Sunday, October 14, 2012

क्यू पैदा होता है हर वर्ष रावण !


क्यू पैदा होता है हर वर्ष रावण !


भारत की देव भूमि पर अनेक ऋषि-मुनि तथा महापुरूष समय-समय पर जन्म लेते रहे हैं। इस धरती को जहां राम, कृष्ण तथा हनुमान जैसे मनीषी वीरों ने अलंकृत किया है वहीं रावण तथा कंस जैसे दुराचारियों ने सामाजिक मर्यादाओं को तार-तार भी किया है। राम ने अपने मर्यादित जीवन तथा कृष्ण ने गीता उपदेश से जहां समाज को बंधनमुक्त करने का कार्य किया वहीं रावण और कंस जैसे दुष्टों ने अपनी दुष्टता से समाज को बंदी बनाने में भी कमी नही छोड़ी। इसलिए त्योहारों के अवसर पर हम भी उन महापुरूषों के गुणों को धारण करने और अवगुणों को छोड़ने की शिक्षा देते रहते हैं।
समाज के उपकार के लिए ही हम इस प्रकार के कार्य करते हैं ताकि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन मधुर हो सकें परन्तु हमें इस बात का जरा सा भी ईलम नही है कि क्या हम इतनी योग्यता रखते हैं? जिससे भोले-भाले लोगों का सही मार्गदर्शन कर सकें या क्या हम उस ज्ञान को रखते है? जिसे दूसरे लोगों के लाभ के लिए बांटना चाहते हैं या वह शिक्षा हमारी पथप्रदर्शक है? जिसकी सहायता से हम समाज को बदलने की कामना रखते हैं या हमारा आचरण उसी स्तर का है? जैसा हम दूसरों को बनने का उपदेश करते हैं अर्थात क्या हम वो कृष्ण है, जिसने अधर्मियों को सजा देकर एक महा-न-भारत की स्थापना की थी या फिर वह राम हैं, जिसने रावण जैसे आतताई से छुटकारा दिला कर जीवन में आदर्शों का पुनः उत्थान किया था।
इन सभी सवालों का जवाब यदि नही है! तो फिर क्यूं हम उन भोले भाले लोगों को दिग्भ्रमित कर स्वयं तथा समाज को दोखा दे रहे हैं; क्यों उस झूठी शिक्षा का प्रचार कर रहे हैं, जो हमारा भी उपकार करने में सक्षम नही है तथा क्यों उस रावण के वध करने का नाटक कर रहे हैं; जोकि हर वर्ष फिर पैदा हो जाता है और लोंगों को फिर से उसे जलाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। काश! हम अपने आचरण से समाज को बदलने का जज्बा रखते, जिससे समाज में व्यवहारिक बदलाव दिखाई दे सकता। परन्तु अपने आचारण के विपरित कर्म करके हम कहीं समाज में बुराईयों को बढावा तो नही दे रहे है या उस पाखंड की ओर अग्रसर हो रहे हैं, जो हमें अन्दर ही अन्दर खोखला कर रहा है। क्या? हम रावण की उन राक्षसी वृतियों का प्रचार-प्रसार तो नही कर रहे, जो कि हर वर्ष रामलिला के मंच से दिखाई जाती है। इन सभी बातों का जवाब हमें ढूंढना होगा और यह पता लगाना होगा कि वह रावण! जिसको अपमानित करके हर वर्ष जलाते है, वह फिर दोबारा जन्म कैसे ले लेता है?
रावण को सिर्फ व्यक्ति ही नही बल्कि बुराइयों का प्रतिक भी माना जाता है। ये बुराइयां ऐसी हैं, जो समाज को घुन की तरह खाये जा रही है। ऐसी बुराईयां हैं, जिनके कारण समाज तथा राजतंत्र को लकवा मार रहा है, इन्हीं बुराईयों के कारण ही आज समाज में बहन और बेटियों को सम्मानित जीवन जीने के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। हर वर्ष रावण को जलाने वाले राम की संख्यां लाखों होते हुए भी हर वर्ष लाखों सीता माता जैसी देवियों की इज्जत तार-तार की जाती है, हजारों कन्याएं अपने सतीत्व की रक्षा करने में असमर्थ होकर आत्महत्या कर लेती है परन्तु उन्हें अपने आंसू पौछने वाला कोई राम नही मिलता।
