Tuesday, June 22, 2010

निर्जला एकादशी

एक तप  

                                  

        देश में त्यौहारों व व्रतों को अपना महत्व है। इनको अलग-अलग ढ़गों व तरीकों से मनाया जाता है। इन्हीं में से एकादशी के व्रत में भी लोगों की अगाध श्रद्घा है। एकादशी कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष के दौरान प्रत्येक माह में दो बार आती है। अनेक व्यक्ति इन सभी एकादशी का व्रत रखते हैं। परन्तु ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति सभी एकादशी का व्रत नही करते या नही कर सकते वे इस निर्जला एकादशी का व्रत कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं।
         निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में आती है। इस व्रत को अधिकतर महिलाएं ही रखती है। यह व्रत एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक करीब 24 घंटे की अवधि तक रखा जाता है। व्रत के दौरान व्रती केवल एक बार ही पानी ग्रहण करते है। इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस निर्जला एकादशी को भीमा या भीम एकादशी के नाम से भी पुकारा जाता है।
        पौराणिक मान्यताओं के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत रखने से महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और इससे उनके घर व परिवारों में आयु, आरोग्यता, धन, दौलत, पुत्र-पौत्रादि व सुखों की वर्षा होती है। महिलाएं सुन्दर परिधानों व 16 श्रृंगारों से सजकर व्रत को सम्पन करने के लिए ब्राह्मणों भोजन, वस्त्रत, छतरी, जूते व अन्य वस्तुओं का दान करती है। इस व्रत के दौरान वे जल की बजाय दूध व फलादि का प्रयोग करती है। वैसे एक बार में लिया जाने वाला जल की मात्रा भी अधिक नही होती है। जल की यह मात्रा सरसों के एक बीच को भिगोने जितनी होती है। इसको यदि आंका जाए तो यह एक बूंद से भी कम होगी। व्रती को पूरे 24 घंटे इसी एक बूंद पानी में गुजारने होते हैं।
        निर्जला एकादशी को लोग बड़ी श्रद्घा से मनाते है। मंदिर, शहर, मौहल्लों, सड़कों और निर्जन राहों व स्था्नों पर आने जाने वाले राहगीरों, पशु व पक्षियों के लिए पानी की छबीलें लगाई जाती है और उन्हें पानी पिलाया जाता है। इस एकादशी को गांवों में खरबूजों से भी जोड़ कर देखा जाता है। गांवों मे इसे ‘खरबूजे खानी ग्यास’ के नाम से भी जाना जाता है। खरबूज में पानी मात्रा सबसे अधिक होती है। इसलिए खरबूजा ज्येष्ठ माह में निर्जला रहने से शरीर में होने वाली पानी की कमी को भी यह पूरा करता है।
        निर्जला एकादशी के व्रत को महाभारत काल के महर्षि वेदव्यास से जोड़कर भी देखा जाता है। बताया ‌जाता है कि महाभारत युद्घ के पश्चात एक दिन महर्षि पांडवों को एकादशी का महत्व बता रहे थे। उन्होंने कहा कि व्यक्ति द्वारा प्रत्येक एकादशी का व्रत रखने से उनकी प्रतिभा में निखार व सभी मनोकामना पूर्ण होती है। निर्जला पर भीम ने एतराज जताते हुए कहा कि पितामह! मेरे लिए तो प्रत्येक एकादशी का व्रत रखना सम्भव नही है, क्योंकि मुझे भूख बहुत लगती है और मैं भूख सहन नही कर सकता।
         इस पर वेदव्यास ने उन्हें ज्येष्ठ माह में आने वाली एकादशी को निर्जला रखने की बात कही, जिसको उन्होंने मान लिया। उन्होंने निर्जला एकादशी के दिन पानी पीने, उसके बहाव व बचाव रखने की बात कही। भीम की सहमति के मिलने कारण इस व्रत को भीम व्रत या भीम एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है। यह बहुत बड़ा व्रत है इसलिए भी इसे भीम यानि बड़ा व्रत कहा जाता है।
       महर्षि का यहां यह मानना भी हो सकता है कि व्यक्ति को एकादशी व त्रयोदशी के दिन-रात के दौरान अपने शरीर के अमूल्य पानी (वीर्य) का क्षय नही करना चाहिए और न ही इस दिन गर्भादान क्रिया करनी चाहिए। ऐसा करने से संतान में अनेक दोष हो जाते है। इस एकादशी को इसलिए भी निर्जला एकादशी कहा गया होगा। निर्जला एकादशी हमें यह संदेश भी देती है कि व्यक्ति को संसार में रहते हुए भी पूरी तरह निर्जला रहना चाहिए। जिस प्रकार कमल का फूल जल में रहता हुआ भी उससे ऊपर होता है उसी प्रकार मनुष्य को सांसारिक बु‌राईयों से ऊपर उठकर संसार में रहना चाहिए, तभी यह व्रत फलदायी होगा।  
                                                                 कृष्ण के. आर्य
 

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