Wednesday, July 14, 2010

तीन शक्तियां

                            किसे करें ग्रहण?

                                    त्रि शक्तिं ओउम् 
          जीवों में शक्ति शब्द का विशेष स्थाशन होता है। शक्ति ही जीवन का आधार है। पशु, पक्षी, पेड़, पौधे या जानवर भी हमेशा शक्ति की ही पूजा करते है और शक्तिशाली जीवों के सामने नतमस्तक हो जाते है। परन्तु मानव जीवन तो स्वयं एक शक्ति का प्रतिक है। सभी प्राणी मानव से भयभीत रहते हैं और सभी जीव मनुष्य जीवन प्राप्त कर उस जैसा बनना चाहते है।
         मानव जीवन सभी योनियों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि यह कर्म तथा भोग योनि है। शेष सभी भोग योनियां होती है। दूसरी योनियों में जीव कोई भी कर्म करने में स्वतन्त्र नही होता है, बल्कि वह अपने प्रारब्ध के आधार पर केवल अपने कर्मों के फलों को भोग सकती है। लेकिन मानव जीवन ऐसा एकल जीवन है, जिसमें जीव अपने पिछले जन्मों के कर्मों को भोगने के साथ-साथ इस जन्म में शुभ या अशुभ कर्म करने में भी स्वतन्त्र होता है।
        प्राणी द्वारा किए जाने वाले शुभ या अशुभ कर्म उसकी ग्राहण शक्ति का परिणाम भी होते हैं। वायुमंडल में उठने वाली किरणें व्यक्ति के कर्मों पर प्रभाव डालती हैं। ब्रह्मांड में तीन प्रकार की ऊर्जाएं यानि शक्तियां विद्यमान है। यही शक्तियां मनुष्य के शारीरिक तन्त्रर में भी होती है। कहते है कि ‘पिंडे सो ब्रह्मांडे’ यानि जो भी ब्रह्मांड है वही पिंड अर्थात शरीर में भी विद्यमान होता है। जीवात्मा की प्रवृति जैसी होती है वह अपनी बुद्घि से वैसी ही किरणों का ग्रहण कर लेती है और वैसा ही कर्म करने लग जाती है। इसके फलस्वरूप ही जीवात्मा का प्रारब्ध बनता है।
        ब्रह्मांड़ में हमेशा सकारात्मक, नकारात्मक और उदासीन तीन प्रकार की ऊर्जाएं अर्थात किरणें होती है। इन्हें त्री शक्तियां भी कहा गया है। इन्हीं किरणों के ग्रहण करने से व्यक्ति की सोच व विचार परिवर्तित होते हैं। व्यक्ति अपनी बौद्घिक क्षमता के आधार पर ही ब्रह्मांड से ऊर्जा ग्रहण करता है और वह जैसा सोचता है उसे वैसा ही परिणाम मिलना शुरू हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति या प्राणी के विषय में नकारात्मक विचार रखना स्वयं के लिए हानिकारक होता है। नकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति सामने वाले का ऋणि हो जाता है, जबकि सकारात्मक विचारों से सामने वाला ‌ऋणि हो जाता है। यही सोच अर्थात विचार व्यक्ति का प्रारब्ध बनाने वाले होते है।
सकारात्मक - ब्रह्मांड में सकारात्मक (Positive Energy) प्रकृति की ऊर्जा होती है। इसके ग्रहण करने से व्यक्ति सही दिशा में अच्छा ही सोचता है। ‌मुसिबतों में भी सकारात्मक सोच रखने से परिणाम अच्छे मिलते है।
नकारात्मक – नकारात्मक (Negative Energy) सोच व्यक्ति के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है, जिससे वह उसी प्रकार के कर्म करने लगता है और परिणामस्वरूप व्यक्ति नकारा बन जाता है।
उदासीन – उदासीन (Neutral Energy) एक ऐसी ऊर्जा है, जिसमें व्यक्ति कर्मों के राग-द्वेश से दूर हो जाता है यानि तटस्थ हो जाता है। वह किचड़ में कमल की भांति हमेशा समाज की गंदगियों से ऊपर व अलग रहता है। यह योगियों की जीवनशैली में शामिल होता है।
         अतः व्यक्ति की सोच ही उसके सभी कर्म-फलों का कारण बनती है। एक कहावत है कि ‘If you think positive than the result will also be positive’ अर्थात ‘सकारात्मक सोच का परिणाम भी सकारात्मक ही होगा’। मनुष्य को शहद की मक्खी बनना चाहिए, जो कि फूलों से शहद ही इक्कठा करती है। गंदगी की मक्खी नही बनाना चाहिए जो अच्छे व साफ-सुथरे पदार्थों में भी गंदगी का ही चयन करती है। ऐसा करने से समाज में भी सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार होगा और आपसी भावनात्मक रिश्तों का निर्माण होगा, जोकि समाज को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्घ होगा।

                                                            कृष्ण कुमार ‘आर्य’

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