'कुल्हिया में हाथी'... एक विचार-जरा सोचिये, सृष्टि संवत --1972949125, कलियुगाब्द---5125, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा- विक्रमी संवत-2081
सोमवार, 5 सितंबर 2011
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इंसान एक खिलौना है ! ----------- इंसान एक खिलौना है, जिसे हंसना और रोना है। जिस राह पे वो जाए, उस राह सा होना है।। जीवन की ...
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कष्ट कष्ट नही जिनके जीवन में , वे भी कितने अभागे हैं। ऐसे दुःखों से क्या डरना, जो राह दिखाने वाले हैं।। द्वंद्व भाव में फंसे जो, मार्ग ...
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मीटिंग न्यू ईयर एक मीटिंग में आज हुआ यूं ऐसे, सोचते रहे कि ये हुआ कैसे। हम ताकते रहे एक दूसरे की ओर, वो चले गए यूं घूरते सब ओर।। उसने पू...
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मैं आदमी हूँ! भावनाओं के समर में, मैं खड़ा अकेला हूँ, सोच विचार थकता रहूँ, मैं ही सब झेला हूँ। रात गुजर जाए यूँ ही, ना कुछ मैं कहूँ, ...
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पंछी की दुनिया उल्लास भरे और भोर भए, चहचहाहट सी आवाजें करते हैं। पंखों की फडफ़ड़ाहट से, आसमां में खूब ...
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