ठंडी हवा
आज वो ठंडी हवा,
उतनी ठंडी नही लगती।
गंध तो बहुत है,
पर अच्छी नही लगती।।
बंसत के बाद फिर,
गर्मी यूं कहर ढ़ाने लगती।
ए.सी. तो चलते हैं बहुत,
पर ठंडी नही लगती॥
गंध तो बहुत है,
पर अच्छी नही लगती।।
भूख-प्यास बिन तुम,
जब खाए जात चटपटा।
पेट बिगडऩे पर तुम्हें,
खट्टा नींबू भी खट्टा नही लगता॥
गंध तो बहुत है,
पर अच्छी नही लगता।।
मात-पिता की कुटिया में,
थी ठंडक़ बड़ी लगती।
दारुण के आने पर वह,
ठंडक़ उतनी ठंड़ी नही लगती॥
गंध तो बहुत है,
पर अच्छी नही लगती।।
कुल्फी तो प्रेम की जो,
खूब है जमने लगती।
जब ढ़ीली हो स्नेह लड़ी,
कोठी अपनी भी बेगानी लगती।।
गंध तो बहुत है,
पर अच्छी नही लगती।।
सुन री तू ठंडी हवा,
आज क्यूं तू अनजानी लगती।
केके जब करता संवेदन तेरा,
तेरे ठंडक वही पुरानी लगती।
गंध तो बहुत है,
पर अच्छी नही लगती।।
आर्य कृष्ण कुमार ‘केके’