सम्मिलित ऋग्वेद में ज्ञान, यजुर्वेद में कर्म, सामवेद में उपासना तथा अथर्ववेद में विज्ञान विषय निहित है, जिनमें कुल 20,346 मंत्र हैं। इनमें से भगवान श्रीकृष्ण को सोलह हजार से अधिक वेदमंत्र कंठस्थ थे। इतना ही नहीं श्रीकृष्ण इन्हीं वेदमंत्रों के अर्थों को समझने एवं उनमें छुपे रहस्यों पर नित्य अनुसंधान करते और यथानुकूल आचरण करते थे। श्रीकृष्ण इन्हीं वेदमंत्र रूपी गोपियों में सदैव रमण करते थे।
इस कार्य में वह इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें कभी खाने-पीने तक का भी आभास नहीं रहता था। ब्रह्मचारी कृष्णदत्त की पुस्तक ‘महाभारत एक दिव्य दृष्टि’ के अनुसार ‘श्रीकृष्ण को सोलह हजार आठ वेद की ऋचाएं कण्ठस्थ थी।’ इसका उल्लेख मैंने अपनी पुस्तक ‘कर्मयोगी कृष्ण’ में भी किया है। श्रीकृष्ण ने अपने जीवन का अधिकतम समय इन्हीं वेद की ऋचाओं अर्थात् गोपियों के साथ व्यतीत किया। परन्तु आधुनिक काल में इसे भगवान श्रीकृष्ण की 16108 गोपियां (रानियां) बना दिया है, जोकि अर्थों का अनर्थ ही समझना चाहिए।
राधा रमण-
लोकाचार में यह प्रचलित है कि श्रीकृष्ण की 16108 गोपियां थी। श्रीकृष्ण उनमें राधा से विशेष प्रेम रखते थे और वह सदैव राधा के साथ एकान्तवास में रमण रहते थे। यह स्थूल वाक्य है परन्तु यदि इसका सही अर्थ समझे तो इसमें भी श्रीकृष्ण की महानता का ही चित्रण होता है। परन्तु तथाकथित विद्वानों ने इसे भिन्न शरीरों से जोडक़र भगवान श्रीकृष्ण को बदनाम करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। इससे समाज में अनेक भ्रांतियों ने जन्म ले लिया और अंतरिक्ष को दूषित किया। अतः लोकाचार में राधा को कहीं कृष्ण की सखी, माता, पुत्री या मामी दिखाया गया है, जिसे कपोल-कल्पित समझना चाहिए।
ऋग्वेद के भाग-1, मंडल-1, मंत्र 2 में राधस शब्द का प्रयोग हुआ है। इसका अर्थ समस्त सुखों एवं वैभव का प्रतीक बताया है। ऋग्वेद (2/3,4,5) के मंत्रों में सुराधा शब्द श्रेष्ठ धनों के रूप में प्रयुक्त हुआ है। ऋग्वेद के ही एक मंत्र में राधा एवं आराधना शब्द को शोध कार्यों के लिए प्रयोग किया गया है। वस्तुतः सनातन वैदिक साहित्य में राधा शब्द संसार, ऐश्वर्य एवं श्री इत्यादि को धारण करने के लिए प्रयोग हुआ है। ऋग्वेद (1,22,7) के एक मंत्र में कहा है।
विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः। सवितारं नृचक्षसम्।
यहाँ गोपियां हमारी इन्द्रियों तथा राधा आत्मा को कहा गया है। इसका काव्यांश अर्थ है कि ‘वह सब के हृदय में विराजमान, सर्वज्ञाता, सर्वद्रष्ट्रा जो राधा को गोपियों (इंद्रियां) से निकालकर ले गए’, वह ईश्वर हमारी रक्षा करें। अतः वह इन्द्रिय दोषों से हमारी आत्मा (राधा) की रक्षा करने वाला ईश्वर ही है।
अर्थात् श्रीकृष्ण अपनी आत्मा रूपी राधा को गोपियां अर्थात् इन्द्रिय दोषों से निकाल कर एकांत में रमण करते थे। इसका अर्थ हुआ कि श्रीकृष्ण योग में इतने लीन रहते थे कि वह अपनी राधाई आत्मा को गोपीय (इंद्रिय) दोषों से दूर रखते थे। अतः श्रीकृष्ण की आत्मा सदैव एक द्रष्ट्रा की भूमिका में रहती थी। उनका स्वयं पर इतना नियंत्रण होता था कि वे अपनी पांचों ज्ञान इंद्रियों को किसी दोष की ओर आकर्षित नहीं होने देते थे। इतना ही नहीं, वह