उठो बहना चीर सम्भालों,
अब खुद ही तो लड़ना है।
मर जाओ या मार गिराओ,
अब किस से ड़रना है।।
झूठ-मूठ के रिश्ते फरेबी,
अब नही है कोई करीबी।
जन्म-जात से हर कोई शत्रु,
अब उनको ही मसलना है।
मर जाओ या मार गिराओ,
अब किस से ड़रना है।।।
स्वयं को कर मजबूत स्वयं तुम,
कब तक आस लगाओ गी।
दोहन करता हर जो जन,
उसका सिर कुचलना है।।
मर जाओ या मार गिराओ,
अब किस से ड़रना है।।।
हाथ आबरु पर जिसने डाला,
नहीं बचा, किया मुहं काला।
फाड पेट, कर सर कलम उसका,
फिर किससे यूं हिचकना है।।
मर जाओ या मार गिराओ,
अब किस से ड़रना है।।।
शर्त यहीं बस मेरी बहना,
तुम खुद, खुदी को रखना संभाल।
सामने आए अगर कोई खिलजी,
सीना चीर उसी का देना।।
मर जाओ या मार गिराओ,
अब किस से है ड़रना।।।
आर्य कृष्ण कुमार (केके)
जब किसी महिला को प्रताडित किया जा रहा है। वह दूसरों से सहायता मांगती है परन्तु उसका साथ देने के लिए कोई सामने नहीं आता है। ऐसी स्थिति में एक कविता के माध्यम से क्या कहता है, आओ जानें।