Thursday, August 12, 2010

तीज-

         
           मधु बरसाती है हरियाली तीज की फुहारें



     भारत देश में वर्ष के प्रत्येक माह को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। यहां हर मास का अपना महत्व होता है। भारतीय संस्कृति में चैत्र माह से फाल्गुन महीना तक अनेक त्यौहार आते हैं। ये सभी त्यौहार अपने में इन्द्रधनुषी छटा को समेटे हुए होते है लेकिन इनको मनाया अलग-अलग ढ़ंगों से जाता है।
     हिन्दु संस्कृति में श्रावण मास का विशेष महत्व है। इस मास को सावन माह के नाम से भी जाना जाता है। वर्षा ऋतु होने के कारण इस मास को वर्ष का रजस्वला काल भी कहा जाता है। वर्षा के दो-तीन माह तक चलने के कारण इसको वर्ष का ऋतुकाल भी कहा जा जाता है। इस माह के दौरान बहुतायत मात्रा में वर्षा होने से धरती माता की उपजाऊ शक्ति में वृद्घि होती है। इससे बीज जल्दी अंकुरित होकर धरती के आंचल को जल्दी हरा भरा कर देते है।
     इसी माह के दौरान तीज उत्सव मनाया जाता है। हरा भरा होने के कारण इस त्यौहार को हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है। चारों ओर हरियाली को देख कर मन पुलकित हो जाता है और झूमने व नाचने का जी चाहता है। महिलाएं इस हरित मास की हरियाली से मचल कर चारों ओर हंसी-खुशी का माहौल पैदा कर देती है। बच्चे हठखेलियां करते है, सावन के गीत गाती हुई बालाएं नाचती, खेलती और झूमती है तथा वृद्घ आकाश में काले मेघों के नृत्यों से आनन्द विभोर हो जाते हैं।
      सावन को हरा मास भी कहा जाता है। हरा रंग खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। यही खुशहाली मन को हरने वाली होती है और मन में उत्साह व हौसला भरकर जीवन में नवीन चेतना का संचार करती है। हरा का अर्थ है हरने वाला यानि मन को हरने वाला तथा इसे मन के कष्टों व दुःखों को हरने वाला भी कहा जा सकता है। हरा भगवान को भी कहते हैं क्योंकि वह व्यक्ति के सभी कष्टों को हर लेता है और उसे समृद्घशाली बनाता है। इसीलिए भगवान को हरि के नाम से जाना जाता है। अतः इस मास का हरिमास भी कहा जाता है। इस संबंध में कवि की दो पंक्तियां सही चरितार्थ होती हैं।                   
                                  हरा जो हरने को चला, हरे वो मन की पीर।
                                 हरि मास में हरने को, हरि आवे हमारे तीर॥
       तीज उत्सव सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। तीज से कई दिन पहले ही लड़के, लड़कियां, महिलाएं और पुरूष इस त्यौहार की तैयारी में सराबोर हो जाते हैं। विभिन्न प्रकार के पकवानों की खुशबू से घर, आंगन और बाजार महक उठते है। गांव से बाहर बणी (खेतों) में सावन के गीतों की मधुर आवाज पक्षियों की चहचाहट को अनसुना कर देती है। पेड़ों की डालियों व घरों के दरवाजों पर झूला डाल कर किशोरियां मस्ती से झूलती व झूमती नजर आती है।
      पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस त्यौहार को माता पार्वती व शिव से जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि माता पार्वती ने अनेक जन्मों तक भगवान शिव की आराधना की परन्तु 108 वें जन्म पर भगवान शिव ने उनके सर्म्पण, त्याग व तप को स्वीकार कर उन्हें जन्मों की तपस्या का फल प्रदान किया। माना जाता है कि लम्बे समय अन्तराल के बाद शिव और पार्वती का मिलन श्रावण मास की तीज पर ही हुआ था। उनके मिलन की खुशी में लोग झूमने, नाचने और खुशियां मनाने लगे। इसके बाद यही झूमना लोगों के लिए झूलने का परिचायक बन गया।
       इसी कारण तीज से पहले नवविवाहिताओं को उनके मायके भेजने की प्रथा कायम हुई है। सावन मास प्रारम्भ होने से पहले ही विवाहित लड़कियों को उनके मायके लाया जाता तथा तीज के पश्चात वापिस ससुराल भेज देते है। तीज पर ससुराल पक्ष के लोग अपनी बहु के स्वागत व श्रृगांर के लिए श्रृगांरा भी लाते है, जिसको बाद में अपभ्रंशित होकर सिंधारा कहा जाने लगा है। सिंधारे में घेवर, कपड़े, चुडि़यां, मेहंदी तथा अन्य श्रृगांर का पूरा सामान भेजा जाता है।
       तीज के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति के प्यार और उनकी लम्बी आयु पाने के लिए उपवास रखती है। यह उपवास 24 घंटे की अवधि तक रखा जाता है। इस उपवास के दौरान महिलाएं न कुछ खाती है और न ही पीती है। इस अवसर पर महिलाएं स्वर्ण आभूषणों सहित 16 श्रृगांर करती हैं तथा माता पार्वती की पूजा अर्चना करते हुए तीज की कहानी सुनती है। इसके बाद महिलाएं उपवास को भंग करती है और अपने पति कर राह देखते हुए सावन के गीतों का इस प्रकार से गान करती हैं।              
