Saturday, April 9, 2022

सूर्य की गति का द्योतक है उगादी


        देश में मनाए जाने वाले त्यौहार भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता के परिचायक हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने ऋतुओं के परिवर्तन, सूर्य की गति और सामाजिक परम्पराओं के आधार पर विभिन्न उत्सव मनाने की व्यवस्था दी है ताकि जीवन सदैव उल्लास से भरा रह सके। “उगादी” उसी भारतीय संस्कृति का संवाहक है, जो भारतीय नववर्ष के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। 

      यह वह दिन है जब ईश्वर ने सृष्टि की रचना की थी, जिससे युगों एवं वर्षों का आरम्भ हुआ था। यह दिन सृष्टिक्रम से जुड़ा हुआ है। इसलिए इसको सृष्टिवर्ष भी कहा जाता है। युगों की शुरूआत इसी दिन होने कारण इसे युगादि भी कहा जाता है। इतना ही नही वैदिक सनातन धर्म के अनुसार वर्ष की गणना इसी दिन से आरम्भ होती है, इसलिए भारतवंशी इसे नववर्ष के रूप में मनाते हैं। भारतीय संस्कृति के परिचालक दक्षिण भारत में इस पर्व को युगादि अर्थात ‘उगादि’ के नाम से जाना जाता हैं। यह पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाया जाता है, अतः इसे वर्षी प्रतिपदा भी कहा जाता हैं। 

     ऐसी मान्यता है कि ईश्वर ने जिस दिन सृष्टि रचना का कार्य आरम्भ किया था, उसी दिन को चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा कहा जाने लगा। सृजन का यह कार्य नौ दिन-रातों तक यह निरंतर चलता रहा, इसलिए इन्हें नवरात्र कहा गया। इसी दिन से पूरे देश में नौ दिनों तक नवरात्र मनाए जाते हैं और मातृशक्ति दुर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है। वर्ष 2024 में यह दिन 9 अप्रैल को था। यह वह समय होता है जब बसंत ऋतु अपने यौवन पर होती है। प्रत्येक दिशा में प्रकृति का शोधन होता दिखाई देता है। इन दिनों में सभी पेड़, पौधों एवं झाड़ियों पर रंगबिरंगे फूलों से मन प्रफुल्लित हो उठता है और वातावरण में एक मंद-मंद सुगंध का प्रवाह रहता है। पौधों पर नई-नई पत्तियों तथा फलों का आगमन होता है। प्रकृति का यह मनोहर दृश्य वर्ष में केवल इन्हीं दिनों में दिखाई देता है। 

      हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि ‘पिंडे सो ब्रह्मांडे’ अर्थात् जो हमारे पिंड यानि शरीर में है] वही ब्रह्मांड में है तथा जो ब्रह्मांड में है] वही हमारे शरीर में है। प्रकृति की भांति प्राणियों के शरीरों में भी नवरक्त और नवरसों का संचार होता है। इसलिए इस समय को नवरस काल कहा जाता है। हरियाणा में इसे न्यौसर कहते हैं। इस समय शरीर में बहने वाली नई ऊर्जा से मन उत्साह और उल्लास से भर जाता है। इस दौरान श्रद्धालु माता दुर्गा के अष्टरुपों की उपासना करते हैं और उपवास रखते हैं, जिससे हमारा शरीर निरोग एवं शुद्ध होता है। 

     युगादि सृष्टि सृजन का वह दिन है] जिसको देश में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश] तेलंगाना] कर्नाटक] महाराष्ट्र इत्यादि प्रदेशों में इसे युगादि अर्थात उगादी के नाम से जाना जाता है। उत्तर भारत के पंजाब] हरियाणा] दिल्ली सहित कई राज्यों में इसे नवरात्र एवं बैशाखी भी कहते हैं। इसी समय नई फसल के आगमन पर घरों में खुशियों का माहौल होता हैं। विभिन्न प्रदेशों में जहां इस पर्व को अलग-अलग ढंग से मनाते हैं] वहीं उनके खाने का शौक भी भिन्न होता है। दक्षिण भारतीय राज्यों में श्रद्धालु पच्चडी का सेवन करते हैं। पच्चडी को कच्चा नीम] आम के फूल] गुड] इमली] नमक और मिर्च के मेल से बनाया जाता है। वहीं उत्तर क्षेत्र में नवरात्रों पर फलाहार] शामक] साबुधाना की खीर खाते है। बैशाखी पर हलवा एवं रंगीन मीठे चावलों का भोग लगाया जाता है। 