राम के चरित्र को दर्शाने के लिए देशभर में हजारों मन्दिर बनाये गए है परन्तु उन्हीं दक्षिण के मन्दिरों में तथाकथित लाखों देवदासियां बेबसी, लाचारी तथा असहाय होकर रावण वृतिक अनेक पुजारियों की वासना का शिकार बनती आ रही है। हालांकि विभिन्न मत तथा सम्प्रदाय इस प्रकार की बातों को स्वीकार नही करते परन्तु कुछ तो हो ही रहा है। मध्यकालिन युग से शुरू हुई इस प्रथा में सूले, भोगम या सानी जैसे नामों से जाना जाता था, जिसका अर्थ धार्मिक वेश्या ही होता है।  
भाईयों! यह रावण हम सबके बीच में रहता है, हम हर रोज इससे दुआ-स्लाम करते है परन्तु कभी पहचान नही पाते। इसी कारण आज समाज में इस प्रकार की अस्थिरता का माहौल पैदा हो रहा है। यह रावण कोई ओर नही बल्कि केवल हमारा आचरण है, हमारी वासना और वे सभी दुष्वृत्तियां है, जिसने समाज की रीढ़ को तोड़ दिया है। यह रावण हमारे विचार है तथा हमारी उच्च-नीच भेद की मानसिकता है जो समाज को संगठित होने से रोक रही है। इन बुराईयों को मिटाने के लिए रामलीला में पर्दे के पीछे वाले राम की नही बल्कि सदाचारी, सहनशील तथा दूसरों की बहन-बेटियों को अपनी बहन-बेटियां से समान समझने और स्वीकार करने वाले राम की आवश्यकता है।
आज बड़े-बड़े नेता, मंत्री तथा उद्योगपति रामलीलाओं का उद्घाटन करते है, रामलीलाओं के मंचों से रावण, मेघनाथ तथा कुम्भकरण के पुतलों को आग लगाते है। परन्तु क्या इनको पता है कि राम के बाण और हनुमान की गद्दा केवल दुष्टों को दंड देने के लिए ही उठती थी। उनका बल असहाय, गरीब तथा सदाचारी, ईमानदार और योग्य लोगों की रक्षा और सुरक्षा के लिए प्रयोग होता था; व्यभिचारी, ढोंगी, बहरूपियों तथा कदाचिरों के बचाव में षडयंत्र रचने के लिए नही। आज के मंचनकर्ताओं को इस बात का अहसास होना चाहिए कि राम एक आदर्श पुत्र, सदाचारी, देश प्रेमी, हर प्रकार के नशों से दूर तथा सम्पूर्ण प्रजापालक श्रेष्ठ राजा थे तथा देश की बहन-बेटियों की आबरू की रक्षा के लिए स्वयं का जीवन आहूत करने के लिए तैयार रहने वाले महापुरूष थे।
दशहरे के पावन पर्व पर समाज के सभी वर्गों को चाहिए कि राम के जीवन को अपनाते हुए रावण जैसी दुष्वृत्तियों का नाश करें। राम के आदर्शों को अपनाते हुए समस्त बुराईयों पर विजय पताका फहराएं। राम की शिक्षाओं, आचार-विचार, व्यवहार तथा ब्रह्मचर्य जैसे अमोघ राम बाणों को अपना कर देश में राम राज्य लाने के लिए प्रयत्न करें, जिसमें न कोई चोर हो, न भूखा, न बिमार तथा न ही व्यभिचारी पुरूष हों। जब व्यभिचारी पुरूष नही होगा तो व्यभिचारिणी स्त्री स्वतः ही नही होगी और समाज कुदंन बन जाएगा। इससे समाज को नई दिशा, चेतना और जागृति मिल सकेगी औरदेश में कोई भी अहंकारी, दम्भी, द्वेषी, कपटी तथा धोखेबाज न रह सके।
यदि हम ऐसा करने में सफल होते है तो हमारी धरती से रावण जैसा भूत हमेशा हमेशा के लिए मिट जाएगा। इससे हमें बार-बार रावण को जलाना नही पडेगा अन्यथा वही रावण फिर हर वर्ष जन्म लेगा, बढे़गा तथा संसार को अंधकार और व्यभिचार की गर्त में धकेलता रहेगा और उस नकली रावण को मारने के लिए नकली राम बनते रहेंगे तथा समस्या जस की तस बनी रहेगी। हर वर्ष हम उसे मारने के लिए कागज के पुतले जलाते रहेंगे। इससे केवल पैसे की बर्बादी और प्रदूषण बढ़ने के सिवाय कुछ भी हमारे हाथ नही लेगेगा और हमें हर बार यह सोचना नही पड़ेगा कि ‘क्यू पैदा होता है हर वर्ष रावण
                           
                                           कृष्ण कुमार ‘आर्य




Thursday, August 30, 2012

पैसे पेड़ पर ही लगते हैं?


