Wednesday, December 28, 2011

शब्द नही मिलते

          शब्द नही मिलते ?

एक विचार दिल में आया, लिखू मैं कुछ खाश,
सोच- विचार बैठा रहा, और करता रहा तलाश।
पहले ये लिखू या वो,  ऐसे भाव मन में आते,
थक-हार कर ‌बैठ जाता, जब शब्द नही मिल पाते।।
जीवन में हर व्यक्ति, चाहता है कुछ करना,
खुशियों के झरोखों से, पड़ता है कभी डरना।
अंधेर कोठरी की लौ में, हम स्वप्न देखा करते,
वे स्वप्न हम कैसे सुनाएं, जब शब्द नही मिलते।।
मां-बाप ने पाला हमको, छोड़ कर पीना-खाना,
बड़े होकर हमने फिर, त्याग दिया आना-जाना।
उन बुजूर्गों की बेबशी पर, चाहकर भी नही लिखते,
मैं लिखना तो चाहता हूं, पर शब्द नही मिलते।।
        प्रेम-पाश में बंद कर, सब कुछ दिखे झूठा,
        लड़के से लड़की बोले, है समाज बहुत खोटा।
        गात से मिले गात पर उनके, दिल कभी ना मिलते,      
        ऐसे प्रेम पर मैं क्या लिखूं, जब शब्द नही मिलते।।
सड़क किनारे ‌खड़ा बाल एक, बालों को यूं फाड़े,
भूख से पेट-कमर हुए एक, हर रा‌हगीर को पुकारे।
देख जनाब सब यह जाते, न हाथ मदद को बढ़ते,
कैसे कहूं दयनीय इसको, जब शब्द नही मिलते।।
बंसत में खिले फूलों से, महके हर एक क्यारी,
रंग-बिरंगे कुसुमों की, थी खुशबू अति न्यारी।
देख सूंघ कर मन हर्षाये, जब पुष्प वहां थे खिलते,
कैसे करू स्तुति इनकी, जब शब्द ही नही मिलते।।
एक शराबी बैठ अकेला, करता मद्यपान छुपके,
दूर खड़ा हो पुत्र भी, छोड़े धूएं वाले छल्लके।
ऐसे अनोखे पितृ पुजारी, मिलकर भी नही मिलते,
इस दशा पर मैं क्यू बोलू, जब शब्द नही मिलते।।
एक भिखारी एक पुजारी, मंदिर में संग आंये,
भिखारी भीख से पुजारी झूठ से, सीधों को बहकाये।
इनकी दोस्ती ऐसी निराली, मिल बैठकर थे खाते,
कृष्ण करे बड़ाई उनकी, जब शब्द उसे मिल जाते।
                               

                            कृष्ण कुमार ‘आर्य’


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