वो है !

वो है ! 
वो है
जिसे देखा नही है,
वो भी है
जिसे जानते भी नही है,
पर वो भी है
जिसे देखा भी है, जिसे जानते भी है
परन्तु मानते नही है।
वो क्या है ?

वो है
जो सुक्ष्म है,
वो भी है
जो स्थूल भी है,
पर वो भी है,
जो न सुक्ष्म है और स्थूल भी नही है,
परन्तु जो सबका कारण है।
वो क्या है ?

वो है
जो समिधा है,
वो भी है
जो अग्नि भी है,
पर वो भी है
जो न समिधा है और अग्नि भी नही है,
परन्तु जो जलाए रखता है।
वो क्या है ?

वो है
जो मन से है,
वो भी है
जो वचन से भी है,
पर वो भी है
जो मन का नही, वचन का भी नही है,
परन्तु जीवन का आधार है।
वो क्या है ?
वो कृष्ण है, वो कर्म है!


                                कृष्ण कुमार ‘आर्य’





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