बुधवार, 21 मई 2025

भारत माता की जय

 

                         भारत माता की जय

        देश की शान ये देश का गान है,
        बिन परिचय के ही देश की पहचान है, 
        दुश्मन में समाये हुए भय की धमक है,
        भारती के भाल की यह अनुठी चमक है,
        पापी को छलनी करता यह एक उद्घोष है, 
शत्रु की छाती पर जब बोले, भारत माता की जय। 
हमारे वीर सेनानी जब, मैदान में डट जाते हैं,
भारत की मर्यादा पर, शीश काट कर लाते हैं,
सिंहासन भी हिलने लगता, जहां पांव जमाते हैं, 
खून की गर्मी से उनके, धरती सिमट जाती है,
रण में भरी हुंकार से, सर-ताज सिहर जाते हैं,
दुश्मन का कलेजा यह सुन कांपे, भारत माता की जय।
निहत्थों पर गोली चला, नापाक वीरता दिखलाते हैं,
पहलगांव घाटी में कायर, बहनों का सिंदूर मिटाते हैं,
चोरी और सीना जोरी, फिर वे कर इतराते हैं,
ड्रोन, मिसाइल, वारहेड से, करके वार दिखाते हैं,
मिट्टी में मिल गए तब, सेना हिन्द से टकराते हैं,
आकाश भी बोले अब ये आवाज, भारत माता की जय।
न्यूक्लियर की हवा निकाली, हमारे वीर जाबांजों ने,
नौ ठिकाने असुरों के, ग्याहर ऐयरबेस उजाड़े हैं,
आसमां में उड़ते जहाज, ला धरती पर पछाड़े हैं,
गोली बदले गोला खाते, फिरते मुहं छिपाते हैं,
दहाड़ मारकर रोने लागे, अपनी मौत बुलाते हैं,
खून की गर्मी शांत हुई यह सुन, भारत माता की जय।
सिंदूर का बदला लेने को, सिंदूर ऑपरेशन चलाते हैं,
आधी रात के तारों में, जलता सूरज दिखलाते हैं,
सीना छलनी किया वैरी का, नही भाग वो पाते हैं,
देश करे नमन उन्हें, जो पाक को पाताल दिखाते हैं,
‘केके’ सेना माँ भारती, अद्भुत शौर्य है दर्शाती,
ब्रह्मोस की गर्जना से सुन वे कांपे, भारत माता की जय।


                                                                                    डॉ. के कृष्ण आर्य ‘केके’


शुक्रवार, 2 मई 2025

तुलना


                                       तुलना

         एक दिन मैं बैठ अकेला, 

        चाहता था पुस्तक पढना,

        चलता-चलता मन चला, 

तो लगा करने किन्ही, दो में तुलना।

पहले तुलना की मैने, 

        तराजू के दो पलडों की,

        इनकी भी क्या मजबूरी है,

एक ही रस्सी से बंधना,

फिर भी मैं कर रहा क्यूं, दोनों की तुलना।

पलडों का हुआ निर्माण समान, 

        एक बड़ा न दूसरा दयावान,

        दोनों करते एक दूसरे का मान,

        मजबूरी है उनकी अलग रहना,  

यूं ही मैं करने लगा उन, दोनों की तुलना।

एक मूल संग रहते दोनों,

स्वभाव है उनका दूरी पर रहना, 

एक की चाहत रहती है लेना,

दूसरा चाहता है हमेशा कुछ देना,

इसलिए मैं कर रहा हूं इन, दोनों की तुलना।

सरल निगाहें देख रही,

        तुला तो है एक ही,

        किसे बताऊ अच्छा, 

        यह समझ मैं पाया ना,

हां फिर क्यूं मैंने चाहा करना, दोनों की तुलना।

दो हाथ दिये हम सबको,

इनका प्रयोग तुम ऐसे करना,

एक को लेने की ना पड़े जरूरत,

दूसरे की चाह रहे कुछ देना,

तभी तो ‘केके’ कर रहा है इन, दोनों में तुलना।

          

                                                                     डॉ0 के कृष्ण आर्य ‘केके’

 

भारत माता की जय