Thursday, April 22, 2010

पृथ्वी दिवस

                          खतरे में धरती

      गवान ने वायुमंडल को संतुलित रखने के लिए सभी जीवों को उनके कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में पैदा किया है, ये सभी जीव वायुमंडल का संतुलन बनाये रखने में सहायता करते है.  मनुष्य द्वारा श्वास लेने के लिए आक्सीजन की आवश्कता होती है, हमें यह आक्सीजन पौधों से प्राप्त होती है. जीवो द्वारा श्वास से छोड़ी जाने वाली कार्बनडाइआक्साइड को पौधे अपने आहार के रूप में ग्रहण कर आक्सीजन छोड़ते है, जिससे वायुमंडल का संतुलन बना रहता है. इसी प्रकार मानव द्वारा त्यागे गए अपशिष्ट पदार्थो को चील, कौवे , सुअर इत्यादी  सेवन  कर धरती को साफ-सुथरा बनाये रखने में हमारी सहायता करते है और हानिकारक गैसों  को बढ़ने से रोकती है. 
     खतरा : पृथ्वी के चारों ओर 40 किलोमीटर की दुरी तक फैले गैस के आवरण को वायुमंडल कहते है. इसमें  नाइट्रोजन 78 प्रतिशत , आक्सीजन 21 प्रतिशत तथा शेष सभी गैसें 1 प्रतिशत होती है. इनमे कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा केवल   0.003 प्रतिशत होती है. कार्बनडाइआक्साइड गैस कि बढ़ोतरी वायुमंडल को गर्म करने का कार्य करती है. वाहनों  के धुएं, श्वाश प्रश्वाश तथा अन्य कार्यों से प्रतिवर्ष वायुमंडल में कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा बढ़ रही है. इसके फलस्वरूप गत 100 वर्षो के दौरान वायुमंडल में कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा में करीब  13 फीसदी कि बढौतरी हुई  है. कार्बनडाइआक्साइड  गैस की वृद्धि से ही वायुमंडल का तापमान बढ़ जाता है. इसे ग्लोबलवार्मिंग कहते है.
      पृथ्वी के चारों ओर  करीब 13 से 26 किलोमीटर की दुरी तक गैस का एक रक्षात्मक कवच होता है , जिसे ओजोन परत कहते है. यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों को सोख लेती है . ग्लोबलवार्मिंग के कारण इस परत में छेद हो रहा . इस कारण सूर्य से आने वाली ये किरणे वायुमंडल को गर्म करती है और मानव सहित अन्य जीवो के शरीरों को नुकशान पहुचती है. इससे त्वचा कैंसर जैसी अनेक भयंकर बीमारियाँ होने की संभावना बढ़ जाती है.
      बचाव  : धरती को बचाने के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी अनेक संस्थाएं कार्य कर रही है, परन्तु लोगों की गैर जिम्मेदाराना हरकतों से इसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ रहा है. आदिकाल में समय पर वर्षा होती थी, समय पर मौष्म बदलते थे , न कभी अतिवृष्टि होती थी और न ही अनावृष्टि कि संभावना थी. इसके पीछे कारण तो अनेक है परन्तु उनमे उन लोगों का रहन सहन, खान पान , प्रक्रृति की रक्षात्मक प्रवृति तथा यज्ञ का मुख्य स्थान था . 
यज्ञ : यज्ञ को हवन भी कहा जाता है. यज्ञ करने से जहाँ वायुमंडल का शोधन होता है वही इससे बढ़ रही कार्बनडाइआक्साइड व कार्बनमोनोआक्साइड जैसी हानिकारक गैसे कम होती है. यज्ञ में डाले जाने वाले सुगन्धित  पदार्थों  व अग्नि के मेल से उक्त हानिकारक गैसे उपयोगी गैसों में बदल जाती है.
पौधे : पौधे हमारी प्रकृति के रक्षक है. ये हानिकारक गैसों का भक्षण कर उन्हें आक्सीजन गैस व अन्य पदार्थो में बदल देते है, जिससे हमें फल-फूल, औषधियां तथा अन्य खाद्य  पदार्थ  प्राप्त  होते हैं. अत: हमें पौधों का अधिक से अधिक रोपण करना चाहिए. पृथ्वी दिवस के अवसर पर हमारे लिए यह विचारणीय विषय है कि यदि हमने अभी भी धरती को बचने कि सुध नहीं ली तो वह दिन  दूर  नहीं  होगा  जब धरती हमारे सामने यह सवाल  अवश्य  करेगी  कि  'मेरी रक्षा कौन करेंगा'                 
                                            
   

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