डर लगता है


             ख़ुशी से
मुझे खुश होने से डर लगता है,
जो न पाया उसे खोने से डर लगता है
मेरे अश्क बनके तेज़ाब न जला दे मुझको,
इसलिए रोने से डर लगता है
महफ़िल में भी सन्नाटा सुनती  हूँ,
मुझे तनहा होने से डर लगता है
ख्वाब टूटकर चुभेंगे ज़िन्दगी भर,
मुझको सोने से डर लगता है
तुम्हारी याद काफी है मेरे लिए,
तुम्हारे साथ होने से डर लगता है
पता नहीं किस बात पे शर्मिन्दा हूँ,
मुझे अपने ज़िंदा होने से डर लगता है

                                                                      by Sonal Rastogi

पृथ्वी दिवस

                          खतरे में धरती

      गवान ने वायुमंडल को संतुलित रखने के लिए सभी जीवों को उनके कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में पैदा किया है, ये सभी जीव वायुमंडल का संतुलन बनाये रखने में सहायता करते है.  मनुष्य द्वारा श्वास लेने के लिए आक्सीजन की आवश्कता होती है, हमें यह आक्सीजन पौधों से प्राप्त होती है. जीवो द्वारा श्वास से छोड़ी जाने वाली कार्बनडाइआक्साइड को पौधे अपने आहार के रूप में ग्रहण कर आक्सीजन छोड़ते है, जिससे वायुमंडल का संतुलन बना रहता है. इसी प्रकार मानव द्वारा त्यागे गए अपशिष्ट पदार्थो को चील, कौवे , सुअर इत्यादी  सेवन  कर धरती को साफ-सुथरा बनाये रखने में हमारी सहायता करते है और हानिकारक गैसों  को बढ़ने से रोकती है. 
     खतरा : पृथ्वी के चारों ओर 40 किलोमीटर की दुरी तक फैले गैस के आवरण को वायुमंडल कहते है. इसमें  नाइट्रोजन 78 प्रतिशत , आक्सीजन 21 प्रतिशत तथा शेष सभी गैसें 1 प्रतिशत होती है. इनमे कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा केवल   0.003 प्रतिशत होती है. कार्बनडाइआक्साइड गैस कि बढ़ोतरी वायुमंडल को गर्म करने का कार्य करती है. वाहनों  के धुएं, श्वाश प्रश्वाश तथा अन्य कार्यों से प्रतिवर्ष वायुमंडल में कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा बढ़ रही है. इसके फलस्वरूप गत 100 वर्षो के दौरान वायुमंडल में कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा में करीब  13 फीसदी कि बढौतरी हुई  है. कार्बनडाइआक्साइड  गैस की वृद्धि से ही वायुमंडल का तापमान बढ़ जाता है. इसे ग्लोबलवार्मिंग कहते है.
      पृथ्वी के चारों ओर  करीब 13 से 26 किलोमीटर की दुरी तक गैस का एक रक्षात्मक कवच होता है , जिसे ओजोन परत कहते है. यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों को सोख लेती है . ग्लोबलवार्मिंग के कारण इस परत में छेद हो रहा . इस कारण सूर्य से आने वाली ये किरणे वायुमंडल को गर्म करती है और मानव सहित अन्य जीवो के शरीरों को नुकशान पहुचती है. इससे त्वचा कैंसर जैसी अनेक भयंकर बीमारियाँ होने की संभावना बढ़ जाती है.
      बचाव  : धरती को बचाने के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी अनेक संस्थाएं कार्य कर रही है, परन्तु लोगों की गैर जिम्मेदाराना हरकतों से इसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ रहा है. आदिकाल में समय पर वर्षा होती थी, समय पर मौष्म बदलते थे , न कभी अतिवृष्टि होती थी और न ही अनावृष्टि कि संभावना थी. इसके पीछे कारण तो अनेक है परन्तु उनमे उन लोगों का रहन सहन, खान पान , प्रक्रृति की रक्षात्मक प्रवृति तथा यज्ञ का मुख्य स्थान था . 
यज्ञ : यज्ञ को हवन भी कहा जाता है. यज्ञ करने से जहाँ वायुमंडल का शोधन होता है वही इससे बढ़ रही कार्बनडाइआक्साइड व कार्बनमोनोआक्साइड जैसी हानिकारक गैसे कम होती है. यज्ञ में डाले जाने वाले सुगन्धित  पदार्थों  व अग्नि के मेल से उक्त हानिकारक गैसे उपयोगी गैसों में बदल जाती है.
पौधे : पौधे हमारी प्रकृति के रक्षक है. ये हानिकारक गैसों का भक्षण कर उन्हें आक्सीजन गैस व अन्य पदार्थो में बदल देते है, जिससे हमें फल-फूल, औषधियां तथा अन्य खाद्य  पदार्थ  प्राप्त  होते हैं. अत: हमें पौधों का अधिक से अधिक रोपण करना चाहिए. पृथ्वी दिवस के अवसर पर हमारे लिए यह विचारणीय विषय है कि यदि हमने अभी भी धरती को बचने कि सुध नहीं ली तो वह दिन  दूर  नहीं  होगा  जब धरती हमारे सामने यह सवाल  अवश्य  करेगी  कि  'मेरी रक्षा कौन करेंगा'                 
                                            