      भारतीय नववर्ष एवं नवसंवत्सर का ऐतिहासिक महत्व भी है हमारे तपस्वी पूर्वजों ने इस दिन की प्राकृतिक महत्ता को समझते हुए, इसे हमारे सांस्कृतिक पन्नों में जोड़ा है ताकि हमारी भावी पीढ़ियां इसे जीवन का अंग बना सके। सत्य सनातन वैदिक शास्त्रों के अनुसार सृष्टि की रचना 1960853125 वर्ष पूर्व भारत की इसी धरा पर हुई थी। इसके पश्चात से ही निरंतर सृष्टिक्रम चलता रहा है। विभिन्न कालखंडों में अनेक यशस्वी राजाओं और महापुरुषों ने इस धरा पर जन्म लिया है। उन्होंने लोगों के जीवन को सरल और सहज बनाने के लिए अपनी संस्कृति के प्रसार हेतु अनेक प्रयास किए। इस दिन के महत्व को समझते हुए भगवान श्रीराम ने लगभग 9 लाख वर्ष पूर्व लंका विजय के उपरांत चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को अयोध्या का राज सिंहासन ग्रहण किया था। महाभारत युद्ध के उपरांत युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। महाभारत काल के बाद देश में महान एवं तपस्वी राजा वीर विक्रमादित्य हुए हैं] उनका राज्याभिषेक भी चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को हुआ था। 

     देश के इस महान सपूत एवं प्रतापी राजा वीर विक्रमादित्य के नाम से आरम्भ हुए वर्ष को विक्रमी सम्वत कहा जाता है, जिसे 9 अप्रैल को आरम्भ हुए 2081 वर्ष हो गए हैं। कलियुग का आगमन भी चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही 5125 वर्ष पूर्व ही हुआ था। महर्षि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की थी। इस तरह उगादी हमारे देश का महान और सृष्टि सृजन का त्यौहार है। परन्तु आज हम अपनी प्राचीन संस्कृति और मान्यताओं को भूल गए हैं, जिसके कारण हमारे आचार] विचार और व्यवहार में परिवर्तन हुआ है। भारतीय समाज और जनमानस के लिए यह विचारणीय है। 
     अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि--- 

मंद-मंद धरती मुस्काए, मंद-मंद बहे सुगंध। 
ऐसा ‘उगादी’ त्यौहार हमारा, सबके हो चित प्रसन्न।। 

 जयहिन्द

 कृष्ण आर्य

Thursday, December 17, 2020

‘चौकीदार !



                    ‘तूं हमारा चौकीदार है!

 

जिन्दगी की राह में, फूल सी डगर है।

भावना के आहार में, प्यार सा विहार है।

तूं ऐसा एक यार है, जो हमारा चौकीदार है॥

          जन-जन का जो, धन से उभार है।

          रात्री पहर में ही, भ्रष्टों पर प्रहार है। 

          ऐसा तू कलाकार है, जो हमारा चौकीदार है॥

भूत पर भूत सा, करारा एक वार है।

दवाओं की दुआओं से, आयुष्मान परिवार है।

तेरा अंदाज शानदार है, तूं हमारा चौकीदार है॥

शांति से विश्व में, बढ़ाया बड़ा प्यार है।

दुष्ट दलन में जिनका,   श्रीराम सा प्रहार है।

धूल में मिला दे जो, वो हमारा चौकीदार है॥

जल, थल, नभ संग, दुश्मन पर निहार है।

अंतरिक्ष में भी यदि कोई, कर रहा गुप्तचार है।

पहचान तक मिटा दे जो, वो हमारा चौकीदार है॥

          वो हमारा चौकीदार है, तु हमारा चौकीदार है।

 

                                                कृष्ण कुमार ‘आर्य’

Monday, June 8, 2020

फूल


फूल




मैने आज एक फूल को
फूल तोड़ते हुए देखा,
एक हाथ में फूल, दूसरे में टोकरी लिए
          समीर में फूल झूलते हुए देखा॥
पीछे वनीहारी थी, आगे फुलवारी थी,
          मदमस्त पवन सहज सा,
मंद गंद हवाओं में, अश्व को घूरते हुए देखा॥
          गले में हार सा पीला गुलूबंद लिए,
नागिन से केस उस पर गिरे,
          हार से चाह को हारते हुए देखा॥
पीछे जंगल, आगे मंगल फूल सा,
          पर फूलों में ऐसा फूल नही,
जो पहले कभी, फूल को निहारते हुए देखा॥
          फूल लपकने को जब नजर घुमाई मैंने,
हाथ में केवल डंठल, ताकते हुए देखा,
          आज फूल को मैंने फूल ताकते हुए देखा।


 कृष्ण कुमार ‘आर्य’


Sunday, April 14, 2019

वो है !