अपनी आंतरिक प्रेरणा से इंद्रिय दोषों के संस्कारों को आत्मा और चित्त पर भी नहीं पड़ने देते थे। इसके लिए श्रीकृष्ण सदैव चिन्तन, मनन और निदिध्यासन में रत रहते थे। इसलिए ही महर्षि दयानन्द सरस्वती ने श्रीकृष्ण को जीवन में कभी कोई अधर्म कार्य नहीं करने का प्रमाणपत्र दिया है। ब्रह्मचारी कृष्णदत्त ने भी उन्हें आप्त पुरुष स्वीकार किया है। अतः राधा का पर्याय आत्मा और गोपिकाओं का दस इंद्रियां एवं उनकी वासनाओं को समझना चाहिए।
कैसे शुद्ध होगा ब्रह्मांड-
जब ब्रह्मांड की किसी भी धरा पर ईश्वरीय व्यवस्थाओं का लोप होता है तो उससे उत्पन्न नकारात्मक प्रभाव से अन्तरिक्ष दूषित होने लगता है। इससे जीवों को उत्तम वृष्टि, सद्भावनाओं से युक्त विचारधारा तथा खाद्य पदार्थों की कमी होने लगती है तथा व्यवस्थाएं चरमरा जाती हैं। ब्रह्मचारी कृष्णदत्त के अनुसार ‘सुक्ष्म शरीर से अन्तरिक्ष में रमण करने वाली आत्माओं को देवता कहते हैं’। अर्थात वे आत्माएं अपने सूक्ष्म शरीर के माध्यम से सृष्टि पर दृष्टिपात करती हुई स्वछंद रूप से गमन करती हैं।
ऐसी स्थिति में मुमुक्षु (मोक्ष के निकट) एवं सृष्टिद्रष्टा आत्माएं ईश्वर की प्रेरणा और व्यवस्था से धरा पर जन्म लेने का संकल्प लेती हैं ताकि व्यवस्थाओं में सुधार कर समाज में धर्म का पुनरुत्थान हो सके। इसी से ब्रह्मांड का शौधन होता है। इस तथ्य को स्वयं श्रीकृष्ण ने गीता संदेश में अर्जुन के सामने प्रकट करते हुए भी कहा कि...
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे
अर्थात् संसार में जब-जब धर्म की हानि होती है, अत्याचार और अनाचार बढ़ता है तो उन (कृष्ण) जैसी आत्माएं संसार में पदार्पण करती हैं और लोगों को धर्म अर्थात् कर्त्तव्यपथ पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। इतना ही नहीं, ईश्वरीय व्यवस्थाओं की स्थापना के लिए ऐसी दिव्य आत्माएं युग-युग में जन्म लेती हैं।
अतः श्रीकृष्ण एक ऐसी महान आत्मा थे, जिन्होंने व्यवस्थाओं के सुधार के लिए कभी धर्म के मार्ग का त्याग नही किया। उनका जीवन न केवल युगों तक मानव जाति को प्रेरणा देता रहेगा बल्कि संसार के लिए सदैव अनुसंधानात्मक विषय रहेगा। उनके विषय में फैली गलत धारणाओं का समाप्त करने से ब्रह्मांड का शौधन भी होगा।
धन्यवाद।
डॉ. के कृष्ण आर्य
गुरुवार, 14 अगस्त 2025
पूतना एक महामारी थी ?
बुधवार, 30 जुलाई 2025
मैं अमीर हूँ!
मैं अमीर हूँ!
मैं सुबह को खाऊँ, रात को खाउऊँ
मैं खाँऊ ऊल-जुलूल,
वह क्यूँ टोके, क्यूँ मुझे रोके,
तुम रहे क्यों मुझको बोल,
सुनने की मुझे आदत नहीं,
मैं ऐसे ही खुश रहता हूँ।
क्योंकि मैं अमीर हूँ!
रात को मैं क्लब में जाऊँ,
चार बजे घर को आऊँ,
खाना खाँऊ ना सोने जाऊँ
बारह बजे तक बाहर न आऊँ,
किया क्या रातभर मैंने,
ये क्यूँ मैं तुमको बतलाऊँ।
क्योंकि मैं अमीर हूँ!
बाद दोपहर मैं पढऩे जाऊँ,
पैंट ऊंची सर्ट सिलाऊँ,
तंग वस्त्र से अंग दिखाऊँ,
ऊंचे सैंडल की चाल चलाऊँ,
कहेे कोई तो उत्पात मचाऊँ,
सूनो तुम! हम ऐसे ही रहते हैं।
क्योंकि हम अमीर हैं!
होटल पर मैं नाश्ता खाऊँ,
नाश्ते में आमलेट मँगवाऊँ,
रात चढ़ें बोतले ले आऊँ,
बैठ संगी संग पैग बनाऊँ,
कोई कहे तो उसे समझाऊँ,
जाओ! नही तो अन्दर कराऊँ।
क्योंकि मैं अमीर हूँ!