                     
                     पैसे पेड़ पर ही लगते हैं?

एक दिन बेटा मेरा, लगा करने जिद्द ऐसे,
मिठाई लाओ पापा और, ले आना एक चुप्पा,
कितने लाये ये बतलाना, सभी को दे खिलाएं,
पत्नी बोली सुनो बेटा, ऐसे जिद्द नही करते,
पापा तो ले आयेंगे, पर पैसे पेड़ पर नही लगते।
        इतना सुनकर बेटा मेरा, लगा यूं घुर्राने,
        गुस्से में उठकर बोला, क्यूं करते हो बहाने,
        लाने को चुप्पा तुम,  क्यू दे रहे हो ताने,
        कितने पेड़ों को देखा मैंने, लटके उन पर पैसे,   
        फिर क्यू कहते हो मम्मी! पेड़ पर नही लगते पैसे।
मेरे दोस्त की मम्मी ने, घर में बगिया लगाई,
कही आम,अमरूद कही, फूलों की चादर बिछाई,
माली आते रोज वहां,      तोड़ इन्हें ले जाते,
बदले में वो इसके,      फिर पैसे उन्हें थमाते,
फिर क्यू कहते हो मम्मी! पैसे पेड़ पर नही उगते।
        एक दिन पापा मैंने, टीवी पर देखी पहाड़ी,
        पेड़ वहां बहुत थे, और कुछ थी वहां झाड़ी,
        झाड़ी पर पील, पंजोए, पेड़ों पर फल लटके,
        किसान बेच कर फिर इन्हें, पैसे व्यापारी से लाते,
        फिर भी मम्मी कहती हो, पैसे पेड़ पर नही उगते।
एक दिन देखा मैंने, पहाड़ी पर भूकम्प आया,
पेड़ गिरे और मकान, सब धरती में समाया,
कोयला बनता पेड़ों से, ऐसा मास्टर ने पढाया,
कोयला बेच फिर नेताजी, अथाह धन कमाते,
फिर क्यू कहते हो आप, पैसे पेड़ पर नही उगते,
        एक दिन ताऊ मुझे, खेत में लेकर गए,
        खेत में गन्ना लगाया, ऐसा वे बतलायें,
        गन्ने से चीनी बना, फिर व्यापारी ले जायें,
        महंगें दामों में बेच इसे, वे मोटा लाभ कमाते,
        मम्मी! फिर भी कहती हो, पैसे पेड़ पर नही उगते।
ये सब सुनकर मम्मी, क्या समझ आपको आया,
सब कुछ पैसों से बनता, पैसा पेड़ों से पाया,
पेड़ तो है जीवन आधार, कैसे आधार बने निराधार,
सम्मान करों इन पेड़ों का, ऐसा कृष्ण सब कहते,
अब तो मान जाओ मम्मी! पैसे पेड़ पर ही लगते।


