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सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

इंसान एक खिलौना है !


इंसान एक खिलौना है !

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इंसान एक खिलौना है,

      जिसे हंसना और रोना है।

जिस राह पे वो जाए,

उस राह सा होना है।।

जीवन की नदिया में,

एक बूंद सा पानी है।

सुख में वो उड़ता जाए,

दुःख में बहता झरना है।।

बचपन में बढ़कर वो,

        जवानी में खिलता है।

अधेड़ में ऊधड़ जाए,

प्राणों का रेला है।

काम की गठरी लिए,

क्रौध में रहना है।

लोभ से गिरकर वह,

अहंकार में मिटना है।।

अपनों की बगिया में,

        ना अपना ठिकाना है।

उस राह पे सब जाएं,

जिसका नही निशाना है।।

माता तो अपनी वो,

पिता जो सहारा है।

भ्रात, पूत और सब नाते,

उन्हें भूल ही जाना है।।

जीव की फूलवारी में,

        कुदरत सुहाना हो।

हे ईश ! अनुभूत तेरा,

        केके को होना है।।

इंसान एक खिलौना है,

        जिसे हंसना और रोना है।

जिस राह पे वो जाए,

उस राह सा होना है।।


आर्य कृष्ण कुमार ‘केके’

गीत-‘जीवन एक बगिया है’ के सुर में गाया जा सकता है।

 

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