-अन्तिम संस्कार-
सुबह-सुबह फोन आया, है दादी बिमार,
जल्दी से घर पर, आकर करो दीदार,
भागदौड़ कर खाना छोड़ा, जा पहुंचे घरद्वार,
घर पहुंचकर देखा तो, दादी गई स्वर्ग सिधार,
देखकर हालत दादी की, लगा चिल्लाने पूरा परिवार,
कोई बैठा रोये पास में, कोई लगा रोने जाकर बाहर,
बेटी रोये आंसु बहाये, कोई थोड़ा पानी मंगवालो,
बेटा बोला पिता से, दो आंसु आप भी टपकालो,
देख हालत दादी की, परपोता पानी लाये,
कभी वह इधर जाये, कभी दवाई खिलाये,
अब कुछ नही होगा बेटा, पिता यह समझाये,
हाथ जोड़ खड़ा हुआ, जब धरती पर लिटाये,
नहला-धुलाकर तैयार कर, की चलने की तैयारी,
धरती में लेटी दादी की, होने लगी पूजा भारी,
आसपास की औरतें भी, घर पहुंची बहुत सारी,
देखकर रोना आता था, थी छटा अति न्यारी,
आसपास के लोग वहां, लगे यूं करने चर्चा,
उमर थी बड़ी सारी, सो करना होगा खर्चा,
पंडि़त से दादी का, भरवा दो स्वर्ग पर्चा,
बड़ा करने में भी इनके, नही है कोई हर्जा,
बड़ों की आज्ञा पाकर, पोता सीढी बनाए,
सोने की थी सीढी वो, जो मोक्षधाम पहंचाए,
घी, सामग्री और खील बताशें, खरीज ली मंगवाये,
चलते हुए राह में यह, सब दादी पर बरसायें,
सब कुछ तय होने पर, दादी को लिया उठाये,
घर से बाहर निकलते ही, लुगाई गीत सुरीले गाये,
पीछे-पीछे औरते और, आगे पुत्र-पोत्र जाये,
हंसते-रोते फिर सभी, शमशान घाट को आयें,
खील बिखरे पुत्र राह में, पोता पैसे बरसाये,
हाथ पेंट दिये बाबू, राह से पैसे उठाये,
सम्भाल कर रखना इन्हें, ना तिजौरी खाली होये,
दूग्गी, पंजी और चवन्नी, ली सबने जेब में पाये,
सोचने पर सोच रहा था, ये कैसा था व्यवहार,
सोचने पर सोच रहा था, ये कैसा था व्यवहार,
देखने में तो कटु सत्य था,
पर था अलग आचार,
सुनने में तो आया था, वहां
जाना होगा दिल को मार,
कहने को तो कहते थे सब, पर
था ये अन्तिम संस्कार,
कृष्ण कुमार ‘आर्य’