कृष्ण कुमार ‘आर्य

Thursday, July 12, 2012

एक अभिशाप


कन्या भ्रूण हत्या--- एक अभिशाप


         समय-समय की बात है कि किसी क्षण कोई वस्तु अच्छी लगती है तो दूसरे ही क्षण वही वस्तु बुरी लगने लगती है। व्यक्ति जिस ठण्डी हवा के लिए गर्मियों में तरस जाते हैं, उसे वही ठण्डी हवा सर्दियों में अच्छी नही लगती। भूखे व्यक्ति के लिए जो खाना अमृतमय होता है, कभी-कभी वही खाना पैसे वालों के लिए जहर का कार्य भी करता है अर्थात जब किसी वस्तु की अधिकता होती है तो उसकी कीमत में कमी आने लगती है परन्तु यहां एक ऐसा विरोद्घाभास है, जिसकी संख्या में न्यूनता होने पर भी वह अपने वजूद को बचाने मे सक्षम नही है। उसे भी भाग्यहीन लोग अपनी राक्षसी वृति के कारण जड़ से मिटाने पर तुले रहते हैं।
        आज के इस पाषाण पूजित युग में लोग मंदिरों में देवी माताओं की पूजा-अर्चना करने जाते है और फूल बतासों से देवी को प्रसन्न करने में कोई कमी नही छोडते, परन्तु जब वही देवी मां उनके घर के दरवाजे पर देवी (लडकी) का रूप धारण कर कदम रखती है तो अमानवीय प्रवृति के लोग उसके फूल जैसे कोमल शरीर को मंदिर में चढ़ाए जाने वाले फूलों की तरह शमशान की भेंट चढा देते हैं। ऐसे निर्दयी लोग उस नन्हीं सी जान को धरती माता की मिट्टी को छूने भी नही देते, जिस धरती माता ने उसके पूरे परिवार को सहारा दिया हुआ है। घरों में लडकी के पैदा होने पर जितना कोहराम मचाया जाता है, उतना रूद्घन तो लडकी के किसी जवान संबन्धी की मौत पर भी नही किया जाता होगा।
         यह शर्मनाक कहानी किसी ओर की नही बल्कि उस नन्ही सी जान की है, जो स्वयं अपनी रक्षा करने में पूरी तरह असमर्थ है परन्तु जिसकी रक्षा का भार उसके उन माता पिताओं पर है, जो रक्षक होते हुए भी भक्षक बनकर उसे निगल जाते हैं। ऐसे लोगों द्वारा माता के सुरक्षा कवच गर्भ में 9 महीने बिताने वाली उस कन्या को 9 मिनट भी धरती पर रहने नही दिया जाता। पहले गांवों में पैदा होने वाले लडकी के परिवार के तथाकथित शुभचिंतक बुढि़या ताई और दादी उस नन्हें फूल की हत्यारिन बन जाती और नवजात लडकी को उसी चारपाई के पांवे के नीचे दबा देती थी, जिस चारपाई पर उसने जन्म लिया होता है। इतना ही नही उस समय दिल ओर कांप उठता था, जब वे उस नन्ही सी जान को मिट्टी की हांडी में डाल और उसके हाथ में रूई देकर यह कहते हुए कन्या को जिंदा दफना दिया करते थे कि ‘बेटी सूत कातती ओई जाईए, ओर अपणे भाई न भेज दिए’। भाई का तो पता नही आता था या नही परन्तु यह कहते हुए शर्म अवश्य आ रही है कि हमेशा से ‘नारी, स्वयं नारी की दुश्मन रही है’।
        अब ये बातें भी बीते दिनों की हो गई है, क्योंकि अब विज्ञान का युग है और विज्ञान के अनेक तरीकों की सहायता से आज के तथाकथित माता पिता अपनी ही फूल सी बिटिया को पैदा होने से पहले ही मौत के घाट उतार देते हैं। विज्ञान की इन्हीं तकनीकों द्वारा की जा रही कन्या-भ्रूण हत्या की कहानी लिखने में बिल्कुल संकोच नही होता, जिसमें वह नन्हीं सी जान अपनी ममतामयी मां को पुकार-पुकार कर कह रही है कि मां, मुझे मत मारो! मत मारो! मेरी प्यारी मां, मुझे मत मारो....और इस तरह से बिलखती हुई वह असहाय कन्या-भ्रूण अपने आप को उन निर्दयी माता-पिता और लोभी डाक्टर के हाथों में सौंप देता है और अनेक लोभ लालचों से ग्रसित ये लोग उस कन्या-भ्रूण के रूद्घन को भी अनसूना कर देते है।
       महाभारत में अभिमन्यू के गर्भ में शिक्षित होने का उदाहरण आपने सूना होगा और डॉक्टर भी इस बात को मानते है कि गर्भ में पल रहा भ्रूण माता-पिता के हर क्रिया कलाप को बड़ी गहराई से अनुभव करता है। इसी प्रकार एक भ्रूण के अनुभव करने की क्षमता को जब एक अमेरिकी डाक्टर ने अपने कम्प्यूटर की सहायता से देखना चाहा तो वह अपने आंसुओं को रोक नही सका। उसी डाक्टर ने बाद लिखा कि ‘जब उसने गर्भवति स्त्री को ऑपरेशन बैंच पर लेटाया तो गर्भ के अन्दर का भ्रूण छटपटाने लगा और गर्भ में सुरक्षित स्थान तलाशने के लिए इधर-उधर भागने लगा और छटपटाता हुआ वह भ्रूण अपनी मां से प्रार्थना करता हुआ कहता है, हे माते! मेरी रक्षा करो! हाथ जोडता है और मिन्नते करता हुआ गर्भ गृह में स्वयं को सुरक्षित बचाने का प्रयास करता है। 
        इसके बाद भी जब निर्दयी डाक्टर उसे मारने के लिए चाकू उठाता है तो कन्या भ्रूण चिल्लाता है, रोता है और माता को ऐसा न करने के लिए प्रार्थना करता है। इसके उपरान्त भी जब डाक्टर और माता की क्रूरता समाप्त नही होती तो वह कन्या भ्रूण उनके आगे नतमस्तक हो जाता है और माता के गर्भ की बलिवेदी पर अपना बलिदान देता है। इस प्रकार उस कन्या भ्रूण के एक-एक अंग को कैंची और चाकू से काटकर अगल-अलग गिरा दिया जाता है और उस कन्या भ्रूण का दुखदः अन्त हो जाता है। वह कटता और चिल्लाता हुआ भ्रूण भगवान से यह प्रार्थना तो अवश्य करता होगा कि हे भगवन! ऐसी कठोर और निर्दयी स्त्री को पुनः कभी माता बनने का सौभाग्य प्रदान मत करना।
