हिन्दी दिवस

10 जनवरी विश्व हिन्दी दिवस पर विशेष

 

    भाषा किसी भी प्राणी की एक विशेष अभिव्यक्ति है, जिससे वह आसपास और समाज को अपने क्रियाकलापों की जानकारी देते हैं। भाषा न केवल मानवमात्र के लिए उपयोगी होती है परन्तु जीव-जन्तु भी इससे अछूते नही हैं। पक्षी अपनी चहचाहट, पशुओं का राम्बना (आवाज) तथा जानवर अपनी गर्जना से ही सभी सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। इसी प्रकार मानव भी अपने रहन-सहन की आदतों, क्षेत्र की परिस्थितियों तथा समाज के व्यवहार से बोलना सीखते हैं और भावनाओं को अपने भाव द्वारा प्रदर्शित करते हैं। इतना ही नही, भाषा उनकी जीवनशैली को ही प्रदर्शित करती हैं।

          विश्व में विभिन्न भाषाओं के बोलने वालों की कमी नहीं है। दुनिया में लगभग 7139 भाषाओं को बोला जाता है। विभिन्न देशों में अधिकतर बोले जाने वाले वाक्य वहां की बोली का रूप धारण कर लेते हैं, जिससे भाषा का प्रादुर्भाव होता है। दुनिया में मुख्य रूप छः भाषाएं से बोली जाती है। इसमें सबसे अधिक लगभग 145 करोड़ लोग अंग्रेजी भाषा बोलते है, चाईनिज 113 करोड़, हिन्दी लगभग 61 करोड लोगों द्वारा विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जानी वाली भाषा है, वहीं स्पैनिस भाषा को लगभग 56 करोड़, फैंच को लगभग 31 करोड़ तथा अरबी भाषा के जानकार लगभग 27 करोड़ लोग हैं। 

    इतना ही नही, किसी देश के अधिकतर भागों में बोली जाने वाली भाषा भी विभिन्न क्षेत्रों में बोली का रूप ले लेती है। भारत भी इससे अछूता नही है। भारत में मूल भाषा हिन्दी सहित कुल 22 भाषाएं अनुसूचित हैं, जो देश के विभिन्न प्रदेशों में बोली जाती है। स्थानीय स्तर पर इन्हीं भाषाओं में कार्यों के निष्पादन को प्राथमिकता दी जाती है। भारत के विषय में कहावत है कि...

कोस-कोस पर बदले पानी, तो चार कोस पर वाणी

          भारत एक बहुभाषी देश है, जहां लगभग 780 बोलियां बोलचाल का माध्यम है। यदि किसी एक प्रदेश जैसे हरियाणा के विषय में समझने का प्रयास किया जाए तो, उसके एक ही शब्द को जीन्द में जो बोला जाता है तो उसी शब्द का भिवानी या सिरसा में रूपांतरण हो जाता है। परन्तु हमारी मूल भाषा हिन्दी ही है। हिन्दी को पूरे उत्तर भारत में बोला एवं समझा जाता है। हिन्दी भारत की मूल और आत्मिक भाषा है, जिसको बच्चा भी समझ और बोल सकता है। भारत के बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल, झारखंड, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा उत्तराखंड सहित कुछ अन्य प्रदेशों में हिन्दी बोली जाती है। भारत में सबसे अधिक लगभग 57 करोड़ लोग हिन्दी को अपनी मूल भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं, जो देश की कुल आबादी का लगभग 44 प्रतिशत से अधिक है और लगातार बढ़ भी रहा है। भारत के अतिरिक्त श्रीलंका, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल, दक्षिणी अफ्रीका, पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में भी हिन्दी बोलचाल की भाषा के रूप में प्रयोग की जाती है।

          विश्व की प्रमुख भाषाओं में हिन्दी का विशेष स्थान है। प्राचीन भारत की एक नदी सिन्ध से हिन्द और सिन्धु से हिन्दु तथा सिन्धी से हिन्दी की उत्पत्ति मानी जाती है। भारत की राजभाषा भी हिन्दी ही है, जिसका मूल स्त्रोत संस्कृत भाषा को माना जाता है। हिन्दी एवं संस्कृत दोनों भाषाओं की लिपी देवनागरी है, इसमें 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं। इस भाषा को बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है, जबकि कुछ भाषाएं दाईं से बाईं ओर लिखी जाती है। भारत में हिन्दी को राजभाषा के रूप में 10 जनवरी 1949 को अपनाया गया था। इसके बाद भारत सरकार ने वर्ष 2006 में इस दिन को विश्व हिन्द दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत की ताकि हिन्दी को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलवाई जा सके। 

    व्यक्ति अपनी भाषा में ही स्वयं को पोषित कर सकता है। अपनी मातृ भाषा हिन्दी में संवाद, व्यवहार, लेखन और पठन करने से हम न केवल अपनी संस्कृति को बढ़ावा दे सकते हैं बल्कि अपनी परम्पराओं तथा मूल्यों को भी सहजता से व्यक्त कर सकते हैं। आज अनेक लेखक विश्व स्तर पर हिन्दी को वैश्विक पहचान देने के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं। केन्द्र एवं हरियाणा सरकार भी हिन्दी भाषा लेखकों को साहित्य अकादमी के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा रहा है। इससे अनेक साहित्यकार अपनी रचनाओं से हिन्दी को नई पहचान दिलवा रहे हैं।

