इन्सान हूँ ?
इन्सान बनना चाहता हूँ !
लाखो कि भीड़ में इंसानियत को तलाश रहा हूँ ...
पर कोई है जो डरा हुआ है , सहमा हुआ है
और अपने वजूद को बचाने के लिए दर-दर भटक रहा है ...,
आखिर मिल गया वो , पर निराश है , नाराज है , दुखी है ,
आसमान कि ओर निहार रहा है
परन्तु आसमान से किसी बदलाव की उम्मीद ने आँखे मैली कर दी है .
सच्चाई के थपेड़ो ने चेहरे की लालिमा हर दी है .
अब तो वह दुखी है सच बोल कर,
तंग आ चुका है झूठ को नकार कर,
लाचार है, बेबस है,
किसे सुनाये सच,
रहा नहीं कोई सुनने वाला,
सब बिकाऊ है, न कोई टिकाऊ है,
इन्सान और उसका ईमान बिक रहा है,
फिर भी इसी उम्मीद के सहारे चला जा रहा हूँ, चला जा रहा हूँ...
कि शायद इस भीड़ में कोई मिल जाये,
जो हो इन्सान,
जानता हो उस इन्सान को,
जो ये कह दे कि...
मै इन्सान हूँ !
डॉ0 के कृष्ण आर्य ‘केके’
Good
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