Thursday, June 28, 2012

कथनी-करनी


                              कथनी-करनी


कथनी करनी दोऊ बहना,
दोनों का बड़ा नाम,
कथनी तो कहती रहे,
पर करनी करती काम।
          कथनी बड़ी, कहती रही,
          करना होगा काम,
          नही हो हम सब,
          जाएंगे हो बदनाम।
कथनी कहे, मैं कर दूंगी,
ऐसे अनोखे काम,
देखेगी दुनियां, ना समझ पाये,
ये कैसे हुए धनवान।
          कथनी कहे, मैं आऊंगी,
          लेकर प्रभू का नाम,
          सांय होते-होते सब,
          पा लू बड़े ई-नाम।
करनी यू करती चले,
न थके ना परेशान,
सुबह उठे तो शाम ढले,
बस करना उसका काम।
          करनी ऐसे कर रही,
          बिन जाग, बिन सोये,
          धन-धान्य, वैभव सारे,
          सब पास उसके होये।   
करनी को कृष्ण कहे,
है यह सुख मूल।
कथनी देखत जात है,
ना करनी करती भूल॥
करनी एक कारण है,
पर कथनी है निर्मूल।
करनी है फल दायनी,
          पर कथनी जीवन शूल॥
सौ ग्राम की जीभ ये,
ढोये सौ किलो का भार।
जीभ तो कह कर छुप गई,
पर शरीर होये परेशान॥
कथनी मूल जुबान की,
करनी शरीर से होये।
जुबान तो फड़फडाने की,
पर शरीर जाए लड़खडाये॥
‘कृष्ण कबीरा यू कहें-
कथनी मीठी खांड सी,
करनी विष की लोए।
कथनी छोड़ करनी करे तो,
विष भी अमृत होए॥

कृष्ण कुमार ‘आर्य
            

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