    हमारे प्राचीन ग्रन्थ वेदों की रचना हिन्दी की जनक कही जाने वाली संस्कृत भाषा में ही हैं, वहीं रामायण, महाभारत तथा अनेक साहित्य हिन्दी एवं संस्कृत भाषा में लिखे गए है। हिन्दी भाषा भारत और भारत से बाहर रहने वाले लोगों को जहां एक कड़ी में पिरोने का कार्य कर रही है, वहीं इससे एक-दूसरे के मर्म समझना भी आसान बनाती है। अतः हिन्दी को वैश्विक स्तर पर पहुँचाने की जिम्मेदारी प्रत्येक भारतीय को समझनी चाहिए।

अन्त में कहना चाहँुगा कि हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए हमें, स्वयं हिन्दी के प्रति समर्पित होना चाहिए। हिन्दी को भाषा नही बल्कि एक संस्कृति का द्योतक और जीवनशैली है। एक कवि ने कहा कि ...

हिंद देश हिन्दुस्तां हमारा, हिंदी हमारी पहचान।

भारत के माथे की बिन्दी हिन्दी, देश का गौरव गान॥

 

कृष्ण कुमार आर्य


न्यू ईयर

 

मीटिंग न्यू ईयर



एक मीटिंग में आज हुआ यूं ऐसे,

सोचते रहे कि ये हुआ कैसे।

हम ताकते रहे एक दूसरे की ओर,

वो चले गए यूं घूरते सब ओर।।

उसने पूछा ये क्या हुआ,

साथी ने कहा गुस्से में है बोस।

तीसरे ने बोला क्या कहें जनाब,

हमने कहा ‘हैप्पी न्यू ईयर’ बोलो साहब।।

एक ने कहा तीन शब्दों का ये नारा,

लागत है सबको प्यारा।

बोलकर देखो ! खुश हो जाएं बोस,

‘हैप्पी न्यू ईयर’ बोलने में फिर कैसा संकोच।।

इसने बोला, उसने बोला, सबने बोला,

अब खेल हो गया न्यारा।

हर्ष का हुआ तब माहौल उधर,

जब बोला सबने ‘हैप्पी न्यू ईयर’।।


                                                                                    कृष्ण कुमार ‘आर्य’


कर्मयोगी कृष्ण



        
         कर्मयोगी कृष्ण पुस्तक का लेखन एक वैचारिक क्रांति और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन पर अन्तरिक्ष में फैली भ्रांतियों को दूर करने का एक छोटा सा प्रयास है। इस पुस्तक में भगवान श्रीकृष्ण से पहले की 60 पीढियों से लेकर उनके बाद की दो पीढियों का विवरण दिया है। 
          इसमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की वास्तविक घटनाओं, उनके द्वारा ग्रहण की गई शिक्षाएं, वैज्ञानिक उपलब्धियां, मूल द्वारका तथा श्रीकृष्ण की दिनचर्या विशेष रूप से दी गई हैं। 
        इतना ही नही एक तत्त्वद्रष्टा के तौर पर श्रीकृष्ण द्वारा युद्ध के मैदान दिया गया गीता का मूल उपदेश भी पुस्तक में दिया है। इस पुस्तक का दृष्टिकोण अभी तक श्रीकृष्ण के जीवन पर लिखी गई पुस्तकों से बिल्कुल अलग है। यह एक अनुसंधानात्मक पुस्तक है, जिसे लिखने में लगभग 40 महीने का समय लगा है। 




 


    ‘श्याम आएंगे’

     


        मेरी खोपड़ी के द्वार आज खुल जाएंगे,

        श्याम आएंगे, 

        श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

        मेरी खोपड़ी के द्वार आज खुल जाएंगे,

        श्याम आएंगे। 

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

श्याम आएंगे तो सुबह उठ जाऊंगी,

तारों की छावों में घूम आऊंगी,

फिर मैं करूं योगाञ्जयास,

लेकर सबको मैं साथ,

श्याम आएंगे।

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

श्याम आएंगे तो हवन रचाऊंगी,

खाने को हलवा बनाऊंगी,

उनसे लेकर आर्शीवाद,

फिर बांटू मैं प्रसाद,

श्याम आएंगे।

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

श्याम आएंगे तो छत पर जाऊंगी,

सूरज को नमन कर आऊंगी,

करके धारण मैं प्रकाश,

होने स्वस्थ की ले आस,

श्याम आएंगे।

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

        श्याम आएंगे तो समझ मैं पाऊंगी,

कैसे जीवन की धार बनाऊंगी,

उनका कैसा था सदाचार, 

        पाएं हम भी कर सुधार, 

        श्याम आएंगे, 

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे। 

श्याम आएंगे तो मुरली सुनाएंगे,

ऋचाओं का गायन कराएंगे,

उससे मिट जाए भ्रमजाल,

कृष्ण हो जाए निहाल,

श्याम आएंगे।

श्याम आएंगे, आएंगे, श्याम आएंगे।   

कृष्ण कुमार ‘आर्य’ 

 

हिन्दी दिवस