       पेट में पल रहे भ्रूण को कन्या भ्रूण जानकर गर्भपात करवाना अब लोगों के लिए आम बात हो गईर् है। डॉक्टर भी एमटीपी एक्ट का दुरूपयोग करते हुए परिवार नियोजन, गर्भ में बच्चे का अस्वस्थ होना या जन्म समय माता को मृत्यू से बचाने के बहाने भ्रूण हत्या कर मोटी रकम डकार लेते है। दिनों दिन बढ रही इस मानसिक ता के कारण आज हरियाणा में स्थिती चिंताजनक होती जा रही है।
        जनता द्वारा भविष्य में कन्या-भ्रूण हत्या पर रोक लगाने पर पहल करनी चाहिए, जिससे स्थिती को ओर अधिक भयावह होने से बचाया जा सके। गांवों की अपेक्षा शहरों में स्त्री, पुरूष का अन्तर अधिक पाया जाता है और शहरी लोग इस अभिशाप से करीब 5 से 10 फीसदी अधिक शामिल पाये जाते हैं अर्थात यह अपराध शहरी पढा लिखा वर्ग, गांवों के लोगों से अधिक करता है। ग्रामीणों के साथ-साथ शहरी लोगों को भी कन्या भ्रूण हत्या से होने वाले  दुष्परिणामों के बारे में सरकारी व गैर सरकारी संगठनों द्वारा जागरूक किया जा रहा हैं। पुत्र प्राप्ती की इस अन्धी दौड़ ने आज हरियाणावासियों को पुत्र-पैदा करने वाली दुल्हनों के लिए तरसा दिया है।
        हमारे महापुरूषों ने नारी जाति का हमेशा सम्मान किया है और महर्षि दयानन्द ने तो स्त्री जाती के सम्मान में यहां तक कह दिया कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहीं देवता निवास करते हैं। गुरू गोबिन्द सिंह जी ने भी नारी सम्मान को बचाने के लिए कहा था कि ‘कुडी मार ते नडी मार, रिश्ता नइ करणा’ अर्थात लडकी हत्यारों और नशेडियों के घर कभी शादी नही करनी चाहिए। स्त्री जाति के सम्मान के लिए हरियाणा सरकार ने भी अनेक प्रभावी योजनाएं शुरू की है, जिनका लाभ उठाने के लिए लोगों आगे आना चाहिए और कन्याओं को उनका अधिकार प्रदान करते हुए कन्या भ्रूण हत्या पर पूर्ण रोक लगानी चाहिए।
हरियाणा सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं-
1.      हरियाणा सरकार ने उन महिलाओंको जिनके नाम पर सम्पत्ती तथा घरेलू बिजली कनैक्शन भी है उनके बिजली बिलों में 10 पैसे प्रति यूनिट छूट देने का निर्णय लिया है।
2.      हरियाणा सरकार ने किसी भी महिला द्वारा अचल सम्पति खरीदने पर उन्हें सैटम्प शुल्क में 2 फीसदी छूट देने का निर्णय लिया है।
3.      हरियाणा सरकार ने महिलाओं को शिक्षक की सीधी भर्ती में 33 फीसदी आरक्षण देने का निर्णय लिया है।
4.      हरियाणा सरकार ने महिलाओं के सुरक्षित प्रसव के लिए साफ सुथरा वातावरण प्रदान करने हेतु प्रदेश में 510 डिलिवरी हट्स का निर्माण करवाया है, जहां जन्म प्रमाण पत्र भी दिया जाता है और इससे पुरूष स्त्री अनुपात की बेहतर मॉनिटरिंग में भी सहायता मिलेगी।
5.      भारत सरकार ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए जननी सुरक्षा योजना के तहत ग्रामीण महिलाओं को घरों में करवाए गए प्रसव के लिए 500 रुपये तथा संस्थानों में करवाए गए प्रसव के लिए 700 रुपये की आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया है, जबकि शहरी महिलाओं को 600 रुपये उपलब्ध करवाए जाते हैं।
6.      जननी सुरक्षा योजना के तहत राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को प्रत्येक प्रसव के दौरान 1500 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान करने की शुरूआत की है, यह सहायता ऐसी सभी महिलाओं को दी जाती है जिन्होंने सरकारी या निजि क्षेत्र के किसी भी स्वास्थ्य संस्थान में प्रसव करवाया हो।
7.      राज्य के महिला और बाल विकास विभाग द्वारा ‘लाडली योजना’ लागू की गई है, जिसके तहत सरकार द्वारा दूसरी बेटी के जन्म पर 2500 रुपये प्रति लड़की के हिसाब से प्रतिवर्ष 5000 रुपये की आर्थिक सहायता 5 वर्ष तक दी जाती है।
सजा का प्रावधान-
        कन्या-भ्रूण हत्या करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाती है और इसके लिए सजा का भी प्रावधान है। हरियाणा में 1996 में लागू हुए पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट को सख्ती से लागू करवाने के लिए अनेक पहल की है। इनमें राज्य स्तर पर उपयुक्त प्राधिकारी, सुपरवाइजरी बोर्ड, सलाहकार समिति तथा टास्क फोर्स का गठन किया गया है। इसी प्रकार जिला स्तर पर भी जिला उपयुक्त प्राधिकारी, जिला निरीक्षण समिति तथा निरीक्षण टीमों का गठन किया गया है।
        ये समितियां सरकारी व गैर सरकारी संगठनों की सहायता से लोगों को कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में जागरूक करने, सख्ती से नियम लागू करवाने, अल्ट्रासांऊड मशीनों का निरीक्षण, कारण बताओं नोटिस जारी करने, छापामारी करना तथा आरोपियों के खिलाफ कोर्ट पैरवी करने का कार्य करती हैं।
           कृष्ण कुमार आर्य