   

तीन माताएं

                                        तीन माताएं

      वेदादि सत्य शास्त्रों में माता का विशेष स्थान बताया है. माता को निर्माता माना गया है. एक बच्चा माता के बिना अनाथ होता है, वह दर-दर की ठोकरे खाता फिरता है. इसी बात को जानते हुये एक आत्मा, भगवान से प्रार्थना करता हुआ कहा रहा है कि हे प्रभु ! आप मुझे मृत्यु लोक में क्यों भेज रहे हो,वहा मुझ छोटे से बालक की रक्षा कौन करेगा, कौन मेरा पालन पोषण करेगा, कौन मुझे खिलाये-पिलाएगा तथा कौन सुलाएगा आदि आदि.
     भगवान ने उस आत्मा का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि मै तुम से पहले तेरी माता को भेज रहा हूँ , जोकि तेरी देखभाल करेगी , तुझे खिलाएगी , पिलाएगी , सुलायेगी और तुम्हारे लिए सब  काम करेगी . मै तेरे पालन-पोषण के लिए तुम से पहले एक नहीं तीन-तीन माताओ को भेज रहा हूँ .
1 .     जननी माता-- सबसे पहले मै तेरी जननी माता को भेज रहा हूँ , जोकि तेरे शरीर कि रक्षा करेगी , खिलाएगी व तेरी सभी जरुरतो को पूरा करेगी. तेरा मल-मूत्र साफ करेगी, तुझे सूखे में सुलायेगी और खुद गिले में रहेगी ,   इसलिए तुम भी कभी उसका निराधर मत करना . उसकी सेवा करना और हमेशा उसे खुश रखना .
2 .     गऊ माता -- दूसरी गाय भी तेरी माता होगी और वह तेरे सभी कष्टों का हरण करेगी. वह अपने दूध से तेरे शरीर को पुष्ट करेगी, अपने गोबर से तेरी आँगन में खुशबू बिखेरेगी और हानिकारक कीटो का नाश करेगी. तेरे शरीर में होने वाली बीमारियों को अपने मूत्र से दूर करेगी. इसलिए तुम उसकी भी सेवा करना मत भूलना. यही तेरा धर्म है
3 .     धरती माता -- धरती भी तुम्हारा तीसरी  माता कि तरह पालन पोषण करेगी . वह तेरे लिए अपने गर्भ से मिट्ठे फल , फूल , औषधियां पैदा करेगी और तुम्हारे शरीर को मजबूती प्रदान करेगी और  उसमें आने वाले सभी रोगों व कष्टों को नष्ट करेगी. अत: तुम कभी उस पर आंच मत आने देना और जब भी तेरी धरती माता पर संकट के बादल छायें तो उसकी रक्षा के लिए युद्ध के मदान में कूद पड़ना, इसके लिए चाहे तुम्हे अपने प्राणों कि बाजी भी क्यों न लगनी पड़े .
                                             साहित्यिक  विचार


पतित व उथित

                        पतित व उथित

        सभी महापुरुषों ने जीवन में कर्म की महता बताई है! शुभ कर्म मनुष्य को उन्नति के मार्ग पर ले जाता है, जबकि बुरे कर्म व्यक्ति को अवनति के राह पर धकेल देते है. परन्तु ऐसे भी कुछ लोग होते है जो कार्य करने की क्षमता रखते हुए भी. कार्य नहीं करते अर्थात जो व्यक्ति कार्य कर सकता है पर करता नहीं! ऐसे कामचोर लोगो को पतित कहते है. पतित लोगो का जीवन में कभी भला नहीं हो सकता. वे हमेशा दुखो के सागर में गिरते रहते है, उन्हें कोई नहीं बचा सकता.
         वे व्यक्ति जो शारीरिक तौर पर कुछ करने में असमर्थ होते हुए भी समाज व राष्ट्र के लिए कुछ करने की लालसा रखते है और उनके लिए अपना योगदान देते है उन्हे उथित कहते है, ऐसे कर्मशील लोग समाज व राष्ट्र के लिए प्रगति का मार्ग प्रशस्त करते है और वे हमेशा खुशियो से आनंद प्राप्त करते रहते है.
                                                                                 
                                             स्वामी विद्यानन्द 'विदेह'




यह आलेख 16 मार्च को दैनिक जगत क्रांति और 21 मार्च 2010 को दैनिक ट्रिब्यून के अंक में प्रकाशित हुआ है.

                                            नवरात्र बन सकते है नवप्रभात यदि...



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