मै अकेला हूं !
पर ये कैसे समझू,
कि मै अकेला हूं !
माता की गर्भारी में,
पिता की समझदारी में,
और दादा की दुलारी में,
मैं अकेला हूं।
शहर की बाजारी में,
फूलों की बगियारी में,
और बीवी की बुखारी में,
मैं अकेला हूं।
शियारों की यारी में,
औरतों की पंचायरी में,
और सड़क पर सवारी में,
मैं अकेला हूं।
खटिया पर बीमारी में,
परेशानी व लाचारी में,
और शमसान की अगियारी में,
मैं अकेला हूं॥
कृष्ण कुमार ‘आर्य’