शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

हिन्दी दिवस

10 जनवरी विश्व हिन्दी दिवस पर विशेष

 

    भाषा किसी भी प्राणी की एक विशेष अभिव्यक्ति है, जिससे वह आसपास और समाज को अपने क्रियाकलापों की जानकारी देते हैं। भाषा न केवल मानवमात्र के लिए उपयोगी होती है परन्तु जीव-जन्तु भी इससे अछूते नही हैं। पक्षी अपनी चहचाहट, पशुओं का राम्बना (आवाज) तथा जानवर अपनी गर्जना से ही सभी सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। इसी प्रकार मानव भी अपने रहन-सहन की आदतों, क्षेत्र की परिस्थितियों तथा समाज के व्यवहार से बोलना सीखते हैं और भावनाओं को अपने भाव द्वारा प्रदर्शित करते हैं। इतना ही नही, भाषा उनकी जीवनशैली को ही प्रदर्शित करती हैं।

          विश्व में विभिन्न भाषाओं के बोलने वालों की कमी नहीं है। दुनिया में लगभग 7139 भाषाओं को बोला जाता है। विभिन्न देशों में अधिकतर बोले जाने वाले वाक्य वहां की बोली का रूप धारण कर लेते हैं, जिससे भाषा का प्रादुर्भाव होता है। दुनिया में मुख्य रूप छः भाषाएं से बोली जाती है। इसमें सबसे अधिक लगभग 145 करोड़ लोग अंग्रेजी भाषा बोलते है, चाईनिज 113 करोड़, हिन्दी लगभग 61 करोड लोगों द्वारा विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जानी वाली भाषा है, वहीं स्पैनिस भाषा को लगभग 56 करोड़, फैंच को लगभग 31 करोड़ तथा अरबी भाषा के जानकार लगभग 27 करोड़ लोग हैं। 

    इतना ही नही, किसी देश के अधिकतर भागों में बोली जाने वाली भाषा भी विभिन्न क्षेत्रों में बोली का रूप ले लेती है। भारत भी इससे अछूता नही है। भारत में मूल भाषा हिन्दी सहित कुल 22 भाषाएं अनुसूचित हैं, जो देश के विभिन्न प्रदेशों में बोली जाती है। स्थानीय स्तर पर इन्हीं भाषाओं में कार्यों के निष्पादन को प्राथमिकता दी जाती है। भारत के विषय में कहावत है कि...

कोस-कोस पर बदले पानी, तो चार कोस पर वाणी

          भारत एक बहुभाषी देश है, जहां लगभग 780 बोलियां बोलचाल का माध्यम है। यदि किसी एक प्रदेश जैसे हरियाणा के विषय में समझने का प्रयास किया जाए तो, उसके एक ही शब्द को जीन्द में जो बोला जाता है तो उसी शब्द का भिवानी या सिरसा में रूपांतरण हो जाता है। परन्तु हमारी मूल भाषा हिन्दी ही है। हिन्दी को पूरे उत्तर भारत में बोला एवं समझा जाता है। हिन्दी भारत की मूल और आत्मिक भाषा है, जिसको बच्चा भी समझ और बोल सकता है। भारत के बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल, झारखंड, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा उत्तराखंड सहित कुछ अन्य प्रदेशों में हिन्दी बोली जाती है। भारत में सबसे अधिक लगभग 57 करोड़ लोग हिन्दी को अपनी मूल भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं, जो देश की कुल आबादी का लगभग 44 प्रतिशत से अधिक है और लगातार बढ़ भी रहा है। भारत के अतिरिक्त श्रीलंका, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल, दक्षिणी अफ्रीका, पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में भी हिन्दी बोलचाल की भाषा के रूप में प्रयोग की जाती है।

