पंछी की दुनिया लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
पंछी की दुनिया लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 21 अप्रैल 2025

पंछी की दुनिया

पंछी की दुनिया


        उल्लास भरे और भोर भए,

        चहचहाहट सी आवाजें करते हैं।

        पंखों की फडफ़ड़ाहट से,

        आसमां में खूब मचलते हैं

ऐसा है कौन बताओ, ये पंछी की दुनिया है।।

        नीलांबर में उडक़र जाते, 

        पेड़ों पर भूख मिटाते हैं।

        प्रकृति के आंगन में वे,

        खुशियां खूब लुटाते हैं।

फिर बतलाओ कैसी, ये पंछी की दुनियां हैं।।

        कुदरत की मोहकता में,

        वास वृक्ष पर बनाते है।

        अपने चूजों की सेहत खातिर, 

        स्नेह का ग्रास खिलाते हैं।

ऐसा हैं कौन बताओ, ये पंछी की दुनियां है।।

        पंख फैला और दिन ढ़ला,

        घोंसले में अपने आते हैं।

        शांति का पढ़ा पाठ वे,

        भोर भए उड़ जाते हैं।

क्या जान न पाए, ये पंछी की दुनियां है।।

        वे गाते गीत सुरीले अपने,

        और अपनी धुनें बजाते हैं।

        अपनी दुनिया में रहकर वे,

        दुनिया को जीना सिखाते है।

क्या तुम न जानो, ये पंछी की दुनियां है।।

        सुख-दुख का अहसास उन्हें भी,

        सबका आभार जताते हैं।

        दाना कोई डाले उनको,

        नतमस्तक हो जाते हैं।

अब तुम भी जानो, ये पंछी की दुनियां है।।

        आजादी से वह रहना चाहें,

        पिंजरा कब ठिकाना है।

        आसमां मापने वाले को,

        बंधन कब सुहाना है,

दासतां में रोने लागे, ये पंछी की दुनिया है।।

        दिनभर दाना चुनकर लाते,

        चूजों संग रात बिताते हैं।

        तोड़ घोंसला मार दे कोई,

        तो बहुत रुदन मचाते हैं।

केके अब समझो उनको, ये पंछी की दुनिया है।।

     

                                                                                                डॉ0 के कृष्ण आर्य


 

भारत माता की जय