मां-बाप से जुबाँ लडाऊँ,
व्यवहार शुन्यता उनसे दिखलाऊँ,
आचारहीन सा आचरण अपनाऊँ,
‘केके’ उससे मैं डरता जाऊँ,
किसी और को क्या बतलाऊँ,
जब विचार उसके मलीन है।
क्योंकि वह अमीर है!
डॉ. के कृष्ण आर्य ‘केके’
गुरुवार, 17 जुलाई 2025
चिड़ियां
चिड़ियां
एक चिड़िया, अनेक चिड़ियां,
दाना चुगने जाएं चिड़ियां
भोर भए उठाएं चिड़ियां,
गीत सुरीले सुनाए चिड़िया, अनेक चिड़ियां।
सूरज संग लाए चिड़िया,
फैला पंख हर्षाए चिड़िया,
राग रसीला गाए चिड़िया,
मन मधुर बनाए चिड़िया, अनेक चिड़ियां।
तिनका चुनकर लाए चिड़िया,
घोंसला सुन्दर बनाए चिड़िया,
कीट पतंग खाए चिड़िया,
जीवन मनोहर बनाए चिड़िया, अनेक चिड़ियां।
ची-ची करती आएं चिड़ियां,
संग ओरों को लाएं चिड़ियां,
प्यास कैसे वो बुझाएं चिड़ियां,
मुस्कान लबों पर लाएं चिड़िया, अनेक चिड़ियां
चोंच से गंध मिटाए चिड़िया,
झूंड में उडऩा सिखाए चिड़ियां,
एकता का पाठ पढ़ाएं चिड़ियां,
एक रस रहना बताएं चिड़ियां, अनेक चिड़ियां।
दुःख में संग रहे चिड़ियां,
सुख में घूमने जाएं चिड़ियां,
सुन्दर आसमां बनाएं चिड़ियां,
‘केके’ को जीना सिखाए चिड़िया, अनेक चिड़ियां।
डॉ. के कृृष्ण आर्य ‘केके’
गुरुवार, 26 जून 2025
मेरा देश
मेरा देश
आओ भारत भूमि की, तुम्हें कथा सुनाता हूँ।
वो मेरा देश है, जो मैं तुम्हें बताता हूँ ।।
जम्मू कश्मीर से कन्या कुमारी,
है कौन वह नही जिसने जाना,
विविधताओं की क्यारी में,
है मानुष बन सब जग माना,
उसी भेद को आज, मैं तुम्हें बतलाता हूँ ।
पठार की धरती और तुमने,
चाय बागान को नहीं देखा,
कुदरत की मनमोहकता और,
झरनों के कलरव को नहीं देखा,
उसी मोहकता का गान, आज मैं तुम्हें सुनाता हूँ,
छत्तीस प्रदेशों का देश यह,
जिन पर केंद्र करता है राज,
सरकार यह करें सुनिश्चित,
कैसा हो हमारा समाज,
उसी समाज की परिकल्पना, आज मैं तुम्हें बताता हूँ।
तय समय पर तय हो वर्षा,
फसल लहलाए खलियानों में,
अन्न, धन से होवे पूर्ण,
रस रहे भरा जुबानों में,
उसी रस की महत्ता, आज मैं तुम्हें सुनाता हूँ।
जहाँ रही मानव की महानता,
आपस में रही बेहद समानता,
जिस कारण हम रहे विश्वगुरु,
उन को क्यूँ जाते हैं भूल,
उन्हीं गुणों की महानता, आज मैं तुम्हें सुनाता हूँ।
शौच, सन्तोष, तय, स्वाध्याय,
जहाँ अपनाते नित प्रणिधान,
सत्य, अहिंसा, अस्ते, ब्रह्मचर्य,
जहाँ अपरिग्रह का नित हो पालन,
जीवन उच्च आदर्शों को, आज ‘केके’ तुम्हें सुनाता हूँ।
आओ भारत भूमि की, तुम्हें कथा सुनाता हूँ।
वो तेरा भी देश है, जो मैं तुम्हें बताता हूँ ।।
डॉ. के कृष्ण आर्य ‘केके’
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खतरे में धरती भ गवान ने वायुमंडल को संतुलित रखने के लिए सभी जीवों को उनके कर्मों के अनुसार विभिन्न योन...
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क्यू पैदा होता है हर वर्ष रावण ! भारत की देव भूमि पर अनेक ऋषि-मुनि तथा महापुरूष समय-समय पर जन्म लेते रहे हैं। इस धरती को जहां राम...
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कलियुग के आगमन की निशानी है, नागक्षेत्र हरियाणा प्रदेश को भगवत-भूमि के नाम से जाना जाता है। इसके कदम-कदम की दूरी पर महापुरूषों के...

