Saturday, March 16, 2013

चुप रहता हूं !

                                  चुप रहता हूं !                

ना मैं डरता हूं
ना कुछ कहता हूं
दूसरों का आदर करता हूं
इसी लिए चुप रहता हूं।
        मां मुझे जब दुलारती हैं
        सपनों में रस भर डालती हैं
        पर पिता की शर्म करता हूं
        इसी लिए चुप रहता हूं।
स्कूल में मैं पढता हूं
सीखने की हठ करता हूं
पर गलत उत्तर से डरता हूं
इसी लिए चुप रहता हूं।
            भाभी मेरी अति शालीन है
        नही करती कपड़े ‌मलीन हैं
        उनकी हरकतों से विचलता हूं
        इसी लिए चुप रहता हूं।
बीवी बड़ी हठिली है
जुबां से कटिली है
पर दिल से प्रेम करता हूं
इसी लिए चुप रहता हूं।
        बच्चे मन के अच्छे हैं
        पर संस्कारों के कच्चे हैं
        उनका स्ववध कैसे सह सकता हूं
        इसी लिए चुप रहता हूं।
बेटी है घर-आंगन मोरे
देखता हूं हर सुबह-सवेरे
पर-बेटों से डरता हूं
इसी लिए चुप रहता हूं।

वो कसते हैं ताने मुझको
जो दिखते है समझदार तुझको
किसी को बेईजत नही करता हूं
इसी लिए मैं चुप रहता हूं।
ऑफिस के है साहब बड़े
काम से है नाम बड़े
उनकी समझ पर तरस करता हूं
इसी लिए चुप रहता हूं।
       कृष्ण ना मैं डरता हूं
        ना कुछ समझता हूं
        पर चापलूसी जब करता हूं
        तभी मैं बोल पड़ता हूं !
तभी मैं बोल पड़ता हूं !
                         कृष्ण कुमार ‘आर्य’     


                                           




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