          विश्व की प्रमुख भाषाओं में हिन्दी का विशेष स्थान है। प्राचीन भारत की एक नदी सिन्ध से हिन्द और सिन्धु से हिन्दु तथा सिन्धी से हिन्दी की उत्पत्ति मानी जाती है। भारत की राजभाषा भी हिन्दी ही है, जिसका मूल स्त्रोत संस्कृत भाषा को माना जाता है। हिन्दी एवं संस्कृत दोनों भाषाओं की लिपी देवनागरी है, इसमें 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं। इस भाषा को बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है, जबकि कुछ भाषाएं दाईं से बाईं ओर लिखी जाती है। भारत में हिन्दी को राजभाषा के रूप में 10 जनवरी 1949 को अपनाया गया था। इसके बाद भारत सरकार ने वर्ष 2006 में इस दिन को विश्व हिन्द दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत की ताकि हिन्दी को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलवाई जा सके। 

    व्यक्ति अपनी भाषा में ही स्वयं को पोषित कर सकता है। अपनी मातृ भाषा हिन्दी में संवाद, व्यवहार, लेखन और पठन करने से हम न केवल अपनी संस्कृति को बढ़ावा दे सकते हैं बल्कि अपनी परम्पराओं तथा मूल्यों को भी सहजता से व्यक्त कर सकते हैं। आज अनेक लेखक विश्व स्तर पर हिन्दी को वैश्विक पहचान देने के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं। केन्द्र एवं हरियाणा सरकार भी हिन्दी भाषा लेखकों को साहित्य अकादमी के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा रहा है। इससे अनेक साहित्यकार अपनी रचनाओं से हिन्दी को नई पहचान दिलवा रहे हैं।

    हमारे प्राचीन ग्रन्थ वेदों की रचना हिन्दी की जनक कही जाने वाली संस्कृत भाषा में ही हैं, वहीं रामायण, महाभारत तथा अनेक साहित्य हिन्दी एवं संस्कृत भाषा में लिखे गए है। हिन्दी भाषा भारत और भारत से बाहर रहने वाले लोगों को जहां एक कड़ी में पिरोने का कार्य कर रही है, वहीं इससे एक-दूसरे के मर्म समझना भी आसान बनाती है। अतः हिन्दी को वैश्विक स्तर पर पहुँचाने की जिम्मेदारी प्रत्येक भारतीय को समझनी चाहिए।

अन्त में कहना चाहँुगा कि हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए हमें, स्वयं हिन्दी के प्रति समर्पित होना चाहिए। हिन्दी को भाषा नही बल्कि एक संस्कृति का द्योतक और जीवनशैली है। एक कवि ने कहा कि ...

हिंद देश हिन्दुस्तां हमारा, हिंदी हमारी पहचान।

भारत के माथे की बिन्दी हिन्दी, देश का गौरव गान॥

 

कृष्ण कुमार आर्य


गुरुवार, 2 जनवरी 2025

न्यू ईयर

 

मीटिंग न्यू ईयर



एक मीटिंग में आज हुआ यूं ऐसे,

सोचते रहे कि ये हुआ कैसे।

हम ताकते रहे एक दूसरे की ओर,

वो चले गए यूं घूरते सब ओर।।

उसने पूछा ये क्या हुआ,

साथी ने कहा गुस्से में है बोस।

तीसरे ने बोला क्या कहें जनाब,

हमने कहा ‘हैप्पी न्यू ईयर’ बोलो साहब।।

एक ने कहा तीन शब्दों का ये नारा,

लागत है सबको प्यारा।

बोलकर देखो ! खुश हो जाएं बोस,

‘हैप्पी न्यू ईयर’ बोलने में फिर कैसा संकोच।।

इसने बोला, उसने बोला, सबने बोला,

अब खेल हो गया न्यारा।

हर्ष का हुआ तब माहौल उधर,

जब बोला सबने ‘हैप्पी न्यू ईयर’।।


                                                                                    कृष्ण कुमार ‘आर्य’


शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

कर्मयोगी कृष्ण



        
         कर्मयोगी कृष्ण पुस्तक का लेखन एक वैचारिक क्रांति और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन पर अन्तरिक्ष में फैली भ्रांतियों को दूर करने का एक छोटा सा प्रयास है। इस पुस्तक में भगवान श्रीकृष्ण से पहले की 60 पीढियों से लेकर उनके बाद की दो पीढियों का विवरण दिया है। 
          इसमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की वास्तविक घटनाओं, उनके द्वारा ग्रहण की गई शिक्षाएं, वैज्ञानिक उपलब्धियां, मूल द्वारका तथा श्रीकृष्ण की दिनचर्या विशेष रूप से दी गई हैं। 
        इतना ही नही एक तत्त्वद्रष्टा के तौर पर श्रीकृष्ण द्वारा युद्ध के मैदान दिया गया गीता का मूल उपदेश भी पुस्तक में दिया है। इस पुस्तक का दृष्टिकोण अभी तक श्रीकृष्ण के जीवन पर लिखी गई पुस्तकों से बिल्कुल अलग है। यह एक अनुसंधानात्मक पुस्तक है, जिसे लिखने में लगभग 40 महीने का समय लगा है। 




 

मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

‘श्याम आएंगे’


    ‘श्याम आएंगे’

     


        मेरी खोपड़ी के द्वार आज खुल जाएंगे,

        श्याम आएंगे, 

        श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

        मेरी खोपड़ी के द्वार आज खुल जाएंगे,

        श्याम आएंगे। 

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

श्याम आएंगे तो सुबह उठ जाऊंगी,

तारों की छावों में घूम आऊंगी,

फिर मैं करूं योगाञ्जयास,

लेकर सबको मैं साथ,

श्याम आएंगे।

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

श्याम आएंगे तो हवन रचाऊंगी,

खाने को हलवा बनाऊंगी,

उनसे लेकर आर्शीवाद,

फिर बांटू मैं प्रसाद,

श्याम आएंगे।

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

श्याम आएंगे तो छत पर जाऊंगी,

सूरज को नमन कर आऊंगी,

करके धारण मैं प्रकाश,

होने स्वस्थ की ले आस,

श्याम आएंगे।

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

        श्याम आएंगे तो समझ मैं पाऊंगी,

कैसे जीवन की धार बनाऊंगी,

उनका कैसा था सदाचार, 

        पाएं हम भी कर सुधार, 

        श्याम आएंगे, 

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

श्याम आएंगे तो मुरली सुनाएंगे,

ऋचाओं का गायन कराएंगे,

उससे मिट जाए भ्रमजाल,

कृष्ण हो जाए निहाल,

श्याम आएंगे।

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे।   

कृष्ण कुमार ‘आर्य’ 

 

बुधवार, 6 नवंबर 2024

कुशल शिल्पी का शिल्प है-- ‘कृष्णश्रुति-कर्मयोगी कृष्ण’

 एक कुशल शिल्पी का शिल्प है-- ‘कृष्णश्रुति-कर्मयोगी कृष्ण’ 



            भारत ऋषि परम्परा से अनुप्राणित दिव्य भूमि रहा है। इस दिव्य परम्परा में योगिराज शिव तथा ब्रह्मा से लेकर जैमिनि पर्यंत ऋषियों ने अपनी मनीषा से विश्व को आध्यात्मिक तथा भौतिक विज्ञान से साक्षात्कार कराया है। श्रीकृष्ण के अलौकिक जीवन में मानव जीवन की सम्पूर्णता दृष्टिगोचर होती है। श्रीराम ने जहाँ अपने जीवन से सामाजिक मर्यादाओं को स्थापित किया वहीं श्रीकृष्ण ने मानवमात्र को कर्म की महता के प्रति अनुप्रेरित किया है। 

        आर्य कृष्ण कुमार ने श्रीकृष्ण के जीवन चरित पर आधारित ‘कृष्णश्रुति-कर्मयोगी कृष्ण’ लिखा है। मैंने इस पुस्तक की मूल प्रति अच्छे से पढ़ी है। लेखक, पुस्तक में श्रीकृष्ण के जीवन तथा इतिहास के साथ न्याय करते हुए नज़र आ रहे हैं। श्रीकृष्ण चरित से सम्बन्धित फैले भ्रामक विचारों से अन्तरिक्ष को कुलीन करने का उद्देश्य लेखक ने प्रारम्भ में ही घोषित कर दिया है। 

