Monday, June 8, 2020

फूल


फूल




मैने आज एक फूल को
फूल तोड़ते हुए देखा,
एक हाथ में फूल, दूसरे में टोकरी लिए
          समीर में फूल झूलते हुए देखा॥
पीछे वनीहारी थी, आगे फुलवारी थी,
          मदमस्त पवन सहज सा,
मंद गंद हवाओं में, अश्व को घूरते हुए देखा॥
          गले में हार सा पीला गुलूबंद लिए,
नागिन से केस उस पर गिरे,
          हार से चाह को हारते हुए देखा॥
पीछे जंगल, आगे मंगल फूल सा,
          पर फूलों में ऐसा फूल नही,
जो पहले कभी, फूल को निहारते हुए देखा॥
          फूल लपकने को जब नजर घुमाई मैंने,
हाथ में केवल डंठल, ताकते हुए देखा,
          आज फूल को मैंने फूल ताकते हुए देखा।


 कृष्ण कुमार ‘आर्य’


No comments:

Post a Comment

सूर्य की गति का द्योतक है उगादी

          देश में मनाए जाने वाले त्यौहार भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता के परिचायक हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने ऋतुओं के परिवर्तन,...