Thursday, June 28, 2012

कथनी-करनी


                              कथनी-करनी


कथनी करनी दोऊ बहना,
दोनों का बड़ा नाम,
कथनी तो कहती रहे,
पर करनी करती काम।
          कथनी बड़ी, कहती रही,
          करना होगा काम,
          नही हो हम सब,
          जाएंगे हो बदनाम।
कथनी कहे, मैं कर दूंगी,
ऐसे अनोखे काम,
देखेगी दुनियां, ना समझ पाये,
ये कैसे हुए धनवान।
          कथनी कहे, मैं आऊंगी,
          लेकर प्रभू का नाम,
          सांय होते-होते सब,
          पा लू बड़े ई-नाम।
करनी यू करती चले,
न थके ना परेशान,
सुबह उठे तो शाम ढले,
बस करना उसका काम।
          करनी ऐसे कर रही,
          बिन जाग, बिन सोये,
          धन-धान्य, वैभव सारे,
          सब पास उसके होये।   
करनी को कृष्ण कहे,
है यह सुख मूल।
कथनी देखत जात है,
ना करनी करती भूल॥
करनी एक कारण है,
पर कथनी है निर्मूल।
करनी है फल दायनी,
          पर कथनी जीवन शूल॥
सौ ग्राम की जीभ ये,
ढोये सौ किलो का भार।
जीभ तो कह कर छुप गई,
पर शरीर होये परेशान॥
कथनी मूल जुबान की,
करनी शरीर से होये।
जुबान तो फड़फडाने की,
पर शरीर जाए लड़खडाये॥
‘कृष्ण कबीरा यू कहें-
कथनी मीठी खांड सी,
करनी विष की लोए।
कथनी छोड़ करनी करे तो,
विष भी अमृत होए॥