         श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में भ्रम फैलाने का सबसे अधिक काम ’सुखसागर’, ’प्रेमसागर’ तथा ’भागवत पुराण’ आदि पुस्तकों के प्रचारक एवं कथावाचकों ने किया है। इन सबने माखन चोर, मटकी फोड़, रास रचैया तथा नचकैया आदि आक्षेप लगाकर श्रीकृष्ण को उच्छृंखल ठहराने का प्रयास रहा है। लेखक लिखता है कि ‘योगबल से स्वयं को तपाने वाले श्रीकृष्ण का चरित्र अग्नि में तपे सोने के समान था, जिन पर कोई आक्षेप ठहर ही नहीं सकता।’ श्रीकृष्ण ने अनेक युद्धों का संचालन करते हुए भी कभी अपनी दिनचर्या का त्याग नहीं किया। अतः वह जीवनपर्यन्त एक महान् अग्निहोत्री, महान् योगी, महान् वैज्ञानिक तथा महान् ब्रह्मचारी बने रहे। 

        लेखक ने पुस्तक के माध्यम से अनेक अनसुलझी गुत्थियों को सुलझाने का भी सफल प्रयास किया है। उदाहरणतः ’श्रीकृष्ण की आत्मा के विषय में धारणा है कि वह क्षीर सागर में निवास करती थी।’ यहाँ लेखक क्षीर सागर को मोक्ष के रूप में व्याख्यायित करते हुए लिखते हैं कि क्षीर सागर वह स्थान है जहाँ निरन्तर पवित्रता हो। यहाँ पर जीवात्माएं अपनी ज्ञानन्द्रियों से विभिन्न रसों की अनुभूति करते हुए स्वच्छन्द विचरण करती हैं। ऐसा वह स्थान केवल अन्तरिक्ष ही हो सकता है। जो विशुद्ध है, सीमातीत और सदैव है। श्रीकृष्ण जैसी अनेक आत्माएं वहां से ही ब्रह्मांड की घटनाओं को निहारती रहती हैं।

        भागवत आदि पुस्तकों में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का घृणित व्याख्यान है। महाभारत में युवा श्रीकृष्ण और उसके बाद के जीवन एवं कार्यों का वर्णन है। इन ग्रन्थों में श्रीकृष्ण का अपूर्ण जीवन मिलता है। किन्तु लेखक ने अपनी विवेकशील लेखनी से भगवान श्रीकृष्ण जी के जन्म से पूर्व की परिस्थितियों से लेकर निर्वाण गमन तक के सम्पूर्ण जीवन को सप्रमाण क्रमबद्ध प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है। लेखक ने जहां जैन परम्परा के ग्रन्थों को उद्धृत किया है, वहीं ब्रह्मचारी कृष्णदत्त जी (पूर्वजन्म के श्रृंगी ऋषि) के सुषुप्ति अवस्था में दिए गए प्रवचनों से महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किए हैं। 

        लेखक ने श्रीकृष्ण की वंशावली को बड़े पुरुषार्थ तथा प्रामाणिकता से प्रस्तुत कर जहाँ हमारे प्राचीन इतिहास का गौरव बढ़ाया है वहीं श्रीकृष्ण के द्वारा किये अद्भुत कार्यों का प्रभावी ढंग से प्रस्तुतिकरण किया है। ऋषि सांदीपनि के गुरुकुल में विद्याध्ययन, गृहस्थ जीवन तथा युद्धों में रहते हुए भी श्रीकृष्ण की दिनचर्या कैसे नियमित थी, यह केवल इसी पुस्तक में मिलेगा अन्यत्र कहीं नहीं। पुस्तक के पठन में कहीं-कहीं तो पाठक शून्य सी अवस्था में पहुँच जाता है। यथा द्वारिका में यदुकुल का विनाश तथा श्रीकृष्ण का निर्वाण प्रकरण बहुत मार्मिक तथा हृदयस्पर्शी है। सारांश रूप में कहूँ तो लेखक ने श्रीकृष्ण के जीवन चरित के प्रत्येक प्रकरण को कुशल शिल्पी की भाँति प्रामाणिक तथा प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है।

