Sunday, May 23, 2010

एक विचार

                  ‘अमृत या विष’

    कहते है कि विचार महान होता है। इसकी शक्ति मिसाईल और परमाणु बम्ब से भीअधिक घातक होती है। विचार की धार तलवार से भी तेज और गहरी होती है। विचार एक अग्नि है, जो पानी में आग लगाने में सक्षम होता है। विचार ही तो वह ताकत है, जो चूहे को शेर बना सकता है; वही विचार एक कमजोरी भी है, जो व्यक्ति को उसके कृत्यों से गिराकर उसे आधारहीन कर देता है।
      ‘एक विचार’ व्यक्ति को घोड़े की सवारी करवा सकता है तो वहीं दूसरा विचार आदमी को गधे पर भी चढ़ा देता है। इसलिए विचार महान है, इसकी शक्ति महान है और यह अतुलनीय है। इसकी तुलना महर्षियों ने ‘अमृत’-‘विष’ से भी की है। विचार की उत्तमता व्यक्ति को अमृतकलश प्रदान कर सकती है, जबकि विचार की गिरावट उसे विषैला, कशैला और घिनौना बना देता है। विचार व्यक्ति को जहां देश व धर्म के दुश्मनों का संहारक बना सकता है तो उसी विचार की मलीनता से व्यक्ति आत्महत्या करने पर भी मजबूर हो जाता है।
       आमतौर पर विचार के तीन रूप माने जाते हैं। ये विचार, कुविचार और सुविचार हैं। इन्हीं तीनों प्रकार के विचारों के फलस्वरूप ही व्यक्ति न्यूनता और महानता की कसौटी पर परखा जाता है। उच्च कोटी के विचारों वाले व्यक्ति को उच्च और निम्न को निम्न माना जाता है। व्यक्ति के विचार ही उसकी प्रकृति का आईना होते हैं। उसके विचारों से ही समाज में व्यक्ति की मान व मर्यादा का अनुमान लगाया जा सकता है।
      ‘विचार’- मन में जो भी क्रियाकलाप घटित व पैदा होते हैं, उन्हें विचारों का नाम दिया जाता है। साधारणतः विचार व्यक्ति की अपनी एक सीमा तक ही सीमित होते हैं। ऐसे भाव जिनके द्वारा अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने की योजना बनाई जाए, उन्हें विचार माना जाता है। जैसे भूख लगने पर खाने का विचार, प्यास लगने पर पानी पीने का विचार, गर्मी-सर्दी लगने पर उसके निवारण का विचार आता है। विचार केवल व्यक्ति को अपने बारे में ही सोचने पर केन्द्रीत रखता है।
       ‘कुविचार’- यह ऐसा विचार है, जिससे व्यक्ति अपनी या दूसरों की हानि करने के बारे में सोचता है। कुविचार व्यक्ति को उसके धर्म व कर्म से विमुख कर देता है और संसार में निंदा का पात्र बनता है। महाभारत के युद्घ से पहले दोनों सेनाओं के मध्य खड़े अर्जुन के मन में एक विचार आया कि वह अपने भाइयों, मित्रों, भाई पुत्रों, पितामह, गुरू और नाते व रिश्तेदारों की हत्या से पाये गये राज का क्या उपभोग करेगा। इससे तो स्वयं प्राण त्याग देने में ही भलाई है। इन भावों से वह अपना गांडीव छोड़कर युद्घ के मैदान से हटने लगता है। इसे कहते हैं कुविचार। इस विचार के आगमन से वह अपने पथ से विमुख हो गया है।
      ‘सुविचार’- अर्जुन की यह दयनीय दशा देखकर अर्जुन के सखा व सारथी श्री कृष्ण ने कहा कि हे पार्थ ! तुम्हारे मन में ऐसा भीरू और कायरता पूर्ण विचार कैसे आये हैं। ये कुविचार तुम्हें तुम्हारे धर्म से विमुख कर दुःखों के गर्त में ले जाने वाले हैं। इसलिए धर्म के मार्ग से विमुख करने वाले इस कुविचार को तुम अपने मन से निकाल दे और युद्घ करने के लिए अपना गांडीव उठाओ। इसके परिणामस्वरूप अर्जुन ने गांडीव उठाकर कौरवों का विनाश कर डाला। इसे कहते है सुविचार, जिसने भटके हुए अर्जुन को धर्म के मार्ग पर चलाकर पृथ्वी का राज्य भोगने योग्य बना दिया।
         इसी प्रकार का एक सुविचार मात्र 100 रुपये की नौकरी करने वाले धीरूभाई अम्बानी के दिमाग में भी आया था। उसके एक विचार ने ही न केवल उसके जीवन स्तर को बदल दिया बल्कि उसे विश्व की नामी हस्तियों में शुमार करवाने में सफलता दिलाई। यह भी सुविचार ही हैं, जो उसको ऊपर उठाने वाला था।
        विचार की शक्ति को सब जानते है। जब विचार इतना ही शक्तिशाली है तो क्यों न फिर अपने विचारों को उत्तम बनाकर, अपना तथा अन्य लोगों के जीवन को ऊपर उठाने का प्रयत्न करें। क्यों न अपने विचारों को इतनी ऊंचाई प्रदान करें, जिससे हमारा अमृतमय जीवन पंख लगाकर उड़ने लगे अन्यथा कुविचारों के प्रभाव से व्यक्ति का जीवन मृतमय बन कर विष रूपी दुःखों के सागर में गिरता जाएगा।
                                                           साहित्यक विचार











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