कृष्ण कुमार ‘आर्य
            

Thursday, May 17, 2012

कसौटी--

                 जिन्दगी की  

 

भारत देश अनेक महापुरूषों की जन्म स्थली रहा है। समय-समय पर यहां दिव्य आत्माओं ने जन्म लेकर देश व काल के अनुसार देशहित में उत्तम कोटी के कार्य किये थे। चाणक्य भी इसी प्रकार की एक महान विभूति थे, जिन्होंने अभाव और विषमताओं में रहते हुए न केवल विखंडित भारतवर्ष को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया बल्कि मौर्य वंश के साम्राज्य को स्थापित कर देश को नई दिशा प्रदान की। आचार्य चाणक्य की नीति जहां आज भी उतनी ही प्रासंगिक है वहीं उनके व्यकितगत गुण आम आदमी का सही मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं। उन्हीं में से उनका एक गुण यह भी था कि वे सहज ही अपने व पराये की पहचान कर लेते थे और उसी के अनुसार कार्य करते थे। आचार्य चाणक्य के जीवन की अनेक शिक्षाप्रद घटनाओं में से एक घटना लिखने का मन हुआ है।
आचार्य चाणक्य अपनी तार्किक बुद्घि, तर्क-शक्ति, ज्ञान और व्यवहार-कुशलता के लिए विख्यात थे। एक दिन आचार्य चाणक्य को उनका एक परिचित मिलने आया और उत्साह से कहने लगा, आचार्य ‘क्या आप जानते हैं कि मैंने आपके मित्र के बारे में क्या सुना?’  उन्होंने परिचित से कहा कि आपकी बात सुनने से पहले मैं चाहूंगा कि आप एक त्रिगुण परीक्षण से गुजरें अर्थात अपनी बात को तीन कसौटियों पर कस कर देख लें।
परिचित ने पूछा, यह त्रिगुण परीक्षण क्या होता है आचार्य। चाणक्य ने कहा कि आप मुझे मेरे मित्र के बारे में कुछ बताएं, इससे पहले अच्छा यह होगा कि जो आप कहने जा रहे हैं उसे तीन स्तरों पर परख लें। इसीलिए मैं इस प्रक्रिया को त्रिगुण परीक्षण कहता हूं।
परिचित ने पूछा इसकी क्या आवश्यकता है, मैं जो कहूंगा सत्य ही होगा। आचार्य ने कहा फिर भी सत्य का परिक्षण तो आवश्यक होता है। इससे आपको भी सत्य व असत्य का आभास आसानी से हो जाएगा, फिर आपको इससे कोई परहेज नही होना चाहिए। परिचित ने कहा कि ठीक है, आप बताईये मुझे क्या करना होगा। आचार्य ने कहा आपको कुछ नही करना, आप तो केवल बताते जाएं।
आचार्य ने कहा इसके लिए पहली कसौटी है-सत्य। इस कसौटी के आधार पर मेरे लिए यह जानना जरूरी है कि जो आप कहने वाले हैं, क्या वह सत्य है और आप स्वयं उसके बारे में अच्छी तरह जानते हैं?' परिचित ने कहा ‘नही! ऐसा तो नहीं, 'वास्तव में मैंने इसे कहीं सुना था। खुद देखा या अनुभव नहीं किया था। आचार्य ने कहा ठीक है 'आपको पता नहीं है कि यह बात सत्य है या असत्य।
चाणक्य ने कहा दूसरी कसौटी है--अच्छाई। क्या आप मुझे मेरे मित्र की कोई अच्छाई बताने वाले हैं?' उस व्यक्ति ने कहा नहीं, ऐसा भी नही है। इस पर चाणक्य बोले,' जो आप कहने वाले हैं, वह न तो सत्य है, न ही मित्र की अच्छाई है। तो ठीक है चलिए, तीसरा परीक्षण भी कर लेते हैं।' 
आचार्य ने कहा कि तीसरी कसौटी है---उपयोगिता। आचार्य ने परिचित से पूछा कि जो बात आप मुझे बताने वाले हैं, वह क्या मेरे लिए उपयोगी है?' परिचित ने कहा नहीं, ऐसा तो नहीं है।' यह सुनकर चाणक्य ने कहा कि आप मुझे जो बताने वाले हैं, वह न सत्य है, उसमें न कोई मेरे मित्र की अच्छाई है और न ही वह बात मेरे लिए उपयोगी है तो फिर आप मुझे वह बात बताना क्यों चाहते हैं?'
चाणक्य ने कहा कि लगता है कि तुम मेरे मित्र के विषय में मुझे भडकाना चाहते हो परन्तु ऐसा तुम किसके और क्यू कहने पर कर रहे हो यह जानना मेरे लिए आवश्यक है।