       इस पुस्तक को लिखने के लिए लेखक के पुरुषार्थ की प्रशंसा करता हूँ तथा उनके सुन्दर स्वास्थ्य एवं उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। विश्वास हैं कि पाठक ‘कृष्णश्रुति-कर्मयोगी कृष्ण’ को पढक़र भगवान श्रीकृष्ण के जीवन तथा इतिहास पर गर्व करेगा। मेरी इच्छा है कि यह पुस्तक प्रत्येक घर में तथा प्रत्येक युवा एवं विद्यार्थी के हाथ में पहुंचे, जिससे वे श्रीकृष्ण के आदर्श चरित्र को समझकर अपने स्वयं के जीवन को ऊँचा उठा सकें। 

        इस सफल लेखन पर मैं, लेखक श्री कृष्ण कुमार आर्य जी को पुनः हृदय से शुभ आशीर्वाद प्रदान करता हूं।


मंगलाभिलाषी

संत विदेह योगी, महर्षि दयानन्द सेवा सदन, कुरुक्षेत्र, हरियाणा 

                                                                                                                 कृष्ण आर्य


मंगलवार, 5 नवंबर 2024

पुस्तक ‘कर्मयोगी कृष्ण’ का विमोचन

             






पुस्तक ‘कर्मयोगी कृष्ण’ का विमोचन 
हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी ने आज पंचकूला में आयोजित तीसरे पुस्तक मेले के उदृघाटन अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की जीवनी पर आधारित पुस्तक ‘कर्मयोगी कृष्ण’ का विमोचन किया। इस पुस्तक का लेखन सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग हरियाणा में कार्यरत जिला सूचना एवं जनसम्पर्क अधिकारी कृष्ण कुमार आर्य ने किया है। मुख्यमंत्री ने इस कार्य के लिए लेखक को बधाई और ऐसी कृति की रचना के लिए शुभकामनाएं दी।            
         उन्होंने मेले में सभी पुस्तक स्टॉलों का निरीक्षण किया। उन्होंने कहा कि पुस्तकें हमारी मार्गदर्शक होती है और अच्छी पुस्तकें तो हमारे जीवन की धारा को भी बदल देती है। इसलिए सभी को पुस्तकों का स्वाध्याय नियमित तौर पर करना चाहिए। उनके साथ पुस्तक मेले के आयोजक एसईआईएए के चेयरमैन श्री पी के दास, कालका की विधायक श्रीमती शक्ति रानी शर्मा सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजद थे। लेखक कृष्ण कुमार आर्य ने पुस्तक के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि इस पुस्तक मंे श्रीकृष्ण की पूरी जीवनी को लिखा गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जीवन का आधार कर्म है और कर्म की सिद्घि केवल कर्तव्य पालन के मार्ग से होकर ही गुजरती है। कर्महीन और कर्त्तव्य विमुख व्यक्ति कभी धर्मात्मा नहीं हो सकता है। उनके इसी उपदेश को श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित नव संकलित पुस्तक ‘कर्मयोगी कृष्ण’ में सहेजा गया है। 
          भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि 
 ’’न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किश्चन। नान वाप्तम वाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि’’ 
 भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि तीनों लोकों में मेरे लिए कोई भी कर्म नियत नही है अर्थात् करने योग्य नही है, न मुझे किसी वस्तु का अभाव है और न ही आवश्यकता है, फिर भी निष्फल भाव से कर्म करता हूँ। इसी को आधार बनाकर लेखक ने इस पुस्तक की रचना की है। 

