Monday, November 28, 2011

होत है-


                               होत है-

1.    अ से बनता अकार है, उ से उकार होत है।
        म से मकार होवे है, ओउम् बने सब जोत है।
2.     सुख का मूल धर्म है, धर्म मूल धन होत है।
        निग्रह से धन संचय होत, पर ‌सेवा मूल श्रोत है।   
3.      जल से शुद्घ होत शरीर, सत्य से शुद्घ मन होत है।
       विद्या व तप से रे मानव,     शुद्घ आत्मा होत है।।
4.     पांच कोसो की जीवनी, इनमें सब कुछ होत है।
        इनके बिना तो आत्मा की, ना जगी कभी भी जोत है।।
5.      अन्न, मन, प्राण, ज्ञान व आनन्द पांच कोस होत है।
इनसे ही है बने शरीर और निर्मल आत्मा होत है।।
6.      अन्न शरीर का आधार है, निग्रह मन से होत है।
        प्राण, ज्ञान से बुद्घि को, आनन्द घन सब ओत है।।
7.      चार चीजों की चमक चांदनी, जीवन लक्ष्य होत है।
        धर्म, अर्थ व काम तो,        सार मोक्ष का होत है।

                                        कृष्ण कुमार आर्य


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