Sunday, September 26, 2010

इस्त्री


 
एक दिन
एक पडोस का छोरा
मेरे तै आके बोल्या
‘चाचा जी अपनी इस्त्री दे दयो’

मै चुप्प !
वो फेर कहन लाग्या !
‘चाचा जी अपनी इस्त्री दे दयो ना ?’

जब उसने यह बात कही दोबारा
मैने अपनी बीरबानी की तरफ करयौ इशारा !
‘ले जा भाई यो बैठ्यी।’

छोरा कुछ शरमाया, कुछ मुस्कराया
फिर कहण लाग्या !
‘नही चाचा जी, वो कपड़े वाली’

मै बोल्या,
तैन्ने दिखे कौन्या
या कपड़ा में तो बैठी सै,

वो छोरा फिर कहण लाग्या,
चाचा जी तुम तो मजाक करो सो
मन्नै तो वो करंट वाली चाहिए।

मै बोल्या,
अरी बावली औलाद
तु हाथ लगा कै देख या करैंट मारये सै।
                                                   
  साभार-यह एक दोस्त ने मुझे मेल पर भेजी थी।

No comments:

Post a Comment

सूर्य की गति का द्योतक है उगादी

          देश में मनाए जाने वाले त्यौहार भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता के परिचायक हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने ऋतुओं के परिवर्तन,...