वो है ! 
वो है
जिसे देखा नही है,
वो भी है
जिसे जानते भी नही है,
पर वो भी है
जिसे देखा भी है, जिसे जानते भी है
परन्तु मानते नही है।
वो क्या है ?

वो है
जो सुक्ष्म है,
वो भी है
जो स्थूल भी है,
पर वो भी है,
जो न सुक्ष्म है और स्थूल भी नही है,
परन्तु जो सबका कारण है।
वो क्या है ?

वो है
जो समिधा है,
वो भी है
जो अग्नि भी है,
पर वो भी है
जो न समिधा है और अग्नि भी नही है,
परन्तु जो जलाए रखता है।
वो क्या है ?

वो है
जो मन से है,
वो भी है
जो वचन से भी है,
पर वो भी है
जो मन का नही, वचन का भी नही है,
परन्तु जीवन का आधार है।
वो क्या है ?
वो कृष्ण है, वो कर्म है!


                                कृष्ण कुमार ‘आर्य’





Wednesday, March 20, 2019

मैं कवि हूं?

मैं कवि हूं?

इसने बोला, उसने बोला,
सबने बोला, मैं कवि हूं।
इधर-उधर मैं देखता जाऊ,
शब्द मिले तो लिखता जाऊ।
नकल करूं तो थप्पड़ खाऊ,
फिर भी मैं कवि कहलाऊं॥
जन्म पर मैं शौक सुनाऊं,
मौत पर जब मंगल गाऊं।
चढ़े घोड़ी नगाड़ा बजाऊं,
जाने फिर मैं कवि कहलाऊं॥ 
          जब खाने में बदबू बताऊ,
          और पाखाने में महक सुनाऊं ।
          नहाने पर मैं शोर मचाऊं,
          फिर भी मैं कवि कहलाऊं॥
काम समय मैं गीत सुनाऊं,
बस सेल्टर पर भंगड़ा पाऊ।
कुछ भी करूं तो देखत जाऊं,
ताकि मैं फिर कवि कहलाऊं॥
          कहत कृष्ण, वह कहता हैं,
          सब कहते हैं कि मैं कवि हूं।


                                                          कृष्ण कुमार ‘आर्य’

Tuesday, October 31, 2017

मै अकेला हूं !


          मै अकेला हूं !
          पर ये कैसे समझू,
          कि मै अकेला हूं !
माता की गर्भारी में,
पिता की समझदारी में,
और दादा की दुलारी में,
मैं अकेला हूं।
शहर की बाजारी में,
फूलों की बगियारी में,
और बीवी की बुखारी में,
मैं अकेला हूं।
शियारों की यारी में,
औरतों की पंचायरी में,
और सड़क पर सवारी में,
मैं अकेला हूं।
खटिया पर बीमारी में,
परेशानी व लाचारी में,
और शमसान की अगियारी में,
मैं अकेला हूं॥ 



                                                                                      कृष्ण कुमार ‘आर्य’

Krishana: मै अकेला हूं !

Krishana: मै अकेला हूं !

Wednesday, March 9, 2016

मोदी का जवाब-
       सफर में धूप तो होगी,
        तुम चल सको तो चलो।
राह में भीड़ तो बहुत होगी,
भीड़ से निकल सको तो चलो।।
        किसी के वास्ते राहें कहां बदलती हैं,
        तुम अपने आपको बदल सको तो चलो।
यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता,
मुझे गिराकर तुम संभल सको तो चलो।।
        यही है जिंदगी कुछ ख्वाब, चंद उम्मीदों की,
        इन्हीं ख्यालों में बयार ला सको तो तुम चलो।।     


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा 9 मार्च 2016 को राज्यसभा में दिये गये जवाब के दौरान प्रस्तुत कविता।


संकलनकर्ता-   कृष्ण कुमार ‘आर्य’

सूर्य की गति का द्योतक है उगादी

          देश में मनाए जाने वाले त्यौहार भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता के परिचायक हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने ऋतुओं के परिवर्तन,...