आग
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एक आग से सब जन उपजे,
एक आग सब मर जाए।
कैसी-कैसी अग्नि है ये,
सुने तो सब डर जाए॥
एक आग है भूख-प्यास की,
पेट की आंत सिकुड़ जाए।
कुत्तों से भी बदतर हो वे,
छीन कर रोटी ले जाए।।
एक आग लगी जो दिल में,
विचारों को जलाती जाए।
मन-बुद्धि को मलिन करे,
सच वो जान ना पाए॥
एक आग लगी जब तन में,
वासना यूं ही बढती जाए।
कौवे जैसी हालत हो उसकी,
और चरित्रहीन वह कहलाए॥
एक आग लगी जब मन में,
व्यक्ति कुंठित होता जाए।
धन, बुद्धि, शांति उसके,
द्वेष से सब जलते जाए॥
एक आग प्रभु-प्रेम की,
निश्चल भाव जो होए।
हो यह आग सही यदि,
केके दर्शन ईश के पाए॥
आर्य कृष्ण कुमार ‘केके’