          आर्य ने बताया कि पुस्तक में श्रीकृष्ण की जीवनशैली को प्रदर्शित करने के लिए विषय-वस्तु को 244 पृष्ठों पर ग्यारह अध्यायों में विभक्त किया गया है। इसमें लगभग 130 मंत्र, श्लोक एवं सूक्तियां तथा पुस्तक को समझने में सहायक आठ आलेख दिए हैं। पुस्तक का पहला अध्याय ‘श्रीकृष्ण की वशांवली’, दूसरे व तीसरे अध्याय में उनके बाल्यकाल की प्रमुख घटनाएं तथा अध्याय चार में गोपी प्रकरण व कंस वध का विवरण दिया है। पुस्तक के पाँचवें अध्याय में श्रीकृष्ण द्वारा महर्षि सांदीपनी एवं अन्य ऋषि आश्रमों में ग्रहण की गई ‘शिक्षाओं तथा वैज्ञानिक उपलब्धियों’ का वर्णन किया गया है। यह अध्याय अनेक दिव्य अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञान तथा सुदर्शन चक्र, सौमधुक, मौनधुक, सौकिक यान एवं सोमतीति रेखा का अन्वेषण श्रीकृष्ण की महानता का परिचय देता हैं। 
          उन्होंने बताया कि इसके छठे अध्याय में ‘द्वारका की अवधारणा’ तथा श्रीकृष्ण की दिनचर्या को प्रदर्शित करने वाला सातवां अध्याय ‘दैनंदिनी विमर्श’ दिया है। पुस्तक के आठवें अध्याय में महाराज युधिष्ठिर के ‘राजसूय में कृष्णनीति’ तथा नौवें अध्याय में ‘श्रीकृष्ण का तात्त्विक संप्रेषण’ पर विस्तार से उल्लेख है। जैसा कि माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण एक उत्कृष्ट एवं प्रभावी वाक्चार्तुय एवं वाक्माधुर्य से धनी थे, जिसका प्रत्यक्ष दर्शन पुस्तक में होगा। इसके साथ ही दसवें अध्याय में ‘जय में श्रीकृष्ण नीति’ तथा अन्तिम ग्यारहवें अध्याय में ‘महां-भारत में श्रीकृष्ण के महां-प्रस्थान’ का वर्णन किया है। 
पुस्तक में श्रीकृष्ण के यौगिक बल, दिव्य उपलब्धियां, उत्कृष्ट वैज्ञानिकता, महान तत्त्ववेत्ता, जनार्दन एवं ब्रह्मवेत्ता के तौर पर परिचय करवाया गया हैं। इसके साथ ही अकल्पनीय श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े अनेक ऐसे तथ्यों को प्रस्तुत किया गया है, जिनको पढक़र विशेषकर नई पीढ़ी में विशेष आभा का संचार होगा। श्रीकृष्ण के महानिर्वाण की घटना का प्रस्तुतिकरण पाठक को शुन्य की अवस्था में ले जाने वाला है कि किस प्रकार श्रीकृष्ण के सामने ही यदुवंश और उनके पुत्र-पौत्रों की हत्या की गई। परन्तु वे लेशमात्र भी अपने धर्म एवं कर्म से विमुख नही हुए। उनका कहना है कि पुस्तक को पूर्ण करने में लगभग 40 माह का समय लगा। पुस्तक में महाभारत, गर्ग संहिता, वैदिक साहित्य, उपनिषद्, श्रीमद्भगवत गीता तथा जैन साहित्य सहित लगभग दो दर्जन पुस्तकों के संदर्भ सम्मिलित किए गए हैं। पुस्तक सतलुज प्रकाशन द्वारा पंचकूला से प्रकाशित की है। उन्होंने बताया कि पुस्तक का पाँचवा एवं सातवाँ अध्याय अद्भूत है, जो श्रीकृष्ण को भगवान एवं योगेश्वर श्रीकृष्ण होने का परिचय देते हैं तथा इसके बाद के अध्याय श्रीकृष्ण की महानता के दिव्य दर्शन करवाते हैं।

कृष्ण कुमार आर्य 

मैं आदमी हूँ!