                    ‘नन्हीं-नन्हीं बुंदियां, ये मां मेरी पड़ रही री।
         ऐरी कोई लाओ पिया न बुलाए, धड़कन मौरी बढ़ रही री’॥
       तीज के त्यौहार पर नवविवाहित महिलाओं को नए वस्त्र, जेवर, चुडि़यां, मिठाइयां तथा अन्य श्रृगांर का सामान भेंट किया जाता है। यह सामान दुल्हन के माता-पिता द्वारा भेजा जाता है। इसको ‘बाया’ कहा जाता है लेकिन दुल्हन अपनी सास कोे प्रसन्न रखने व पति के लिए उनका आभार व्यक्त करने के लिए सास को भेंट देती है, जिसमें पैसे, मिठाई तथा अन्य सामान होता है, जिसे ‘बाणा’ कहते हैं।
       तीज की मस्ती में झूमने के लिए महिलाएं फिर झूला झूलती हैं और सावन के मधुर गीतों का गान करती हैं। सावन में वट वृक्ष की शाखाओं पर झूलने का विशेष महत्व बताया जाता है। इसकी लम्बी-चौडी शाखाओं से छनकर आती फुंहारे युवतियों में नवचेतना भर देती है। तीज उत्सव के दौरान महिलाएं वृताकार घेरे में बैठकर तेल का दीपक जलाती हुई पार्वती माता का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। नाचती, गाती व मस्ती से सराबोर महिलाएं खूशी से ‘आज उतर कर सावन आया, दिवाना मुझे बनाने को’ जैसे गीतों से भाव विभोर हो जाती है।
       वैदिक मान्यताओं के अनुसार भारतीय संस्कृति में सभी त्यौहारों को मौसम और महीनों के महत्व के आधार पर होता है। तीज का त्यौहार भी इसी के दृष्टिगत मनाया जाता है। हमारी संस्कृति में त्यौहारों का संबध जीवन से होता है। जीवन को इन्द्रधनुषी रंगों से सजाने के लिए ये त्यौहार विभिन्न तरीकों से मनाए जाते है।
        इस संबंध में वैदिक विद्वान स्वामी विदेह योगी का कहना है कि सावन मास के शुक्ल पक्ष में मनाये जाने वाले तीज के त्यौहार का संबंध वर्षा ऋतु से है। इससे पहले झुलसाने वाली गर्मी से परेशान प्रत्येक जीव आसमान की ओर निहारता है और भगवान से इस कष्टदायी गर्मी से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना करता है। अपनी व्यवस्था के अनुसार सावन माह के दौरान बादल उमड़-उमड़ कर चारों ओर बरस जाते हैं। बादलों से घिरा आसमान को देख प्रकृति का कण-कण पुलकित हो उठता है।
       सावन में आसमान से पानी की फुंहार बरसती है। ये फुंहार पृथ्वी माता की तपिश को शांत कर उसकी उपजाऊ शक्ति में वर्धन करती है। आसमान से गिरने वाली इन फुंहारों के माध्यम से पृथ्वी माता पर मधु की वर्षा होती है, जिससे पृथ्वी अमृतरस दायिनी बन जाती है। इसलिए इस त्यौहार को मधुर्स्वा के नाम से भी जाना जाता है यानि इसे आसमान से मधु बरसाने वाला त्यौहार भी कहा जाता है।
       यह त्यौहार तीज के दिन मनाया जाता है। इसका संबंध चन्द्रमा से भी है क्योंकि किसी भी तीज के दिन ही चंद्रमा के ठीक प्रकार से दर्शन होते है। इसके बाद चांद के आकार व चंद्रकलाओं में वृद्घि होती जाती है। आसमान से पड़ने वाली फुंहारें जब चांद की चांदनी को चीरती हुई पृथ्वी माता के आंचल को भिगोती है तो वह सभी फल, फूल और औषधियों में रस भर देती है। वहीं चन्द्रमा की किरणें वर्षा की फुंहारों का भेदन करती हुई जब प्राणीयों के शरीरों तथा नेत्रों पर पड़ती है तो इससे शारीरिक व्याधियां नष्ट होकर आरोग्यता प्राप्त होती हैं।
       तीज का त्यौहार भारत के विभिन्न प्रांतों के साथ-साथ नेपाल में भी मनाया जाता है। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान सहित अन्य प्रान्तों में तीज को उनके तरीकों व रीति-रिवाजों से मनाया जाता है। तीज को गुजरात में गरबा, राजस्थान में सावन त्यौहार तथा पंजाब में पींग के नाम से मनाया जाता है। नेपाल के लोग इस त्यौहार को तीन दिनों तक बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस प्रकार यह त्यौहार न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत के तारों को जोड़ता है बल्कि भौगोलिक व सामाजिक ताने-बाने को एक सूत्र में पिरौने का कार्य करता है।
                                                                        
                                                                       कृष्ण कुमार ‘आर्य’

No comments:

Post a Comment

सूर्य की गति का द्योतक है उगादी

          देश में मनाए जाने वाले त्यौहार भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता के परिचायक हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने ऋतुओं के परिवर्तन,...