Wednesday, June 9, 2010

जब से हुई है शादी

आंसु बहा रहा हूं,

जब से हुई है शादी, आंसु बहा रहा हूं,
आफत गले पड़ी है, उसको निभा रहा हूं।
बीवी मिली है ऐसी, वो काम क्या करेगी,
खुद लक्स में नहाकर, खुशबू में तर रहेगी,
टुकड़े बचे हुए है, उनसे नहा रहा हूं।
आफत गले पड़ी है, उसको निभा रहा हूं।
12 बजे गाड़ी में, मैडम जी सो रही हैं,
बच्चों की फौज आके, मेरी जां को रो रही है,
बच्चों के साथ बैठा, खाना पका रहा हूं,
आफत गले पड़ी है, उसको निभा रहा हूं।
सोई है वो पलंग पर, सर दर्द के बहाने,
किस की मजाल है जो, जाएं उसे उठाने,
यारो बुरा ना मानो, मै सर दबा रहा हूं,
आफत गले पड़ी है, उसको निभा रहा हूं।
दुनिया को ये पता है, बेगम का हूं मैं शोहर।
इस घर का मैं था मालिक, अब बन गया हूं नोकर।
बिस्तर लगा रहा हूं, चादर बिछा रहा हूं।
आफत गले पड़ी है, उसको निभा रहा हूं।।
जब से हुई है शादी, आंसु बहा रहा हूं,
आफत गले पड़ी है,उसको निभा रहा हूं।
अंग्रेजी शब्दों में लिखी यह कविता दर्द शायरी से ली गई परन्तु इसका हिन्दी रुपान्तरण मैनें कृष्ण आर्य ने किया है।

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