     
संपादनकर्ता - कृष्ण कुमार ‘आर्य’
साभार- चाणक्य जीवनी   



Monday, April 30, 2012

सोच

                                सोच
     
सोच है!
पर ना मैं सोच करना चाहता हूं,
सोच पर मैं यह सोचता ही रहता हूं,
जान नही पाया हूं,
किन मजबूरियों को सोच कहता हूं,
फिर भी सोचता ही रहता हूं।
क्या है सोच,
किसने बनाया इसको,
क्यू बनाया, यह पता नही चल पाया,
पर आत्मा के घर को खोखला करती है,
मन के भावों में अभाव भरते है,
फिर भी हम सोच करते है।
क्यू है सोच,
चिंता का दूसरा नाम है सोच,
विचारों की ना लेन-देन है सोच,
नकारात्मकता का परिणाम है सोच,
और करती बर्बादी का काम है सोच,
फिर भी हम करते हैं सोच।
कैसी है सोच,
चिता पर ले जाया करती है,
पर ना किसी से डरती है,
दुविधा में मन भरती है,
करने वालों के संग मरती है,
पर रंगहीन जीवन करती है।
होती है सोच,
बचाव के असफल प्रयास हो जब,
भूख मिटाने की छटपटाहट हो तब,
लक्ष्य प्राप्ति की हड़बड़ाहट हो जब,
अवसाद का कारण है यह सब,
ऐसे तब तक होती है सोच।
मिटती है सोच,
विचारों के आदान-प्रदान से,
सकारात्मकता की शान से,
अपने व दुश्मनों की पहचान से,
बुद्घिमान और वृद्धों की आन से,
कृष्ण मिटती है सोच ऐसा करन से।
                             
                       कृष्ण कुमार ‘आर्य



Friday, March 23, 2012

नव सम्वत

                              नव सम्वत


आज सृष्टि का जन्म दिन है,
आज ब्रह्मा ने संसार रचा था,
ऋतुओं का निर्माण किया था,
पहली बार चमका था सूरज,
आज ही है सृष्टि का जन्म दिन।
        पहले दिन की थी जो रचना,
        जीव, प्रकृति का पुरा सपना,
        पक्षी चहके और आत्मा महके,
        हर तरफ फैला मधुर उपदेश,
        सृष्टि का वह पहला दिन था।
राम प्रभु ने इस दिन का,
किया था बडा सदुपयोग,
लंका जीती अयोध्या आये,
और राजतिलक लिया करवाये,
तब भी सृष्टि का था जन्म दिन।
सम्वत का नाम,
उस राजा के नाम पर होता,
जिसके राज में न कोई चोर,
अपराधी, न भूखा था सोता,
सम्वत फिर ऐसे महान पर होता।
बंसत ऋतु का आगमन होता,
बहे उमंग और खुशी का श्रोता,
हर तरफ पुष्पों की खुशबू,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा दिन वो होता,
सृष्टि का ये भी जन्म दिन होता।
फसल पकने का यह दिन,     
किसान की मेहनत का दिन,
शुभ नक्षत्रों का यह दिन,
नेक कार्यों का शुभ है यह दिन,
सृष्टि का है यह जन्म दिन।
गुरू अंगददेव का है जन्म दिन,
नवरात्र का हुआ शुभारम्भ,
आर्य समाज की हुई स्थापना,
रामजन्म से नौ दिन पहले का दिन,
यही था सृष्टि का वह सृजन दिन।
        युधिष्ठिर का अभिषेक हुआ,
        हेडगेवार ने जन्म लिया,
        विक्रमादित्य का राज स्थापित,
जिससे हुआ शुरू विक्रमी संवत,
वह भी था सृष्टि का जन्म दिन।


(सृष्टि सम्वत, एक अरब 97 करोड़, 29 लाख 49 हजार 113 वर्ष) 





                         कृष्ण कुमार ‘आर्य’


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